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सीरिया को सुरक्षित बताकर शरणार्थी लौटा रहा डेनमार्क, यूरोप में सबसे पहले उठाया कदम


डेनमार्क ने युद्धग्रस्त सीरिया से आए शरणार्थियों को वापस भेजना शुरू कर दिया है। सरकार का कहना है कि अब उनके लौटने के लिए हालात सुरक्षित हैं। डेनमार्क ने 92 शरणार्थियों से रेजिडेंसी परमिट वापस ले लिया है। सीरिया की राजधानी डमास्कस और उसके आसपास के इलाके को सुरक्षित करार देने के बाद यह कद उठाया गया। इन लोगों को डिपोर्टेशन कैंप भेजा जाएगा।
हालांकि, उन्हें जाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। इसके बाद मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि सरकार शरणार्थियों के पास कोई विकल्प नहीं छोड़ रही है। वहीं, जानकारों का कहना है सरकार इस तरह के कदम उठाकर दक्षिणपंथी विपक्ष का मुकाबला करने की कोशिश कर रही है। दरअसल, इससे पहले एक बिल पेश किया गया था जिसमें मस्जिदों को विदेश से आनी वाली फंडिंग रोकने की बात कही गई थी।
अस्थायी है परमिट : डेनमार्क के इमिग्रेशन मंत्री मैटियास टस्फे ने पिछले महीने कहा था कि डेनमार्क शुरू से सीरिया से आए शरणार्थियों के लिए खुला और ईमानदार रहा। उन्होंने कहा कि सीरिया के शरणार्थियों को साफ-साफ बता दिया गया है कि उनका रेजिडेंस परमिट अस्थायी है। सुरक्षा की जरूरत नहीं होने पर इसे वापस ले लिया जाएगा। इसके साथ ही करीब 350 शरणार्थियों के परमिट को दोबारा समीक्षा की जरूरत पड़ सकती है।
सबसे पहले उठाया कदम : इससे पहले जर्मनी ने अपराधियों को लौटाने की बात कही थी लेकिन शरणार्थियों को भेजने का ऐलान करने वाला डेनमार्क पहला यूरोपीय देश है। जानकारों का कहना है कि डेनमार्क की सत्ताधारी सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऐंटी-इमिग्रेशन रुख अपना रही है ताकि दक्षिणपंथी पार्टियों का सामना कर सकें। दरअसल, डेनमार्क ने देश में बढ़ते इस्लामिक कट्टरपंथ से निपटने के लिए भी मुहिम छेड़ रखी है।
दक्षिणपंथी पार्टियों से टक्कर? : इसे लेकर वहां की संसद में एक बिल भी पेश किया गया है, जिसमें मस्जिदों को विदेशों से मिलने वाली फंडिंग पर रोक लगाने की सिफारिश की गई है। इस बिल में कहा गया है कि मस्जिदों को व्यक्तियों, संगठनों और संघों के पैसे को स्वीकार करने से रोका जाएगा जो लोकतांत्रिक मूल्यों, मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का विरोध या उन्हें कम करते हों। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार दक्षिणपंथी पार्टियों का मुकाबला करने के लिए इस तरह के कदम उठा रही है।
अधिकारों का हो रहा हनन : ऐमनेस्टी इंटरनैशनल के स्टीव वॉल्डेज-सिमंड्स का कहना है कि डेनमार्क की सरकार लोगों को क्रूर शासन के पास वापस भेजना चाहती है जो लोगों के अधिकारों का हनन है। उनका कहना है कि इससे दूसरे देश भी सीरिया से आने वाले शरणार्थियों को मदद के हाथ पीछे खींच सकते हैं। इससे और लोगों की जान भी खतरे में पड़ सकती है।