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लोगों की मदद करना ही हमारा प्राथमिक लक्ष्य रहा है : संजीव कोहली

 

कीवी ‘गुड-वर्क प्रैक्टिसेज’ से हमें बहुत सीखने की जरूरत है

 

न्यूजीलैंड में इंडियन हाई कमिशन के मुखिया हाईकमिश्नर संजीव कोहली जी का 3 वर्षों का कार्य काल मई माह के अंत में समाप्त हो रहा है| संजीव जी से न्यूजीलैंड में रह रहे भारतवासियों को बहुत अपेक्षाएँ थी क्योंकी पूर्व में पदस्थ कई प्रभारियों के भिन्न-भिन्न विवादों, आचरण तथा  लोक-व्यवहार संबंधी अनुभव बेहद साधारण रहे थे| लेकिन संजीव जी के सहज़-सरल स्वभाव, आसानी से हर समय भारतीय समुदाय के लिए उपलब्धता, ईमानदारी और नेक नियत से अपने दायित्व को जन-हित में करने की इच्छा ने, लोगों के मानस पटल पर उन्हें गत कई दशकों का, न्यूजीलैंड में पदस्थ सबसे बेहतर हाई कमिश्नर होने का दर्जा दिया|

संजीव जी की पूर्व में भी एक डिप्लोमेट की हैसीयत से 1990 में जब इराक ने कुवैत पर आक्रमण किया था तो लगभग 1 लाख 75 हज़ार भारतीयों को सकुशल स्वदेश पहुंचाने में महती भूमिका रही थी। जो कि दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा मानवीय विस्थापन (ईवेकुएशन) के रूप में गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में दर्ज़ है| जिस पर कुछ वर्ष पूर्व एयर-लिफ्ट नाम से एक चर्चित हिन्दी फिल्म भी बनी थी|

तो आइये जानते हैं संजीव जी के हाई कमिश्नर के रूप में न्यूजीलैंड में अनुभव कैसे रहे, उनकी क्या उपलब्धियां रहीं और किस तरह वो भारतीय जन मानस पर अपनी सरल-सहज और कर्मठ छवि की असाधारण छाप छोड़ने में सफल हुए –

प्रश्न : आपके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या रही ?

उत्तर: देखिए आप जब भी,  हेड ऑफ द मिशन के तौर पर अपनी जिम्मेदारी किसी नई जगह  आकर संभालते हैं,  तो आप मल्टीपल गोल्स पर काम करते हैं | उन गोल्स में कुछ त्वरित होते हैं और कुछ दीर्घ अवधि के लिए होते हैं| इस संदर्भ में किसी एक सफलता को इंगित करना मुश्किल है|

मुझे लगता है कि हमने मेरे हाई कमीशन न्यूजीलैंड के कार्यकाल में  मिशन का प्रोफाइल बढ़ाया है|  कम्युनिटी के साथ हमारा तालमेल और समझ बहुत बेहतर हुई है|  इन 3 सालों में हमारे संबंध अपने समुदाय से बहुत अच्छे हुए हैं ऐसा मुझे लगता है|

ऑकलैंड में हमने अपना काउंसलर नियुक्त किया,  उससे लोग बहुत खुश हैं| मेरे कार्यकाल के दौरान भारत के राष्ट्रपति की पहली न्यूजीलैंड यात्रा हुई, यहां से प्रधानमंत्री इस दौरान भारत गए,  आपसी व्यापार में बहुत बढ़ोतरी हुई है| यह सब मेरे लिए निजी तौर पर भी बहुत संतोषजनक रहा है|

प्रश्न:  किन कामों को लेकर आपको लगा  समय कम होने की वजह से पूर्ण नहीं किए जा सके?

उत्तर:  देखिए हमारा जो भी काम होता है वह एक तरह से ‘वर्क इन प्रोग्रेस’ होता है|  वैसे भी फॉरेन पॉलिसी और इंटरनेशनल रिलेशनशिप, एक निरंतरता के आधार पर चलने वाला कार्य है| आप जब भी मिशन में पदभार ग्रहण करते हैं तो आपका मकसद यह होता है कि, आपको पदभार ग्रहण करते समय जो परिस्थितियां मिली थी मिशन को छोड़ते समय वह पहले से बेहतर स्थिति में  हो| मुझे लगता है मैं इसमें कुछ हद तक सफल रहा हूं| क्योंकि मुझे यह फीडबैक कई लोगों और अन्य कई माध्यमों से मिला है कि, मिशन आज पहले से कहीं अधिक और बेहतर स्थिति में काम कर रहा है|

ऐसी कुछ चीजें हैं जो हम समय रहते पूर्ण करना चाहते थे लेकिन किन्ही बाहरी कारणों की वजह से नहीं कर पाए जैसे मिशन का अपना निजी भवन का निर्माण, निश्चित समय सीमा में पूरा नहीं हो पा रहा है| पहले हमें लगता था कि हम उसे 2019 में पूर्ण कर पाएंगे लेकिन अब संभव है वह 2020 के अंत तक पूर्ण हो पाएगा|

हमारा प्रयास था कि व्यापारिक संबंध और मजबूत हो, ‘ट्रेड नेगोशिएशंस’ पर और बात हो लेकिन उसमें और समय लग रहा है| वैसे आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें अब भारत ‘रीजनल ट्रेड पार्टनरशिप’ पर काफी बल दे रहा है और इसके चलते साउथ पेसिफिक रीजन में काफी सार्थक कदम उठाए जा रहे हैं|

प्रश्न: आप के कार्यकाल में निश्चित तौर पर हाई कमीशन के संबंध भारतीय समुदाय से बहुत बेहतर और निकट के हुए हैं, आप यह कैसे कर पाए, जो कि आपके पूर्व के हाई कमिश्नर कर पाने में इतने सफल नहीं हुए थे?

उत्तर: पूर्व में यह क्यों नहीं हो पाया उस पर तो मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता,  लेकिन मैंने जब पदभार ग्रहण किया तो मेरी प्राथमिकता थी कि हम कमीशन की कार्य शैली में  एक कल्चर और एटीट्यूड विकसित करें| हमको यह समझना होगा कि हम एक, सर्विस ऑर्गेनाइजेशन हैं। हमको अपनी ओर से हर संभव यह कोशिश करनी है कि हम लोगों की हरसंभव मदद करें| दूसरा नियमों में और सिस्टम में जो भी फ्लैक्सिबिलिटी है उसका इस्तेमाल लोगों के लाभ के लिए किया जाए| देखिए कोई भी हाई कमिश्नर नए नियम तो बना नहीं सकता है,  नियम तो दिल्ली में बनते हैं,  लेकिन हर नियम या प्रावधानों में हाई कमिशन के पास उसके विवेक का इस्तेमाल कर, निर्णय लेने की गुंजाइश अवश्य होती है| फ्लैक्सिबिलिटी को आप कैसे इस्तेमाल करते हैं इससे काफी फर्क पड़ जाता है| तो मैं यह कह सकता हूं कि मैंने अपने विवेक का इस्तेमाल नियमों के दायरे में रहकर लोक हित में किया है| अब जैसे कि हमें कई बार मृतकों का पार्थिक शरीर भारत भेजना पड़ा, ऐसे 3 सालों में कम से कम 15 से 20 मौके आए|  जिस पर कि मिशन ने अन्य कई व्यवस्थाओं के साथ आर्थिक सहयोग भी किया,  इसी तरह मान लीजिए किसी को किन्हीं कारणों से कुछ आर्थिक मदद चाहिए तो हमने मिशन की ओर से उसमें भी सहयोग करने का प्रयास किया|

तीसरा, लोगों को यह भी लगता था कि,  हाई कमीशन लोगों से एक दूरी बनाकर चलता है और लोगों के साथ जुड़ने में आपसी संबंध बनाकर  रखने में विश्वास नहीं करता| तो हमारा प्रयास यह रहा कि हम ज्यादा से ज्यादा व्यक्तिगत संबंध लोगों से बनाएं, जितना संभव हो सके पब्लिक ईवेंट्स में जाकर उनके साथ आपसी विचार विमर्श का अनौपचारिक प्लेटफॉर्म क्रिएट करें|

अपने पूर्व के अनुभवों से भी मैंने सीखा कि जो आपका अपना डायस्पोरा है वह आपके लिए  एक फोर्स मल्टीप्लायर है|  क्योंकि यह डायस्पोरा यहां स्थाई तौर पर रह रहा है उसके अपने लोग, समाज और सरकार से संबंध हैं|  जिनसे की आपको कहीं ज्यादा फायदा होता है|  तो मैंने यह संदेश सबको देने का भरपूर प्रयास किया कि सब अगर मिल कर काम करेंगे तो सबको कहीं ज्यादा फायदा होगा| और इस तरह मिलकर हम सब भारत का प्रोफाइल और मजबूत कर पाएंगे|मुझे लगता है कि मैं इस मामले में भाग्यशाली रहा के मुझे कुछ अच्छे लोग, अच्छे साथी यहां मिले और हमने मिलकर अच्छा काम कर, कुछ अच्छे परिणाम हासिल  किए| मुझे लगता है कि यह एक आदमी के किए नहीं हो सकता, यह एक सकारात्मक सामूहिक प्रयास का परिणाम है|

प्रश्न: अपने न्यूजीलैंड के अनुभव को लेकर आप अपने उत्तराधिकारी को  सबसे महत्वपूर्ण क्या सुझाव देकर जाना चाहेंगे?

उत्तर:   मेरा सबसे महत्वपूर्ण सुझाव मेरे उत्तराधिकारी को यह होगा कि जो हमने अपनी आउटरीच कम्युनिटी के साथ बनाई है वह उसे और मजबूत करें|आप किस तरह कम्युनिटी के विश्वास को भारत देश के हितों के साथ अलाइनकर सकते हैं, यह तालमेल बहुत मूल्यवान है|  क्योंकि भारत के विदेश मंत्रालय ने हाल ही में  ‘इंडो पेसिफिक डिविजन’ स्थापित किया है, जिसके चलते अब हमारा दायित्व और महत्वपूर्ण हो जाता है|  कुल मिलाकर मुझे लगता है कि हमारे सक्सेसर एक अच्छी सौहार्दपूर्ण और सामयिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण परिदृश्य में अपना कार्यभार संभालेंगे|

प्रश्न:  आप के कार्यकाल में हाई कमीशन के क्रिया-कलापों में क्या विशेष परिवर्तन हुए?

उत्तर: जैसा कि मैंने कहा कि हमारे लिए यह जानना बहुत आवश्यक था कि, हमारी  सेवाओं को पाने वालों के लिए हम तक पहुंचना कितना आसान और सहज है| हमने हर तरीके से उस पहुंच को आसान बनाने का प्रयास किया है| मेरे हिसाब से अब हम किसी भी इंक्वायरी का 24 घंटे या अधिकतम 48 घंटे में  उसका उत्तर देने में सफल हो पा रहे हैं| ऑकलैंड में जब से हमने ओनररी काउंसिल स्थापित किया है तब से हमारी सेवाओं में वहां बहुत सुधार आया है| हमने लोगों को विषम परिस्थितियों में आर्थिक व सामाजिक सहयोग  या सलाह देने में भी काफी तत्परता दिखाई है जिसमें कि आए सुधार को ‘एक्रॉस द बोर्ड’ लोगों ने स्वीकारा और सराहा है|

प्रश्न:  व्यापार और सामरिक दृष्टि से आपके माध्यम से हमारी क्या प्रगति रही?

उत्तर:  इस संदर्भ में 3 वर्षों में काफी सकारात्मक ट्रेंड देखने में आया है कमीशन का काम इस तरह के संदर्भ में आपसी तालमेल बढ़ाना और सूचना का आदान-प्रदान करने तक सीमित होता| हमारे प्रयास इस दिशा में काफी सार्थक रहे| जहां तक सर्विस सेक्टर का प्रश्न है उसमें 50% की बढ़ोतरी हुई, हमने पहली बार न्यूजीलैंड के साथ 3 बिलियन डॉलर के व्यापार का आंकड़ा पार किया है, जोकि कुछ संदर्भों में ऐतिहासिक है| कुल मिलाकर व्यापार और सेवा के क्षेत्र में प्रगति  का आकलन करें तो उसमें लगभग 20% का सुधार आया| जो कि मेरे हिसाब से बहुत अच्छा और सफल प्रदर्शन कहा जा सकता है|

हमें यह भी देखने में आया है जिस तरह के लोग न्यूजीलैंड से भारत के लिए बिजनेस वीजा ले रहे हैं वह अब पहले की तुलना में बहुत डायवर्स है|यह एक अच्छे ट्रेंड की ओर संकेत करता है|  जिसमें कि  इंजीनियरिंग, एजुकेशन,  सर्विसेज,  आईटी सेक्टर, और कंसल्टेंसी सर्विसेज आदि प्रमुख है| हाल ही में मेरी ऑकलैंड यूनिवर्सिटी और मेसी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर से बात हुई|  दोनों का ही कहना था कि जिस तरह की चर्चा और संभावनाएं उनकी हाल ही में की गई भारत यात्राओं से बनी है वैसी पहले कभी नहीं हुई|  ऑकलैंड यूनिवर्सिटी- आईआईटी खड़गपुर के साथ मिलकर एक इंडिया सेंटर  यहां स्थापित करने की बात कर रहा है|  तो इस तरह की नई पहल बहुत सारी नई संभावनाओं को जन्म दे रही हैं जो कि बहुत सकारात्मक प्रगति है|

प्रश्न:  न्यूजीलैंड सरकार से भारतीय सरकार के संबंधों को लेकर आपका क्या आकलन है?

उत्तर:  मुझे लगता है कि भारत-न्यूजीलैंड सरकार के संबंध विगत 40-50 वर्षों से हमेशा सकारात्मक और सौहार्दपूर्ण रहे हैं कभी-कभार ही इन संबंधों में कुछ समय के लिए ऊंच-नीच हुई, अन्यथा दोनों देशों का एक दूसरे के प्रति हमेशा अच्छी समझ और तालमेल रहा है| दोनों देशों के लोगों के बीच के रिश्ते भी हमेशा सौहार्दपूर्ण रहे हैं। मेरा यह मानना रहा है की दो देशों के बीच अच्छे संबंधों के लिए ‘पीपल टू पीपल’ कांटेक्ट अच्छा होना ज्यादा आवश्यक है| मुझे लगता है इस समय भी दोनों देशों के बीच संबंध बहुत अच्छे हैं और जिस तरह की परिस्थितियां लोकल, रीजनल  और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बन रही हैं उसने भी इन दोनों देशों को आपस में पास लाने में अहम भूमिका निभाई है| दोनों ही देशों में लोकतंत्र है,  डायवर्सिटी है,  लॉ एंड ऑर्डर के प्रति सम्मान का भाव है,  और जिस तरीके से हमारा प्रभाव इंडो पेसिफिक रीजन में बढ़ रहा है उससे भी दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों का महत्व बढ़ा है| चाइना की एग्रेसिव फॉरेन पॉलिसी और क्षेत्रीय अग्रेशन ने भी हमारी तरह के लोकतांत्रिक देशों को आपस में संबंध बेहतर करने की परिस्थितियां पैदा की हैं|

इसी के चलते हमने दोनों देशों के बीच फॉरेन ऑफिस कंसल्टेशन, साइबर डायलॉग सेल भी स्थापित किए हैं|जो कि आपस में निरंतर संपर्क में रहते हैं| इससे भी दोनों देशों के बीच का विश्वास बढ़ा है|

प्रश्न : प्रधानमंत्री मोदी के गत 5 वर्षों के कार्यकाल मेंे, हाई कमिशन की कार्यशैली में पहले के वर्षों की तुलना में आपने क्या अंतर महसूस किया?

उत्तर : गत् 5 वर्षों में निश्चित तौर पर भारत का प्रोफाइल दुनिया में बहुत  बेहतर हुआ है| मोदी के अपने व्यक्तित्व के चलते दुनिया के बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय नेताओं के साथ संबंध बहुत सुधरे हैं|एक बड़ा फायदा तो भारत को मोदी के नेतृत्व में मिले पूर्ण बहुमत से भी मिला| क्योंकि किसी देश में एक पूर्ण बहुमत वाली स्थाई सरकार से संबंध, बनाने के फायदे  का महत्व सब समझते हैं|भारत को बहुत समय के बाद, एक स्थाई सरकार और सशक्त नेतृत्व मिला है|

प्रधानमंत्री मोदी जी के अपने मेक इन इंडिया,  मेड इन इंडिया और अन्य कई सारी विकासशील योजनाओं का दुनिया के मानस पटल पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा है| मोदी के नेतृत्व में भारत की छवि को निश्चित रूप से बहुत उछाल मिला, जिसका कि हमको भी बहुत फायदा हुआ| पर जिस देश का प्रतिनिधित्व करते हैं उस देश का नेतृत्व अन्य देशों के साथ संबंध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है|

प्रश्न:  इसी संदर्भ में भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रमुख सुषमा स्वराज जी की कार्यशैली के बारे में क्या टिप्पणी करना चाहेंगे जोकि अपनी प्रोएक्टिव कार्य क्षमता के चलते सोशल मीडिया पर भी काफी प्रचलित रही हैं|

उत्तर:  सुषमा जी हमेशा से ही भारतीय डायस्पोरा के प्रति बहुत  सजग और सचेत रही हैं| उनका सोशल मीडिया आदि पर सजग रहना सबके हित में है क्योंकि इससे ना सिर्फ हमारी सेवाओं में चेतना और त्वरित सेवा का भाव बना रहता है साथ ही आप अपने समुदाय के और निकट आ पाते  हैं| वैसे भी सुषमा जी बहुत वरिष्ठ मंत्री और नैतिक रूप से बहुत सक्षम महिला हैं| उनके नेतृत्व में विदेश मंत्रालय में बहुत सी नई नीतियां और योजनाओं को बढ़ाने हेतु नए नियम लागू किए गए हैं, जिसके बहुत सकारात्मक परिणाम आ रहे हैं|

प्रश्न:  आप व्यक्तिगत रूप से न्यूजीलैंड को एक देश के रूप में कैसा आँकते हैं?

उत्तर:  सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात -न्यूजीलैंड के लोग बहुत अच्छे हैं|  मैं कई बार अपने मंत्रालय में भी कहता हूं कि यहां की कार्य प्रणाली बहुत ही अच्छी हैं जिन्हें कि हमें अपने यहां भी लागू करना चाहिए| जैसे कि यहां के लोग प्रोटोकॉल और प्रोसीजर को बहुत महत्व नहीं देते हैं| हमारे यहां बहुत बार चीजें प्रोटोकोल और प्रोसीजर्स में अटककर रह जाती हैं| कितने  काम हैं जो हम आसानी से यहां ई-मेल से कर लेते हैं| दूसरा आप जब भी यहां किसी से मीटिंग की अपेक्षा करते हैं तो वह आपको बहुत जल्दी समय मिल जाता हैं| यहां लोग कंसल्टेशन को लेकर बहुत ओपन हैं| लोग यहां अपनी राय बेबाक तरीके से रखने में हिचकिचाते नहीं है|मुझे लगता है कि यहां का सिस्टम बहुत ही एफिशिएंट, इफेक्टिव और ट्रांसपेरेंट भी है| यहाँ की  कार्यशैली में ‘गुड वर्क प्रैक्टिसेज’ का जो कल्चर है, हमें उससे बहुत सीखने की जरूरत है|

प्रश्न: आप भारतीय समुदाय को अपने यहां के अनुभव से क्या संदेश दे कर विदा लेना चाहते हैं?

उत्तर: मेरा तो यही अनुभव रहा है कि जब आप मिलकर काम करते हैं तो मिशन और भारतीय समुदाय  दोनों का प्रोफाइल बढ़ता है| तो मेरी यही अपेक्षा और अनुरोध है कि हमने जो आपसी सामंजस्य और भाईचारा कायम किया है वह और बेहतर हो|मुझे हमारी यहां की कम्युनिटी पर बहुत गर्व है उन्होंने यहां पर बहुत कुछ हासिल किया है, और मैं चाहता हूं कि वह इसी तरह अपने कार्य से अपना, अपने समुदाय का और अपने देश का नाम ऊंचा करते चलें| साथ ही मेरा यह भी मानना है कि वह इन मूल्यों को सजगता से अपनी भावी पीढ़ी को भी पास-ऑन करते चलें| अभी अमूमन न्यूजीलैंड में फर्स्ट जेनरेशन इंडियंस का ही बाहुल्य है| चुनौती यह होगी कि जो बच्चे यहां पैदा हो रहे हैं वह कितना अपने आप को भारत तथा भारतीयता के साथ जोड़कर रख पाते हैं| वह, आने वाले समय में अपने समुदाय की कितनी सेवा करना चाहेंगे यह भविष्य का एक बड़ा प्रश्न होगा| तो मुझे लगता है कि हमें अपनी उन भारतीय वैल्यूस को अपने बच्चों में समाहित करवा पाने की बड़ी चुनौती होगी, जिसको की लेकर हमें बहुत  सजग रहना होगा|▀