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न्यूजीलैंड के सक्षम एवं सफल भारतीय समुदाय को देख मुझे बहुत खुशी है : श्री मुक्तेश परदेशी

 

 

 

 

 

 

साक्षात्कार : आलोक गुप्ता

भारत के नव नियुक्त उच्चायुक्त श्री मुक्तेश परदेशी का Indianz X-Press को विस्तृत साक्षात्कार
प्रश्न : मुक्तेश जी न्यूजीलैंड में भारत के उच्चायुक्त का पदभार संभालने उपरांत आपका प्रारंभिक अनुभव कैसा रहा?
उत्तर: मैं कहूंगा बहुत अच्छा रहा। मैंने 29 जुलाई को अपना पदभार ग्रहण किया और उसके अगले ही दिन मैंने गवर्नर जनरल को अपने क्रेडेंशियल प्रस्तुत किए। क्रेडेंशियल प्रस्तुत करना किसी भी राजदूत के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य है इसका तात्पर्य यह है कि स्थानीय सरकार ने आप की नियुक्ति को स्वीकार कर लिया है। तो अगले ही दिन इसका हो जाना एक बहुत महत्वपूर्ण शुरुआत थी। इसका यह भी मतलब है कि अगले ही दिन से मैं अपने काम में जुट गया।
एक बात और मेरे पक्ष में जो रही है वह यह कि मुझे न्यूजीलैंड को दूर से ही सही लेकिन जानने का मौका मिला था सन 2001 और 2004 के बीच जब मैं डिप्टी डायरेक्टर था, साउथ ईस्ट एशिया और पेसिफिक डिवीजन में तो मुझे यहां दो तीन बार आने का अवसर प्राप्त हुआ था। एक बार फॉरेन ऑफिस कंसल्टेशन के लिए आया था और एक बार पैसेफिक आयलैंड फोरम की मीटिंग के लिए यहां आया था। जिसका की भारत पहली मीटिंग में ऑब्जर्वर बना था, तो मुझे उसमें भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला था। वह मीटिंग 2003 में ऑकलैंड में हुई थी। दिल्ली में भी मैं हाई कमिशन न्यूजीलैंड के संपर्क में था। तो इस तरह न्यूजीलैंड दूर से ही सही लेकिन मेरे लिए एक जानी पहचानी एंटिटी थी। जब मैं यहां पहले आया था तब मेरी मुलाकात सर एडमंड हिलेरी, श्री आनंद सत्यानंद जो कि गवर्नर जनरल रह चुके हैं और भी कई न्यूजीलैंड के गणमान्य व्यक्तियों से हुई थी, जिसके चलते न्यूजीलैंड मेरे लिए एक अपरिचित जगह नहीं थी। इसीलिए मुझे यहां सेटल होने में कोई समस्या नहीं हुई।
प्रश्न : अापने अपने लिए न्यूजीलैंड प्रवास के दौरान क्या प्राथमिकताएं रखी हैं?
उत्तर : मैंने कुछ प्राथमिक लक्ष्य तय किए थे जिनमें कि दोनों देशों के बीच के पॉलिटिकल रिलेशन को हायर लेवल पर लाया जाए। जिसमें की संबंधों का लेबल भी ऊंचा हो और उसकी फ्रीक्वेंसी भी बड़े। और मैं यह कह सकता हूं कि मुझे अपने प्रवास के शुरुआती कुछ महीनों में सफलता भी मिली है। पिछले दिनों हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जसिंडा आर्डन से न्यूयार्क में मुलाकात हुई। यूनाइटेड नेशंस में महात्मा गांधी पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें की जसिंडा आर्डन जी ने शिरकत की। जिसमें से कि वह ग्लोबल लीडर्स में से एक थी। तो ऐसा नहीं था कि बहुत सारे राष्ट्र प्रमुखों को उस में आमंत्रित किया गया हो। इसमें केवल भारत के प्रधानमंत्री, न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री, सिंगापुर के प्रधानमंत्री, जमैका के प्रधानमंत्री, दक्षिण कोरिया के प्रधानमंत्री और यूनाइटेड नेशंस के सेक्रेटरी जनरल को ही आमंत्रित किया गया था। इन आमंत्रित राष्ट्र अध्यक्षों का चयन बहुत सोच-समझकर किया गया था।
जिस प्रकार न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जसिंडाआर्डन जी ने क्राइस्ट चर्च घटना को हैंडल किया था, उससे उनका एक बहुत बड़ा अंतर्राष्ट्रीय प्रोफाइल बना, जिससे कि युवा पीढ़ी के लिए एक वह मार्गदर्शक के रुप में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर उभर कर आई।
दोनों देशों के बीच आपसी राजनैतिक संबंधों की प्रगाढ़ता बढ़ाने के प्रयास में न्यूजीलैंड के विदेश मंत्री श्री विंस्टन पीटर्स और भारत के विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद जी की भी अगस्त माह में व्यक्तिगत बैंकॉक में मुलाकात हुई। इसी बीच न्यूजीलैंड के लीडर आफ अपोजिशन साइमन ब्रिज ने भी भारत की यात्रा की। तो आप देखेंगे और पाएंगे की दोनों देशों के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और लीडर आफ अपोजिशन ने आपस में संबंध प्रगाढ़ करने के प्रयास किए हैं। इसके अलावा 9 वर्षों के उपरांत भारत के जल सेना अध्यक्ष में भी न्यूजीलैंड आकर यहां के प्रमुख सेना अधिकारियों से मुलाकात और विचार-विमर्श किया। तो मैं कहूंगा कि पिछले कुछ महीनों में पॉलिटिकल और स्ट्रैटेजिक-डिफेंस लेवल पर दोनों देशों के तालुक्कात बढ़े हैं ।
प्रश्न : न्यूजीलैंड के साथ भारत के संबंधों का आप क्या आकलन करते हैं?
उत्तर: भारत और न्यूजीलैंड दोनों ही देश पूर्व में यूनाइटेड किंगडम की कॉलोनी रहे हैं। 1890 से भारतीयों का काम की खोज में यहां आने का सिलसिला चल पड़ा था। दोनों देशों के बीच एक कॉमन वेल्थ हेरिटेज, अंग्रेजी भाषा का उपयोग, और क्रिकेट की अपार लोकप्रियता ने आपसी संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे भारतीय दूतावास की स्थापना भी 1963 से न्यूजीलैंड में है, इससे पूर्व का कार्य ऑस्ट्रेलिया से संचालित होता था। हमारी जानकारी में यह भी लाया गया है कि न्यूजीलैंड में एशिया से सबसे पहले दो दूतावासों में जापान और भारत का नाम है। इसी के चलते हमारा प्रयास है कि भारत और न्यूजीलैंड के आपसी रिश्ते हर क्षेत्र में बढ़ें, राजनैतिक के साथ-साथ व्यापारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों में भी प्रगाढ़ता आए।
प्रश्न : न्यूजीलैंड के साथ व्यापारिक संबंधों में बढ़ोतरी के लिए आपके क्या प्रयास होंगे?
उत्तर: मेरा प्रयास रहेगा कि मेरे न्यूजीलैंड प्रवास के दौरान दोनों देशों के बीच ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट रिलेशंस और गहरे हों। मैं चाहूंगा कि दोनों देशों के बीच टेक्नोलॉजिकल आदान प्रदान भी बढ़े। जैसे कि न्यूजीलैंड हॉर्टिकल्चर, एग्रीकल्चर, डेयरी एवं पोल्ट्री टेक्नोलॉजी में काफीविकसित है। मैं चाहूंगा कि दोनों देशों के बीच केवल बेचने और खरीदने के संबंध ही ना हो। मेरा प्रयास रहेगा कि यहां की बड़ी कंपनियां भारत जाए वहां जाकर अपने रूचि के क्षेत्र में इन्वेस्ट करें, ज्वाइंट वेंचर स्थापित करें और मिलकर अपने व्यवसाय को शिखर तक पहुंचाएं। हाई कमीशन के रूप में हमारा काम है कि जो भी यहां की कंपनी भारत के साथ किसी भी स्तर पर चाहे वह व्यापारिक हो या तकनीक आदान-प्रदान हो तो उसमें आ रही किसी रुकावट को दूर करना। एक तरह से एक ब्रिजिंग का काम करना और हर तरह से हर तरह के संबंधों को मजबूत करने का है। जिसमें कि तीसरा और महत्वपूर्ण पहलू पीपल-टू- पीपल कांटेक्ट का है।
पिछले 70 सालों में भारतीयों का न्यूजीलैंड में प्रोफाइल बहुत बदला है। मुझे बताया गया के 1950 के दशक में केवल 2000 भारतीय न्यूजीलैंड में रह रहे थे और सिर्फ खेती के क्षेत्र थे। आज भारतीयों की संख्या लगभग दो लाख तीस हजार पहुंच गई है और हर क्षेत्र में चाहे वह व्यवसाय हो तकनीकी हो उच्च स्तरीय सरकारी नौकरियां हाें में अपना सिक्का जमा रहे हैं। बड़ी मात्रा में भारतीय विद्यार्थी पढ़ने आ रहे हैं और हाल के वर्षों में भारतीय पर्यटकों की भी न्यूजीलैंड में रुचि बहुत बढ़ी है। इसी के चलते हम अगले साल एक फेस्टिवल ऑफ इंडिया का न्यूजीलैंड में आयोजन करने जा रहे हैं जिसमें कि बहुत सारे भारत के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का यहां के विभिन्न शहरों में आयोजन किया जाएगा। और हमारा उद्देश्य होगा के इन कार्यक्रमों का आनंद केवल भारतीय ही ना उठाएं बल्कि उसका लाभ, ज्ञान और आनंद अक्रॉस द कम्युनिटी भी ले सके।
कुल मिलाकर आप यह कह सकते हैं कि पॉलीटिकल, सिक्योरिटी पॉलिसी, ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट और पीपल टो पीपल संबंधों में बढ़ोतरी पर ही हमारा मुख्य लक्ष होगा। इन सब को बेहतर करने के लिए एक और महत्वपूर्ण पहलू है दोनों देशों के बीच की कनेक्टिविटी। इसके लिए दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट होना एक आवश्यक बिंदु है। जिसके प्रयास के लिए पिछले ही महीने न्यूजीलैंड से एक डेलिगेशन भारत गया था। डेलिगेशन ने भारत में सिविल एविएशन सेक्रेटरी से मुलाकात की। उनकी मुलाकात एयर इंडिया और विस्तारा एयरलाइंस के शीर्ष पदाधिकारियों के साथ भी हुई। वह मिलकर इस बात की संभावना को तलाश रहे हैं कि क्या न्यूजीलैंड के मार्केट में इतना पोटेंशियल है कि भारत और न्यूजीलैंड के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू की जा सकती है। वैसे तो यह एक बिजनेस डिसीजन है लेकिन हमारा काम दोनों देशों के बीच बातचीत से इस संभावना को तलाशने और मूर्त रूप देने के प्रयास करने का है जिसे हम अपनी ओर से सफलतापूर्वक कर पा रहे हैं।
प्रश्न: हाल ही में भारत के जल सेना अध्यक्ष न्यूजीलैंड दौरे पर आए थे उस यात्रा के महत्व पर कुछ प्रकाश डालिए?
उत्तर: वर्तमान अंतरराष्ट्रीय सामरिक दृष्टिकोण से इंडियन और पेसिफिक ओशियन इंटरकनेक्टेड हो गया है| इस संदर्भ में न्यूजीलैंड की जो भौगोलिक स्थिति है वह मैरिटाइम दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है| तो भारत चाहता है कि न्यूजीलैंड के साथ नेवल और मैरिटाइम संबंधों को और मजबूत किया जाए| हमारे जल सेना अध्यक्ष की यह विजिट 9 साल बाद हुई थी। यात्रा के दौरान न्यूजीलैंड के साथ कई बातों पर विचार विमर्श हुआ, जिसमें प्रमुख डिजास्टर मैनेजमेंट के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच साउथ पेसिफिक रीजन में कैसे बेहतर तालमेल बिठाया जा सकता है। किस तरह मिलकर बेहतर नेवल सेना अभ्यास की व्यवस्था की जा सकती है। और किस तरह एक दूसरे देश के में हो रही बेहतर ट्रेनिंग व्यवस्था का लाभ ले सकंे। साथ में दोनों देशों के बीच नेवल सेना के जहाजों की विजिट हों ।
प्रश्न : आपने न्यूजीलैंड आने से पूर्व मैक्सिको में भारत के राजदूत के तौर पर कुछ बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की, कृपया उस बारे में भी पाठकों को कुछ बताएं?
उत्तर: मैं 2016 से जून 2019 तक मेक्सिको में भारत का राजदूत था, मेक्सिको बड़ा देश है, उनकी अर्थव्यवस्था भी बड़ी है, और वह एक बहुत पुरानी सभ्यता भी है। तुम मुझे इस बात का गर्व है कि मुझे वहां भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। मेक्सिको में केवल 10000 भारतीय हैं, यह आंकड़ा भी हाल ही के वर्षों में बड़ा है। वर्तमान में 180 भारतीय कंपनियां मेक्सिको में कार्यरत हैं। जिनमें प्रमुख ग्वादलाहारा शहर है जो उनका सिलिकॉन वैली माना जाता है। वहां टीसीएस कंपनी का अपना दफ्तर है जिसमें 7000 लोग कार्यरत हैं। वही एचसीएल का भी ऑफिस है। उसी तरह से एक शहर मोंटेरो है, बिल्कुल अमेरिका सीमा से लगा हुआ वहां इंफोसिस का सेंटर है। तो आईटी, फार्मास्यूटिकल और ऑटो पार्ट्स वहां प्रमुख भारतीय सेक्टर हैं, एक उसी तरह वहां एक भारतीय कंपनी है संवर्धन मदरसन ग्रुप, उनके मेक्सिको में अट्ठारह प्लांट है। उसमें करीब 22000 एंप्लोई हैं। तो कुल मिलाकर करीब 35000 जॉब भारतीय कंपनियों ने मैक्सिकन रहवासियों को उपलब्ध करा रखे हैं। ढाई बिलियन- डॉलर से ज्यादा का भारतीय इन्वेस्टमेंट मेक्सिको देश में है। मुझे मेक्सिको में भारतीय राजदूत के रूप में पदस्थ होने वाले सबसे यंगेस्ट राजदूत होने का भी गौरव मिला। हम विदेश सेवा के पदाधिकारियों को हिंदी और इंग्लिश के अलावा एक फॉरेन लैंग्वेज और सीखनी होती है। मैंने स्पेनिश भाषा का अध्ययन किया, और मुझे अपनी नौकरी के प्रारंभ में डेढ़ वर्ष तक 90 के दशक में मेक्सिको में रहने का अवसर प्राप्त हुआ था, जिसकी वजह से भी मुझे मेक्सिको में और बेहतर प्रदर्शन करने का अवसर मिला। मेरे 3 साल के मेक्सिको कार्यकाल में दोनों देशों के बीच आपसी व्यवसाय में 75% की बढ़ोतरी हुई। जब मैंने वहां कार्यभार संभाला तो मेक्सिको के साथ हमारा व्यापार 5.9 बिलियन यूएस डॉलर था, और 3 वर्ष के उपरांत जब मैंने मेक्सिको छोड़ा तो यह बढ़कर 10.16 बिलियन यूएस डॉलर हो चुका था।
जब मैं वहां गया था तो हम मेक्सिको के 13वंे हाईएस्ट ट्रेडिंग पार्टनर थे, और जब मैंने मेक्सिको छोड़ा तो हम नौवें स्थान पर आ गए थे। भारत में निर्मित होने वाली कारें मेक्सिको में सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाली कारें हैं। तो एंबेसी का इसमें यह रोल है कि हम दोनों देशों के बीच अवसरों का एक प्लेटफॉर्म मुहैया कराते हैं। लगभग हर माह में एक बार कोई ना कोई डेलिगेशन मेक्सिको से भारत और भारत से मैक्सिको आता जाता रहता था। हमने कुछ सेक्टर में विशेष फोकस किया था। जैसे हार्डवेयर, मशीन एवं टूल्स, का भारत से मेक्सिको में काफी निर्यात है। मेरे कार्यकाल में 2 साल के भीतर, भारत में निर्मित टाइल्स ने मेक्सिको के बाजार में जीरो से बढ़कर 1000 परसेंट ग्रोथ रेट हुआ। एक बार तो भारत से 100 से अधिक कंपनियों ने मेक्सिको में अपना ट्रेड शो किया था।
तो हाई कमीशन का काम कुल मिलाकर यह होता है कि हम व्यवसाय को ध्यान में रखते हुए एक प्लेटफार्म और फ्रेमवर्क मुहैया कराएं ताकि व्यवसायी विश्वास पूर्वक और सार्थक रूप से अपनी बात रख सकें और अपने व्यापार को बढ़ा सकें। इसका एक और उदाहरण, आपने सिनेपोलिस नाम सुना होगा, यह एक मेक्सिकन कंपनी है, इनके 400 सिनेमाघर भारत के भिन्न-भिन्न शहरों में सफलतापूर्वक चल रहे हैं। सन 2020 तक इनका लक्ष्य भारत में 500 सिनेमाघर स्थापित करने का है। इसकी सबसे खास बात यह है कि उन्होंने भारत के बी ग्रेड शहरों को इन सिनेमाघरों के लिए चुना है। यह बहुत बड़ी सक्सेस स्टोरी है। इसी तरह से उनकी एक किडजानिया थीम पार्क कंपनी है। जिसके थीम पार्क, नोएडा, बेंगलुरु और मुंबई में स्थापित कर चुके हैं। इस प्रकार मेरे कार्याकाल में दोनों देशों के बीच ट्रेड और इन्वेस्टमेंट रिलेशनशिप में बहुत बढ़ोतरी हुई है।
प्रश्न: न्यूजीलैंड के संदर्भ में ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट को लेकर आपकी क्या िवशेष रणनीति होगी?
उत्तर: मेने न्यूजीलैंड स्थित बिजनेस चेंबर्स और व्यापारिक संस्थानों से कहा है कि वह जो भी कॉन्फ्रेंस करते हैं वह सिर्फ टॉक- शॉप ना हों। मेरा उनसे आग्रह है कि वह मुझे काँक्रीट सुझाव दें – जिसके के आधार पर एक रोडमैप तैयार किया जा सके। जो भी रुकावटें हैं उन्हें आईडेंटिफाई किया जाये और पहले उन्हें खत्म करने का प्रयास किया जाए। दूसरा उन सेक्टरों की पहचान की जाए जिनमें की बहुत संभावनाएं हैं। उसके बाद मेरा और न्यूजीलैंड ट्रेड कमिश्नर का यह काम होगा कि हम इन संभावनाओं को मूर्त रूप प्रदान करने में सहयोग करें। यानी कि दोनों देशों के एक्सपोटर्स और इम्पोटर्स को एक प्लेटफार्म प्रदान कर आपसी व्यापारिक संभावनाओं को मूर्त रूप प्रदान करने में मदद की जा सकें। कुल मिलाकर एक प्रभावकारी व्यापारिक मैच, मेकिंग हो सके।
मेरा ऐसा मानना है कि व्यापार में विश्वास के लिए सोशल एवं फिजिकल कांटेक्ट बहुत जरूरी है। एक अच्छी बात पिछले 5 सालों में यह और हुई है कि न्यूजीलैंड और इंडिया की एक दूसरे के प्रति अवेयरनेस बहुत बड़ी है, जिसका की एक बड़ा कारण भारत की इकाेनामी का बहुत बेहतर प्रदर्शन है और अब उसका दुनिया में छठवां स्थान है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के 2025 तक भारत को ट्रिलियन डॉलर इकोनामी बनाने का जो सपना है उसको भी दुनिया से बहुत आकर्षण मिला है। तो इसलिए मैं न्यूजीलैंड और भारत के व्यवसायिक हितों को साधने वाले स्टेक-होल्डर्स के साथ एक बहुत स्पष्ट रोड मैप को लेकर चलने के लिए प्रयासरत हूं।
प्रश्न: आप 2010 से 2016 तक भारतीय पासपोर्ट सेवा प्रोजेक्ट के मुखिया रहे, सेवा प्रोजेक्ट का लाभ आज भारतीयों को किस प्रकार मिल रहा है कृपया उस पर प्रकाश डालें?
उत्तर: देखें में 2010 में इंडिया के चीफ पासपोर्ट ऑफिसर के रूप में अप्वॉइंट हुआ। मैं उस पद पर 6 साल तक रहा जोकि इंडिया का लांगेस्ट सर्विंग पासपोर्ट ऑफिसर था। हमारा काम नेशनल ई- गवर्नेंस पॉलिसी का एक हिस्सा था। कि किस तरह ई गवर्नेंस को लाकर सेवाओं में सुधार लाया जा सके। दूसरा हमारा प्रयास यह था कि क्या हम इस काम को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत कर सकते हैं। क्योंकि आप जब भी ई-गवर्नेंस की बात करते हो तो आपको एक आईटी सेक्टर के प्राइवेट पार्टनर की जरूरत पड़ती है। तो कैबिनेट का एक डिसीजन हुआ के हम इसे एक पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) प्रोजेक्ट के तहत करते हैं। 2010 में जब इसका इंप्लीमेंटेशन का काम शुरू हुआ तो यह एक अनोखा प्रयास था। क्योंकि इस तरह का कोई काम पहले गवर्नमेंट सेक्टर में कभी नहीं हुआ था। इसमें बहुत सारी चुनौतियां थी। पहले इस प्रोजेक्ट को पीपीपी मोड में हिंदुस्तान में और फिर दुनिया के हर देश में लागू करना था। इस प्रोजेक्ट में टीसीएस (टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज) हमारा पार्टनर था। हमने केवल वर्ष 2010 में ही 60 लाख पासपोर्ट बनाए। आज लगभग 13 मिलियन पासपोर्ट्स बनाए जा रहे हैं। समय सीमा में तो बहुत ही कमी आई है। पहले पासपोर्ट बनाए जाने की प्रक्रिया में 6 महीनों तक का समय लगता था अब वह समय घटकर 1 हफ्ते से भी कम का होकर रह गया है। कई बार पासपोर्ट का रिन्यूअल तो 2 दिन में ही हो जाता है।
पासपोर्ट के काम में तो यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन था। जिसके लिए मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। मेरे लिए तो यह जिम्मेदारी मेरी लाइफ की एक कैरियर डिफाइनिंग अपॉर्चुनिटी थी। आज भी मुझे लोग देश में एक चीफ पासपोर्ट ऑफिसर की तरह जानते हैं।
प्रश्न: न्यूजीलैंड में रह रहे हैं भारतीय समुदाय को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: मुझे सबसे बड़ी प्रसन्नता तो यहां यह देखकर है कि यहां भारतीय समुदाय एक बहुत सक्षम, सफल और बहुत इंटीग्रेटेड कम्युनिटी है। कई देशों में कम्युनिटी के प्रोफाइल बहुत अलग-अलग होते हैं, मेक्सिको में भी भारतीय की इमेज एक प्रोफेशनल इमेज थी। इंडोनेशिया में भी जहां मैं रहा वहां भारतीयों की इमेज बहुत हाईली क्वालिफाइड और बहुत सीनियर लेवल प्रोफेशनल्स की थी। लेकिन यहां पर पहले जो इमेज एग्रीकल्चरिस्ट की थी वह बदल कर ट्रेडर से होकर अब प्रोफेशनल्स की हुई है। आज भारतीय यहां बहुत अच्छी और सक्षम पोजीशन पर हैं। पहले भारत से यहां कुछ ही प्रांतों से लोग आते थे, लेकिन अब भारत के हर कोने से लोग यहां आ रहे हैं। बहुत इंटीग्रेटेड होने से मेरा तात्पर्य है कि वह यहां सारे इवेंट और त्यौहार मिलजुल कर बहुत अच्छे से मना रहे हैं। जिससे की संस्कृति आगे की जेनरेशंस में भी कायम रहेगी। और मुझे इस बात की भी खुशी है कि जो हमारा इंडियन मीडिया है वह बराबर इस काम में इंडियन कम्युनिटी के साथ जुड़ा है।
मुझे अपने समुदाय की यहां कामयाबी को देखकर बहुत खुशी है और मैं आपके अखबार के पाठकों के माध्यम से उन से यह गुजारिश करूंगा कि आप हमारे इंडियन हाई कमीशन के फेसबुक और ट्विटर पेज को जरूर फॉलो करें, ताकि आपको हाई कमीशन द्वारा किए जा रहे कामों की पूर्ण जानकारी होती रहे। साथ ही हमें आपका उस माध्यम से फीडबैक भी मिलता रहे। आने वाले समय में, मैं यह भी कोशिश करूंगा कि हम ओपन हाउस मीटिंग्स का आयोजन करें और अपने समुदाय से सीधा संपर्क साधें। जिसमें कि हम पासपोर्ट-वीजा संबंधी सेवाओं पर, कल्चरल और कम्युनिटी ईवेंट्स तथा बिजनेस और इन्वेस्टमेंट आदि मुद्दों पर खुलकर चर्चा कर सकें। हमारी कम्युनिटी के लिए यह भी खुशी की बात है कि हमारे हाई कमिशन के नये भवन का काम दोबारा शुरू हो गया है और जिसके कि मार्च 2020 तक पूर्ण हो जाने की संभावना है। उस भवन में हमारा मल्टीपरपज हॉल व ऑडिटोरियम भी होगा जिसमें कि हम अपने समुदाय की गैदरिंग आयोजित कर सकेंगे। मुझे इस बात की बहुत खुशी होगी कि मेरे रहते यह काम पूरा हो जाएगा।