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Saturn Rings: शनि के सात छल्ले हैं छोटे सौर मंडल जैसे, ऐसे चक्कर काट रहे जैसे सूरज के इर्द-गिर्द हों ग्रह


हमारे सौर मंडल में शनि बेहद खास ग्रह है। यह अकेला ऐसा ग्रह जिसके चारों ओर सात विशाल चक्कर हैं जो इसके इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये बर्फ और चट्टानों से बने ये सातों रिंग ध्वनि की गति से तेज घूमते हैं और सबकी गति अलग-अलग होती है। जापान की स्पेस एजेंसी JAXA के प्लैनेटरी साइंटिस्ट जेम्स ओ डॉनॉग का कहना है कि एक तरीके से यह रिंग सिस्टम छोटे सौर मंडल जैसा है जहां सभी ऑब्जेक्ट्स शनि का चक्कर काट रहे हैं। इसके नजदीक वाले ऑब्जेक्ट तेजी से घूम रहे हैं ताकि शनि से भिड़ न जाएं और बाहर वाले धीमे-धीमे।
जेम्स ने इसे दिखाने के लिए एक ऐनिमेशन तैयार किया। इसमें दिखाई दिया कि सभी रिंग अलग-अलग तरीके से घूम रहे हैं। ऐनिमेशन में शनि के हिसाब से दिखाया गया था कि कब कौन सा रिंग इसकी सतह से दिखाई देगा। जेम्स के मुताबिक बर्फ से बने शनि के रिंग में छोटे कणों से लेकर हिमपर्वत जैसी चट्टानें होती हैं। सभी अपनी-अपनी गति से शनि का चक्कर लगाते हैं। इसकी सबसे बाहरी रिंग की रफ्तार शनि के घूमने की रफ्तार से भी कम है।
जेम्स के मुताबिक रिंग्स बहुत लंबे हैं और पतले हैं। अगर इन्हें खोल दिया जाए तो सभी ग्रह इनमें समा सकते हैं। हालांकि, इनका द्रव्यमान हमारे चांद से बेहद कम है। एक चांद से शनि के 5000 रिंग सिस्टम बना सकते हैं। इनका द्रव्यमान धरती के वायुमंडल का सिर्फ तीन गुना है। जेम्स ने यह भी पाया है कि ये सभी रिंग्स धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। इनका हजारों किलो मटीरियल शनि पर हर सेकंड में बरस रहा है। हो सकता है कि ये सिर्फ 30 करोड़ साल और रहें।
इसके अलावा जेम्स ने एक और ऐनिमेशन तैयार किया था जिसमें अगले तीन साल के लिए धरती और चांद की स्थिति देखी जा सकती है। हालांकि, इसमें दोनों के बीच की दूरी सटीक नहीं है लेकिन पोजिशन सटीक है। इसके जरिए उन्होंने समझाया कि चांद दरअसल, धरती के केंद्र से 3000 मील दूर स्थित पॉइंट का चक्कर काटता है। धरती खुद उस पॉइंट पर घूमती है और खुद भी चक्कर बनाती है।
धरती-चांद सिस्टम के सेंटर ऑफ मास के इस स्पॉट को बैरिसेंटर कहा जाता है। यह एक ऐसा पॉइंट होता है जहां किसी ऑब्जेक्ट या सिस्टम को बैलेंस किया जा सकता है और इसके दोनों ओर सिस्टम का द्रव्यमान (mass) बराबर होता है। धरती-चांद का बैरिसेंटर धरती के केंद्र पर नहीं आता है बल्कि धरती की सतह के नीचे होता है।