38 साल की न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जसिंदा आरडर्न पिछले एक साल में महिला सशक्तीकरण की सबसे ताकतवर तस्वीर बन गई हैं। वे दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला पीएम हैं। मेटरनिटी लीव लेकर मातृत्व और कॅरियर में बराबरी का संदेश देने वाली भी वे इकलौती प्रधानमंत्री हैं। क्लार्क गेफोर उनके पार्टनर हैं। वे डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में होस्टिंग करते हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्होंने भास्कर के लिए लिखी अपनी और जसिंदा की कहानी…
क्लार्क गेफोर ने बताया, ”न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री यानी मेरी पार्टनर जसिंदा और मेरे बारे में पढ़कर आपको लगेगा कि महिला समानता पर दुनिया उल्टी चल रही है। हमारी कहानी में जसिंदा मातृत्व और देश से जुड़ी अपनी जिम्मेदारी के बीच संतुलन स्थापित करती दिखेंगी। मेटरनिटी लीव के बाद पॉर्लियामेंट ज्वाइन करने वाले दिन से ही हम 9 माह की बेटी को टीम की तरह पाल रहे हैं। मैं मां-बेटी के बीच पुल की भूमिका में हूं। ताकि बेटी नीव को मां का साथ मिले और न्यूजीलैंड को उसके प्रधानमंत्री का। एक दिलचस्प किस्सा साझा करता हूं।”
“पिछले साल सितंबर की ही बात है। नीव तीन महीने की थी। जसिंदा को बतौर पीएम संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने जाना था। न्यूजीलैंड की राजधानी वेलिंगटन से न्यूयॉर्क की फ्लाइट 17 घंटे की है। 6 दिन का दौरा, 40 मीटिंग्स और आने-जाने में करीब 37 घंटे की फ्लाइट। तीन महीने की बच्ची के साथ ये मुश्किल था। पर पीएम होने के नाते जसिंदा का न्यूयॉर्क जाना जरूरी था। नहीं तो महिला होने के चलते देश नहीं संभाल पाने का आरोप लगता। नीव को साथ न ले जाने पर भी आलोचना होती। हम चाहते थे कि फ्लाइट का समय बेटी की नींद की साइकिल के हिसाब से हो। हमें ऐसी फ्लाइट मिल भी गई। फ्लाइट में जसिंदा बेटी को चुप कराने के साथ-साथ भाषण की तैयारी भी कर रही थी।”
“मैं जागता रहा, पर मां-बेटी को सुला दिया। क्योंकि जसिंदा को अगले दिन न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी निभानी थी। यूएन महासभा में भाषण देना था। साथ ही एक चाहत यह भी थी कि नीव मां काे भाषण देते हुए देखे। अगले दिन मां का भाषण शुरू होते ही नीव ने टॉयलेट कर दी। मैं नीव को लेकर जगह खोजने लगा, ताकि डायपर बदल सकूं। मीटिंग रूम में हम नीव की नैपी बदल रहे थे, तभी जापान का डेलीगेशन आ गया। हमें नैपी बदलते देख वे चौंक गए। काश मैं हैरत वाली वह तस्वीर ले पाता। यूएन के इतिहास में यह पहला मौका था,जब किसी देश की पीएम तीन महीने की बच्ची के साथ बैठक में आईं हों। इस पल को दुनिया ने महिला सशक्तिकरण की सबसे ताकतवर तस्वीर के तौर पर लिया।”
“जसिंदा चाहती हैं कि वो हर उस जिम्मेदारी को पूरा करें जो पुरुष पीएम से उम्मीद की जाती है। साथ ही महिलाओं को लेकर वो भ्रम टूटे जिसमें मानते हैं कि मां बनते ही महिलाओं का करियर खत्म हो जाता है। यह बताना जरूरी है कि महिलाएं मातृत्व और करियर दोनों संभालने में सक्षम हैं। जसिंदा के जीवन में इस संतुलन का दौर मां बनने के बाद आया। पर उन्होंने पीएम से जुड़े काम में कटौती नहीं की है। हां बेबी होने से हमारा काम बहुत बढ़ गया है। इसे हम दोनों ने बांट लिया है। हम इसको लेकर सचेत रहते हैं कि नीव को कैसे मां के साथ अधिक वक्त मिले।”
“पार्लियामेंट चलने के दौरान थोड़ी मुश्किल आती है। तब मैं रोज नीव को लेकर पार्लियामेंट जाता हूं। ताकि बेटी के साथ मां समय बिता सके और उसे ब्रेस्टफीड भी करा सके। मैं नीव में आ रहे हर बदलाव को महसूस करता हूं और अपने पार्टनर से साझा करता हूं। और हां, यह सब करके मैं कोई महान काम नहीं कर रहा। दुनिया में कई लोग अपनी अलग-अलग समस्याओं को सुलझाने के लिए ऐसा कर रहे होंगे। बेटी नीव के तौर पर हमारे पास वंडरफुल प्रॉब्लम है।”
महिलाओं के हिस्से का काम करना ही असली समानता
गेफोर कहते हैं कि मैं दैनिक भास्कर के पाठकों से कहना चाहता हूं कि महिलाओं को समानता तभी मिलेगी जब हम पुरुष वो सारे काम करने के लिए तैयार हों जिन्हें अभी सिर्फ महिलाओं के हिस्से का माना जाता है। अगर हम ऐसा कर पाएं तो महिलाओं को वो सब करने का समय और मौका दोनों मिलेगा जो वो करना चाहती हैं। महिला-पुरुष समानता का यह सबसे सुखद क्षण होगा। हमारे केस में यह मॉडल सफल रहा है।