इजरायल के बाद भारत और ताइवान ने पिछले दिनों हजारों की तादाद में कामगारों को ताइपे बुलाने को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। इन कामगारों में किसे पहले बुलाया जाए, इसको लेकर विवाद शुरू हो गया है। ताइवान की श्रम मंत्री ने कहा है कि ताइवान सबसे पहले बहुत कम संख्या में भारत के पूर्वोत्तर इलाके के ईसाई कामगारों को भर्ती करेगा। उन्होंने कहा कि भारत के नार्थ ईस्ट के स्किन का कलर और उनके खाने की आदतें ठीक उसी तरह से हैं जैसे ताइवान के लोगों की होती हैं। उन्होंने कहा कि भारत से कामगारों का पहला जत्था अगले 6 से 12 महीने में पहुंच जाएगा। ताइवानी श्रम मंत्री के इस बयान के बाद विवाद शुरू हो गया है और विशेषज्ञों ने ताइवान की इन भेदभाव वाली नीतियों पर सवाल उठाया है और ताइवानी सरकार से सफाई देने की मांग की है।
ताइवान में रहने वाली विदेशी मामलों की भारतीय शोधकर्ता सना हाशमी ने ताइवानी मंत्री के बयान पर कहा कि एक भारतीय होने के नाते मुझे ताइवान में बहुत गर्मजोशी और प्रशंसा मिली। हालांकि श्रम मंत्री के इस बयान से मैं निराश हूं। यह समय फिर से आश्वासन देने का नहीं है, खासतौर पर जिस तरीके से बताया गया है। यह समय सभी तरह के भारतीयों को ताइवान में गले लगाने का है जैसाकि भारत के लोग ताइवान को अपना समर्थन देते हैं। सना हाशमी ने कहा कि इस तरह के बयान भारत-ताइवान के रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। साथ ही भारतीयों में ताइवान के प्रति जो छवि है, वह बर्बाद हो सकती है।
भारत और ताइवान रिश्ते पर पड़ सकता है असर – सना हाशमी ने कहा कि इससे दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क बढ़ाने के वर्षों से चले आ रहे प्रयास पलट सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस बयान से वह बहुत हैरान हैं। यह ताइवान की आधिकारिक नीति नहीं है लेकिन क्योंकि कुछ लोग भारतीयों का विरोध कर रहे हैं। इसी वजह से ताइवानी मंत्री सोच रही हैं कि नार्थ ईस्ट के भारतीय कामगारों को लाने से ऐसे लोगों को किसी तरह से शांत किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि मजेदार बात यह है कि ताइवान के समाज में केवल 2 प्रतिशत लोग ही ईसाई हैं। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि जल्द ही ताइवान की सरकार की ओर से इस बारे में सफाई आएगी।
Home / News / भारत के नार्थ ईस्ट के ईसाई वर्कर क्यों चाहता है ताइवान? मंत्री के बयान के बाद छिड़ी बहस, जानें पूरा विवाद