• अरविन्द सारस्वत जब कभी भी किसी विकसित देश में उपलब्ध आम जनसुविधओं के बारे में सुनता या पढ़ता हूं तो हृदय से हूक उठ जाती है। अब इसका अर्थ आप यह कदापि ग्रहण न करें कि मैं उनकी सुविधा-सम्पन्नता से जल उठता हूं। बिना किसी आत्म प्रवंचना के कहूं तो मुझे यह उनकी विपन्नता ही नजर आती है। सुख-सुविधाओं …
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पसीने की कीमत
• दीपिका जोशी शहालपुर में नारायण नामका एक अमीर साहूकार रहता था। उसका एक बेटा और एक बेटी थी। लड़की की शादी हुए तीन साल हो गये थे और वह अपने ससुराल में खुश थी। लड़का राजू वैसे तो बुद्वू नहीं था लेकिन गलत संगत में बिगड सा गया था। अपने पिता के पास बहुत पैसा है यह उसे घमंड …
Read More »ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक
• कुँअर बेचैन जन्म: 01 जुलाई 1942 ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक चाँदनी चार क़ंदम, धूप चली मीलों तक प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक घर से निकला तो …
Read More »को काहू को भाई
• नानकदेव जन्म: संवत् १५२६,कार्तिक पूर्णिमा निधन: संवत् 15९६ हरि बिनु तेरो को न सहाई। काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥ धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई। तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥ दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई। नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
Read More »त्राहि-त्राहि – इंसान
समूचा जन-समुदाय कलियुग की आपदायें सहता हुआ त्राहि-त्राहि कर रहा था। जन-समुदाय की करुण पुकार पर आसमान में एक छवि अंकित हुई और आकाशवाणी हुई- ‘‘तुम लोग कौन?’’ एक छोटे से समूह से आवाज उभरी-‘‘हिन्दू।’’ और आसमान से एक हाथ ने आकर उस हिन्दू समुदाय को आपदाओं से मुक्त कर दिया। अभी भी कुछ लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे। पुनः …
Read More »जय श्री अद्भुत चापलूस चालीसा
• अशोक गौतम भक्तो! सरकारी नौकरी में रहते आज इतने अधिक खतरे बढ़ गए हैं कि अपने को तीस मार खां कहने वाले भी कुर्सी पर बैठने से पहले सौ बार भगवान का नाम लेते हैं। क्या पता कब जनता से कुछ लेते क्राइम ब्रांच वालों के हत्थे चढ़ जाएं। क्या पता कब जैसे तबादला हो जाए! क्या पता कब …
Read More »आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है : ग़ालिब
• मिर्ज़ा असदुल्लाह खाँ ‘ग़ालिब’ जन्म : 27 दिसम्बर 1797 | निधन : 15 फ़रवरी 1869 आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है हम से अबस है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर ख़ाक में उश्शाक़ की …
Read More »विवशता
• सुमन कुमार घई पैराग्रीन बाज़ों के जोड़े ने शहर के मध्य एक ऊँची इमारत की खिड़की के बाहर कंक्रीट की शेल्फ़ को अपने अंडे देने के लिए चुना था। पता नहीं प्रकृति की गोद की चट्टान की बजाय शहर की चट्टानी इमारत उन्हें अपने बच्चे पालने के लिए क्यों अच्छी लगी थी। शहर के समाचार पत्रों में सुर्खियाँ थीं, …
Read More »हंगामा है क्यूँ बरपा
• अकबर इलाहाबादी जन्म: 16 नवम्बर 1846 निधन: 9 सितम्बर 1921 हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़[1] की ये बातें हैं इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना मक़सूद[2] है उस …
Read More »कभी जब तेरी याद आ जाय है
• फ़िराक़ गोरखपुरी जन्म: 28 अगस्त 1896 | निधन: 1982 कभी जब तेरी याद आ जाय है दिलों पर घटा बन के छा जाय है शबे-यास में कौन छुप कर नदीम1 मेरे हाल पर मुसकुरा जाय है महब्बत में ऐ मौत ऐ ज़िन्दगी मरा जाय है या जिया जाय है पलक पर पसे-तर्के-ग़म2 गाहगाह सितारा कोई झिलमिला जाय है तेरी याद …
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