यदि हस्तरेखा विशारद को हाथ की रेखाएं किसी पर्दे के पीछे से पढऩी हों और व्यक्ति देखने तक को न मिले तो एक पूर्ण अध्येता के लिए हाथ पर उगे बाल कितने भी महत्वहीन क्यों न लगें, अत्यधिक महत्व और विस्तृत अध्ययन का विषय बन जाते हैं इसलिए उन नियमों का उल्लेख प्रसंगातीत सिद्ध नहीं होता जो बालों के उगने को नियंत्रित करते हैं।
प्रकृति बालों का उपयोग शरीर में अनेक लाभकारी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करती है। बालों के रंग का कारण या बाल मोटे या महीन क्यों होते हैं और स्वभाव की सूचना कैसे देते हैं?
सबसे पहले यह है कि हर बाल अपने आप में एक अत्यंत सूक्ष्म ट्यूब है जो त्वचा से जुड़ी है और त्वचा स्नायुओं से। ये बाल अथवा ट्यूब शाब्दिक अर्थ में भी शारीरिक विद्युत का निकास वाल्व है और रंग के द्वारा वे विद्युत के निकास को ग्रहण करते हैं जिससे अध्येता स्वभाव में कुछ ऐसे गुणों का निर्धारण करने में सक्षम होता है जो अन्यथा उसे ज्ञात भी न हो पाएं।
उदाहरणार्थ यदि शरीर में लौह तत्व रंग द्रव्य का आधिक्य है तो बालों में से इस विद्युत का प्रवाह उसे इन ट्यूबों में धकेलता है और बालों को यथावश्यक काला, भूरा, सुनहरा, पका हुआ अथवा सफेद आदि रंग प्रदान करता है। इसलिए सुनहरे अथवा उजले बालों वाले व्यक्तियों के शरीर में लौह तत्व और गहरे रंग द्रव्य की कमी होती है।
नियमानुसार वे अधिक थके, हताश और व्यक्तियों व अपने आसपास से अधिक प्रभावित होने वाले होते हैं, जबकि गहरे रंग के बालों वाले ऐसे नहीं होते।
हल्के रंग के बालों वाले व्यक्तियों की तुलना में गहरे बालों वाले काम में कम उत्साही होने के बावजूद स्वभाव में अधिक आवेशयुक्त, चिड़चिड़े और प्रेम-संबंधों में अधिक उत्साही होते हैं और इसी तरह हर स्तर के रंग के बारे में कहा जा सकता है जब तक हम गहरे प्रकार के चरम विपरीत रंग तथा लाल बालों तक न पहुंच जाएं।
यदि हम बालों का निरीक्षण करें तो पाएंगे कि लाल रंग के बाल काले, भूरे या सुनहरे बालों की तुलना में अधिक मोटे प्रकार के होते हैं। यूं तो मोटे या लंबे होने के कारण यह ट्यूब परिणामत: अपने आप अधिक चौड़ी भी है और इसलिए प्रदर्शित करती है कि विद्युत का विकास अधिक मात्रा में है और इस प्रकार के स्वभाव वालों में विद्युत होती भी सबसे अधिक है।
ऐसा नहीं है कि काले बाल वालों के मुकाबले रंग द्रव्य इन लोगों में अधिक है, किंतु विद्युत का प्रवाह और शक्ति अधिक होने के परिणामस्वरूप ये लोग काले, भूरे या सुनहरी प्रकार की तुलना में अधिक भावावेश वाले और त्वरित गति से कार्यरत हो जाने वाले होते हैं।
जब शरीर बूढ़ा होने लगता है अथवा अपव्यय या क्षय के कारण दुर्बल हो जाता है तो उतनी मात्रा में विद्युत उत्पन्न न होने से लगभग पूरी की पूरी या अधिकांशत: शरीर में ही खप जाती है, रंगद्रव्य इन बालों-ट्यूबों में जमा होना बंद हो जाता है और फलत: बाल बाहरी सिरों पर सफेद होना शुरू हो जाते हैं और इसी तरह तब तक होते रहते हैं जब तक कि सारे बाल-ट्यूब-सफेद न हो जाएं।
किसी अकस्मात् झटके या दुख आदि से भी यही होता है। बाल अपने सिरों पर इस स्नायविक वैद्युत द्रव्य के इन ट्यूबों में प्रवाह की शक्ति से खड़े हो जाते हैं। सहज ही तुरंत प्रतिक्रिया आरंभ हो जाती है और कभी-कभी कुछ ही घंटों में बाल सफेद हो जाते हैं। ऐसा बहुत कम हो पाता है कि शरीर ऐसे बोझ को सहन कर सके जिसके परिणामस्वरूप शायद ही कभी बाल अपने मूल रंग में वापस आ पाते हों।
लोगों का विचार है कि दुनिया के किसी अन्य देश की तुलना मेें सफेद बाल वाले लोग अमेरिका में अधिक होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह सत्य शायद उस उच्च तनाव के कारण है जिसमें अमेरिकी लोग जीवन जीते हैं।
लोगों के स्वभाव के संबंध में उस देश के वातावरण का बहुत बड़ा हाथ होता है। किसी देश के वातावरण का उजलापन उसकी दमक, सर्दियों तक में हवा का विशेष स्नायुओं के लिए बलदायक गुण, ये सब मिलकर वहां के स्त्री-पुरुषों में एक गहन प्रतिस्पर्धी भावना भरते हैं जो वे कार्यक्षेत्र या मनोरंजन के क्षेत्र में दर्शाते हैं।
ज्योतिषियों की जानकारी में बालों के रंग का यह सिद्धांत शायद इस ढंग से इसके पहले कहीं नहीं प्रस्तुत किया गया है। यह सिद्धांत उन लोगों के लिए प्रस्तावित है जो यह कभी नहीं भूलते कि प्रकृति की पुस्तक में कुछ भी इतना तुच्छ नहीं है कि हमें ज्ञान न दे सके और चूंकि ज्ञान शक्ति है, इसलिए हमें छोटी से छोटी चीज में भी इसकी खोज में शर्म कैसी?