श्रीकृष्ण को लीलाधर कहा जाता है कि, इनका बचपन, जवानी सब लीलाओं से भरी पड़ी है। कहते हैं कृष्ण के बचपन से ही गोकुल की हर गोपी उनके प्रेम में दीवानी थी। जिनके साथ देवकीनंदन ने महारास रचाया थो, जो आज प्रेम का महापर्व माना जाता है। ठीक इस ही तरह मथुरा में उनके राजकीय वैभव की गाथा में रूक्मणी समेत कितनी ही रानियों का वर्णन मिलता है। एक कथा के अनुसार ऐसी भी आती है, जिसमें कृष्ण द्वारा एक साथ 16 हजार कन्याओं से विवाह करने का वर्णन मिलता है।
यह उस समय की बात है जब श्रीकृष्ण कंस का वध कर मथुरा के राजा बन चुके थे। इसी समय श्री कृष्ण को एक अनोखी सी सूचना मिली कि उनके और आस-पास के अनेक राज्यों से कुमारी कन्याओं का हरण किया जा रहा है। जब इस बात की ख़बर कृष्ण तक पहुंची ने तेज़ गति से न सिर्फ उस व्यक्ति और स्थान की खोज की, बल्कि उसे मृत्युदंड देकर सभी कन्याओं को मुक्त करवाकर उनके घर भेज दिया।
कहा जाता है कि कृष्ण द्वारा मुक्त कराई गई इन कन्याओं की संख्या 16 हजार थी। लंबे समय से अपनों से बिछड़कर दयनीय जीवन जी रही ये कन्याएं जब घर पहुंचीं, तो उनके घरवालों ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया। उनके माता-पिता का कहना था कि अब उन कन्याओं का चरित्र कलंकित हो गया है। अब समाज उन्हें अपना नहीं सकता और उन्हें घर में शरण देकर वे समाज में अपमान नहीं झेल सकते। इन सभी कन्याओं ने अपने अभिभावकों से दया की गुहार लगाई कि अगर उन्हें नहीं अपनाया, तो वे कहां जाएंगी।
अपनी रोती बिलकती वेटियों को देखकर भी घर वालों का दिल नहीं पसीजा और उन्होंने टका सा जवाब दे दिया कि जिस कृष्ण ने तुम्हें बचाया, उस से पूछो कि तुम्हें कहां रहना है। तुम सब घर से बाहर पराए पुरुष की शरण में रह चुकी हो, ऐसी चरित्रहीन कन्याओं से हमारा कोई संबंध नहीं है।
घर से ठुकराए जाने पर ये सभी कन्याएं एक-एक कर मथुरा जा पहुंची और कृष्ण से मदद की गुहार लगाने लगीं। भगवान कृष्ण ने जब सारी बात सुनी तो उन्होंने कहा कि अपहरण का दंश झेल रही, अपनों की याद में तरस रही इन कन्याओं का क्या दोष है? क्यों उन्हें उस अपराध का दंड दिया जा रहा है, जिसमें इनकी भागीदारी है ही नहीं। कोई किसी का अपहरण कर ले तो इसमें पीडि़त का क्या दोष। कृष्ण के समझाने पर भी कन्याओं के अभिभावक उन्हें यह कहकर अपनाने को तैयार नहीं हुए कि अब उनका मान चला गया है। इस बात से कृष्ण क्रोधित हो उठे और अपनी लीला के द्वारा 16 हजार रूपों में प्रकट हुए। उन्होंने हर एक कन्या का हाथ थाम उससे विधि-वत विवाह किया और उसे सौभाग्य का वरदान दिया। कहा जाता है कि बंदीगृह से लौटी इन कन्याओं को ठुकराने वाले माता-पिता, कृष्ण से विवाह होते ही अपनी कन्याओं को अपनाने को तैयार हो गए। इस विवाह के बाद वे बड़े गर्व से बताते कि मथुरा के राजा कृष्ण उनके दामाद हैं। इस तरह 16 हजार कन्याओं को समाज में मान दिलाने के लिए कृष्ण ने महाविवाह संपन्न किया।
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