अपने से बड़ों का अभिवादन करने के लिए चरण छूने की परंपरा सदियों से रही है। सनातन धर्म में बड़ों को प्रणाम करने की परंपरा को नियम और संस्कार का रूप दे दिया गया है। अपने से बड़े के आदर के लिए चरण-स्पर्श उत्तम माना गया है। प्रणाम के लिए जब हम अपने बड़ों या गुरुजनों के चरणों में झुकते हैं तो उनकी प्राण ऊर्जा से जुड़ जाते हैं और वह ऊर्जा प्रणाम करने वाले की चेतना को भी ऊपर उठाती है। मान्यता है कि बड़े-बुजुर्गों के चरण स्पर्श नियमित तौर पर करने से कई प्रतिकूल ग्रह भी अनुकूल हो जाते हैं। प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर चरण-स्पर्श बेहद लाभदायक होता है।
हाथ मिलाकर अथवा गले लगकर किसी का अभिवादन करने से आपसी संबंध प्रगाढ़ होते हैं तथा व्यक्ति के सभ्य, सुसंस्कृत होने की छवि भी बनती है लेकिन झुककर अभिवादन करने का अलग ही महत्व है लेकिन नमस्कार, प्रणाम कहने या चरण स्पर्श करने में ज्यादातर लोग शर्मिंदगी महसूस करते हैं क्योंकि अपनी सभ्यता को भूलकर आज हम पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण की होड़ में शामिल हो गए हैं। ‘हैलो-हाय’ कह कर हम आधुनिक और स्मार्ट होने का गर्व महसूस करते हैं लेकिन चरण छूने का मतलब है कि पूरी श्रद्धा के साथ किसी के आगे नतमस्तक होना। इसमें विनम्रता आती है। इसका एक फायदा यह भी है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है। ऐसी मान्यता है कि प्रतिदिन बड़ों के अभिवादन से आयु, विद्या, यश और बल में बढ़ौतरी होती है। विद्वान तो यहां तक कहते हैं जो व्यक्ति सुबह उठकर अपने बड़ों और माता-पिता का चरण स्पर्श करता है वो जन्नत का आराम प्राप्त करता है।
माना जाता है कि जब हम किसी आदरणीय व्यक्ति के चरण छूते हैं तो आशीर्वाद के तौर पर उनका हाथ हमारे सिर के ऊपरी भाग को और हमारा हाथ उनके चरण को स्पर्श करता है, ऐसी मान्यता है कि इससे उस पूजनीय व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा आशीर्वाद के रूप में हमारे शरीर में प्रवेश करती है, इससे हमारा आध्यात्मिक तथा मानसिक विकास होता है। आध्यात्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी चरण-स्पर्श बेहद लाभप्रद होता है। पैरों से हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने को ही हम ‘चरण स्पर्श’ कहते हैं। पैर छूना या प्रणाम करना केवल एक परंपरा या बंधन नहीं है, यह एक विज्ञान है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ा है।
पैर तीन तरह से छुए जाते हैं। पहले झुककर पैर छूना, दूसरा घुटने के बल बैठकर तथा तीसरा साष्टांग दंडवत प्रणाम। झुककर पैर छूने से कमर और रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है। दूसरी विधि से हमारे सारे जोड़ों को मोड़ा जाता है जिससे उनमें होने वाले स्ट्रैस से राहत मिलती है। तीसरी विधि में सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए तन जाते हैं, इससे भी स्ट्रैस दूर होता है। इसके अलावा झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो स्वास्थ्य और आंखों के लिए लाभप्रद होता है।
प्रतिदिन सुबह-सुबह और किसी भी कार्य की शुरूआत से पहले हमें अपने बड़े बुजुर्गों, माता-पिता और गुरुजनों के चरण स्पर्श अवश्य करने चाहिएं, इससे हमारे कार्य में सफलता की संभावना बढ़ जाती है, हमारा मनोबल बढ़ता है और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और नकारात्मक शक्ति घटती है। हम प्रण लें कि हम मॉडर्न बनने के चक्कर में पश्चिमी सभ्यता के छलावे में नहीं फंसेंगे। हम अपनी संस्कृति का पालन करते हुए चरण स्पर्श की प्रथा को आगे बढ़ाएंगे तथा खुद और अपने परिजनों को सभ्य व सुसंस्कृत बनाएंगे।