महाभारत में पांडवों व कौरवों के साथ महात्मा विदुर जी का भी अपना एक विशेष महत्व रहा है। महाभारत के इतिहास के अनुसार विदुर दासी पुत्र थे। इन्होंने अपने ज्ञान के बल पर ही इतिहास के पन्नों पर अपना अंकित किया। इन्होंने अपनी नीति नामक ग्रंथ विदुर नीति की रचना भी की। जिसमें बहुत सारी नीतियों का वर्णन किया गया है, जो जितनी उपयोगी कल थी उतनी आज भी हैं। इन पर ध्यान रखने से जीवन में सफलता अौर सुख मिलता है। विदुर जी ने कुछ ऐसे कामों के बारे में बताया है, जिनको करने से व्यक्ति की कई पीढ़ियों को नर्क के दुख झेलने पड़ते हैं।
श्लोक-
पश्च पर्श्चनृते हन्ति दश हन्ति गवानृते।
शतमर्शचानृते हन्ति सहस्त्रं पुरुषानृते।।
विदुर के अनुसार पशु को लेकर झूठ बोलने पर पांच, गाय को लेकर दस, घोड़े को लेकर सौ अौर मनुष्य को लेकर झूठ बोलने पर एक हज़ार पीढ़ियां नर्क की भागी बन जाती है।
श्लोक-
हन्ति जातानजातांर्श्च हिण्यार्थेनृतं वदन।
सर्व भूम्यनृते हन्ति मा स्म भूम्यनृतं वदे:।।
जो व्यक्ति सोने अर्थात स्वर्ण के लिए झूठ बोलता है वह अपनी आगे अौर पीछे की पीढ़ियों को नर्क का भागी बना देता है। भूमि या स्त्री को पाने के लिए जो व्यक्ति झूठ का सहारा लेता है वह अपना सर्वनाश कर बैठता है।
श्लोक-
अनिज्यया कुविवाहैर्वेदस्योत्सादनने च।
कुलान्यकुलतां यान्ति धर्मस्याति मेण च।।
पूजा-पाठ न करना, किसी का अपहरण या भगाकर विवाह करना, वेदों का अनादर करना अौर धर्म का पालन न करने से परिवार का सम्मान नष्ट हो जाता है।
श्लोक-
असूर्य को दन्दशूको निष्ठो वैरकृच्छ:।
स कृच्छूं महदाप्नोति च डचरात्पापमाचरन।।
जो मनुष्य दूसरों के गुणों में दोष ढूंढता है, अन्यों के धार्मिक स्थानों को अपवित्र करें, कड़वी बाते करने वाला निर्दयी अौर दुष्ट होता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में कई कष्ट भोगने पड़ते हैं।
श्लोक-
नष्टप्रज्ञ: पापमेव नित्यमारभते नर:।
पुण्यं प्रज्ञा वर्धयति कियमाणं पुन: पुन:।।
जिस मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, वह सदैव पाप ही करता है। वहीं पुण्य कर्म करने से व्यक्ति की बुद्धि का विकास होता है।