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ये थे भगवान विष्णु के पहले अवतार


सत्यव्रत नाम के राजा एक दिन कृतमाला नदी में सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे थे। उसी समय उनके हाथ में एक छोटी सी मछली आ गई। राजा ने उस मछली को वापिस नदी में डाल दिया तो मछली ने उसे कहा कि इस जल में बड़े जीव-जंतु मुझे खा जाएंगे। सभी राजा ने उसे अपने कमंडल में रख लिया और अपने महल ले गए। रात भर में वह मछली बढ़ गई राजा ने उसे बड़े मटके में डाल दिया।
कुछ समय के बाद वह मछली उस मटके में भी बढ़ गई तो राजा ने उसे एक तालाब में डाल दिया। लेकिन तभी राजा सत्यव्रत को ज्ञात हुआ कि यह कोई साधारण मछली नहीं है उन्होंने उसे वापिस नदी में हाल दिया और पूछा कि आप कौन है क्योकि आपका आकार आकस्मिक ही बढ़ रहा है।
राजा की प्रार्थना पर भगवान विष्णु मत्स्य अवतार को छोड़ कर अपने में रुप में आए और राजा से कहा कि “ब्रह्माजी की असावधानी के कारण हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया। वेदों को चुरा लिए जाने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया। चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला हो गया। इसलिए आज से 7 वें दिन पृथ्वी पर प्रलय आएगी। तब तुम एक बड़ी नौका में सप्त ऋषियों सहित और हर तरह के अनाज व बीजों के लेकर उस में सवार होकर लहराते महासागर में विचरण करना। तब मैं इसी रुप में आऊंगा और आपको आत्मतत्त्व का ज्ञान प्रदान करूंगा। तुम नाव को मेरे सींग में बांध लेना।”
उसके पश्चात राजा तपस्या करने लगे। प्रलय का समय आने पर बहुत तेज़ वर्षा होने लगी और समुद्र उमड़ने लगा। राजा ऋषियों, अन्न, बीजों को लेकर नौका में बैठ गए। तभी भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में वहां आए और राजा ने उनके सींग से नाव बांध दी और मछली से पृथ्वी और जीवों को बचाने की स्तुति करने लगे। भगवान ने प्रसन्न होकर और अपने वचन के अनुसार सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया और बताया- “सभी प्राणियों में मैं ही निवास करता हूँ। न कोई ऊंच है, न नीच। सभी प्राणी एक समान हैं। जगत नश्वर है। नश्वर जगत में मेरे अतिरिक्त कहीं कुछ भी नहीं है। जो प्राणी मुझे सबमें देखता हुआ जीवन व्यतीत करता है, वह अंत में मुझमें ही मिल जाता है।”
मत्स्य रूपी भगवान से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। वे जीते जी ही जीवन मुक्त हो गए। प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्य रूपी भगवान ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद छीन लिए। भगवान ने ब्रह्माजी को पुनः वेद दे दिए। इस प्रकार भगवान ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही, साथ ही संसार के प्राणियों का भी कल्याण किया।