जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इस समय कोई भी पूजा या कार्य करने से अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध का प्रारंभ इसी मुहूर्त में किया था। इसी समय शमी नामक पेड़ ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप लिया था।
क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। यह पूजा आयुध/शस्त्र पूजा के रूप में भी जानी जाती है। वे इस दिन शमी पूजन भी करते हैं। पुरातन काल में राजशाही हेतु क्षत्रियों के लिए यह पूजा मुख्य मानी जाती थी।
ब्राह्मण इस दिन मां सरस्वती की पूजा करते हैं।
वैश्य अपने बही-खाते की आराधना करते हैं।
कई जगहों पर होने वाली नवरात्र रामलीला का समापन भी आज के दिन होता है।
रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाकर भगवान राम की जीत का जश्न मनाया जाता है।
मां भगवती जगदम्बा का अपराजिता स्तोत्र करना बड़ा ही पवित्र माना जाता है।