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कुंभकर्ण से जुड़ी ये बातें नहीं जानते होंगे आप


किसने दिया कुंभकर्ण को सोने का वरदान-
जब रावण,विभीषण और कुंभकर्ण तीनों मिलकर ब्रह्मा जी की तपस्या कर रहे थे। तो ब्रह्मा जी उनकी कठोर तपस्या से बहुत प्रसन्न हो गए थे और प्रसन्न होकर तीनों को दर्शन दिए और उन्हें वरदान मांगने को कहा। ब्रह्मा जी रावण और विभीषण को उनकी इच्छा अनुसार वरदान देकर कुंभकर्ण के पास पहुंचे। लेकिन कुंभकर्ण की इच्छा सुनकर ब्रह्म जी बहुत परेशान हो गए थे और सोचने लगे कि अगर वो इतना भोजन खाता रहा तो सृष्टि खत्म हो जाएगी। इसी कारण से ब्रह्मदेव ने कुंभकर्ण के वरदान मांगने से पहले ही देवी सरस्वती के द्वारा कुंभकर्ण की बुद्धि को हर लिया। जिससे कि कुंभकर्ण जो चाहता था वह न मांग सका और उसने छह माह तक सोते रहने का वरदान ब्रह्मदेव से मांग लिया था।
रावण से भी ज्यादा बलवान था कुंभकर्ण-
कुंभकर्ण बहुत बलवान था और उससे टक्कर लेने वाला कोई भी योद्धा पूरे जगत में नहीं था। ब्रह्मा जी के वरदान के कारण वह मदिरा पीकर 6 महीने तक सोता रहता था। लेकिन जब कुंभकर्ण जागता था तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाता था। उसका शरीर भी बहुत ही विशाल था।
माता सीता के हरण से कुंभकर्ण को हुआ था दुख-
माता सीता के हरण के बाद जब श्री राम रावण के साथ युद्ध करने लंका पहुंचे। दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध होने लगा था। तब कुंभकर्ण सो रहा था। श्रीराम की सेना के हाथों रावण के कई योद्धा मारे गए तो रावण की सेना कुंभकर्ण को उठाने की कोशिश कर रही थी। कई प्रयत्नों के बाद जब कुंभकर्ण अपनी नींद से जागा,तो उसे पता चला कि उसके बड़े भाई रावण ने सीता का हरण कर लिया है। जब उसे यह बात पता चली तो कुंभकर्ण को बहुत ही दुख हुआ और उसने रावण को बहुत समझाया यहां तक कि सीता को कश्रीराम को लौटाकर उनसे माफी मांगने को कहा लेकिन रावण न माना।
देवर्षि नारद से मिला था कुंभकर्ण को तत्वज्ञान-
जैसे कि हमने आपके उपरोक्त में बताया है कि कुंभकर्ण 6 महीने तक सोता था। उसका पूरा एक दिन भोजन करने में और सभी का हाल-चाल जानने में ही चला जाता था। रावण जो भी पाप करता था उसमें कुंभकर्ण का कोई सहयोग नहीं होता था। इसी कारण कुंभकर्ण को पाप-पुण्य और धर्म-अधर्म से कोई लेना-देना नहीं था। इसी वजह से स्वयं देवर्षि नारद ने जाकर कुंभकर्ण को तत्वज्ञान का महान उपदेश दिया था।
रावण के मान-सम्मान के लिए किया था श्रीराम से युद्ध-
कुंभकरण के लाख समझाने पर भी रावण न माना और प्रभु श्री राम से युद्ध करने के लिए उन्हें ललकारने लगा। ये जानते हुए भी कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं और उनसे जीतना असंभव है लेकिन अपने भाई का मान रखते हुए कुंभकरण श्री राम से युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। रामचरित्र मानस के अनुसार कुंभकरण श्री राम के सामने युद्ध करने गया तो था लेकिन उसके मन में श्री राम के प्रति अनन्य भक्ति थी। भगवान के बाण लगते हीं कुंभकरण में अपना शरीर त्याग दिया और उसकी मृत्यु हो गई। ऐसे उसका जीवन सफल हो गया।