हिंदू धर्म में भगवान विष्णु ने बहुत सारे अवतार लिए और उनके हर अवतार के पीछे कोई न कोई वजह ज़रूर रही है। आज हम बात करेंगे उनके नरसिंह अवतार के बारे में। नरसिंह अवतार लेकर भगवान ने बुराई पर अच्छाई की जीत की अवधारणा को बल दिया। भगवान ने ये अवतार केवल हिरण्यकश्यप को मारने और प्रहलाद की रक्षा करी। इस अवतार में भगवान विष्णु आधे नर और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए थे। कहते हैं हिरण्यकश्यप को मारने के बाद भी भगवान को गुस्सा शांत नहीं हुआ था और उन्होंने पूरी पृथ्वी पर हाहाकार मचा दिया था। किसी देव में भी हिम्मत नहीं थी कि भगवान के क्रोध को शांत कर सके। लेकिन फिर भोलेनाथ ने एक युक्ति से भगवान के क्रोध को शांत करवाया था। तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की कथा के बारे में-
पौराणिक कथा के अनुसार जब हिरण्यकश्यप ने कठोर तप करके ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि वे न कभी मनुष्य से मरे न जीव से, न वे धरती पर मरे व न आकाश पर, न किसी अस्त्र न ही शस्त्र, न दिन में व न ही रात में और न वे बाहर मरे व न ही अंदर। ये वरदान प्राप्त करने के बाद वे अपने आप को तीनों लोको का स्वामी समझने लगा। उसने सबको यह बोल दिया कि विष्णु भक्ति छोड़कर केवल उसी का नाम जरा जाए।
कुछ समय बाद जब उसके घर प्रह्लाद का जन्म हुआ तो वह भगवान विष्णु का परम भक्त हुआ। अपने पुत्र को भगवान की भक्ति से हटाने के लिए उसने लाख प्रयत्न किए, लेकिन प्रह्लाद पर किसी भी चीज़ का कोई असर नहीं हुआ। फिर एक दिन जब प्रह्लाद ने उससे कहा कि भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं। तो हिरण्यकश्यप ने उसे चुनौती देते हुए कहा कि अगर तुम्हारे भगवान सब जगह हैं, तो इस स्तंभ में क्यों नहीं दिखते? यह कहते हुए उसने अपने राजमहल के उस स्तंभ पर प्रहार कर दिया। तभी स्तंभ में से भगवान विष्णु नृसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठाया महल की दहलीज पर लाकर अपनी गोद में लिटा लिया और अपने नाखूनों से उसका सीना चीर दिया और वह मारा गया।
हिरण्यकश्यप को मारने के बाद भी नरसिंह भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ। तीनों लोक उनके गुस्से से कांपने लगे। सभी देव मिलकर भगवान शिव के पास गए और उनसे भगवान को शांत करने के लिए प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ब्रह्मांड में सबसे शक्तिशाली माने जाते हैं लेकिन वे भी नृसिंह के सामने कमजोर पड़ने लगे। फिर भोलेनाथ ने नरसिंह भगवान के गुस्से को शांत करने के लिए मानव, चील और सिंह के शरीर वाले भगवान सर्वेश्वर का अवतार लिया और उन दोनों के बीच 18 दिनों तक युद्ध चला। शास्त्रों में ये शिव जी का 16वां अवतार माना जाता है।
अंत में भगवान नरसिंह सर्वेश्वर अवतार के आगे कमजोर पड़ने लगे और तब उनका क्रोध भी शांत हुआ। तब सबने मिलकर भगवान की स्तुति करी और भगवान नरसिंह श्री हरि में लीन हो गए।