वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम अपने पिता के वचन का पालन करते हुए 14 वर्ष का वनवास अपना लिया था। उनके इस वनवास के साक्षी बनने उनकी अर्धांगिनी सीता न भ्राता लक्षमण उनके साथ गए थे। जिस दौरान रावण द्वारा माता सीता का अपहरण कर लिया गया था। अपनी अर्धांगिनी को रावण के चगुंल से निकालने के लिए श्री राम ने अपने परम भक्त हनुमान व उनकी वानरों की सेना साथ रावण के युद्ध किया और उन्हें वहां लंका से लाए। परंतु अपनी पवित्रता का प्रमाण देने के लिए सीता माता ने पहले अग्नि परीक्षा दी। फिर अयोध्या जाने के बाद भी जब इतने वर्षों बाद भी लोगों द्वारा उन पर सवाल उठाए गए तो उन्होंने अपने आप को धरती में विलीन कर लिया था।
हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में इस तथ्य का वर्णन किया गया है। कुछ मान्यताओं के अनुसार उत्तराखंड के फलस्वाड़ी गांव में वो स्थान है जहां सीता माता ने भू-समाधि ली थी। बताया जा रहा है यहां के मुख्यमंत्री द्वारा में कहा भगवान राम और माता सीता में आस्था रखने वाला दुनिया का हर व्यक्ति फलस्वाड़ी गांव में जरूर आना चाहेगा जहां माता सीता ने भू-समाधि ली थी। जिसके लिए वो कुछ ठोस कदम उठाएंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रस्तावित सीता माता सर्किट, पौड़ी के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। जिस पर काम भी शुरू कर दिया गया है।
यहां जानें सीता माता के इस समाधि स्थल से जुड़ी प्रचलित पौराणिक कथाएं-
मां सीता द्वारा धरती में समा जाने की कथाओं में विन्न स्थानों का वर्णन किया जाता है जिससे किसी भी स्थान को प्रमाणिकता कहना ज़रा मुश्किल है कि मां सीता इसी स्थान पर धरती में समाई थीं या किसी और स्थान पर। विद्वानों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में संत कबीर नगर जिले में गंगा किनारे एक स्थान पर समाधि ली थी। कहा जाता है कि मां सीता ने तब देखा कि लव और कुश भगवान राम का मुकुट लेकर आए गए तो उनसे रहा नहीं गया और वह दुखी होकर धरती में समा गईं।
तो वहीं रामायण से जुड़ी अन्य किंवदंतियों के अनुसार लव और कुश के बड़े होने पर जब एक बार भगवान राम ने मां सीता को अपने दरबार में बुलाया और पुन: अपने शुद्धता की शपथ लेने की बात कही। तो मां सीता उनकी इस बात से आहत हो गई और धरती मां से उन्हें अपनी गोद में बैठाने का आग्रह किया। जिसके बाद भरे दरबार में धरती फट गई और मां सीता उनकी गोद में समा गईं। अगर इस किंवदंति को सच माना जाए तो माता सीता ने अयोध्या में समाधि ली थी।