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अमेरिका: COVID-19 के इलाज में प्लाज्मा के असर पर छिड़ी बहस, FDA चीफ ने मांगी माफी


अमेरिका में चिकित्सा विशेषज्ञों के विरोध के बाद फूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन (FDA) आयुक्त स्टीफन हॉन ने कोविड-19 मरीजों का प्लाज्मा से उपचार के जीवन रक्षक लाभों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए मंगलवार को माफी मांगी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार को घोषणा की थी कि FDA ने कोविड-19 मरीजों के उपचार में उस प्लाज्मा के इस्तेमाल को इमर्जेंसी ऑथराइजेशन जारी करने का निर्णय किया है जो कोरोना वायरस से ठीक हुए ऐसे मरीजों से लिया जाएगा जिनमें एंटीबॉडी अधिक होंगे।
‘राजनीतिक रूप से प्रेरित फैसला’
इसके बाद वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषज्ञ इस दावे का विरोध कर रहे हैं। ट्रंप ने उक्त निर्णय को ऐतिहासिक बताया था जबकि इलाज की गुणवत्ता अभी स्थापित नहीं हुई है। रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन से पहले ट्रंप द्वारा की गई इस घोषणा को लेकर संदेह जताया गया कि कहीं यह राजनीतिक रूप से प्रेरित तो नहीं है ताकि राष्ट्रपति के महामारी से निपटने के तरीके की आलोचनाओं से ध्यान हटाया जा सके।

हॉन से रेकॉर्ड सही करने को कहा गया
हॉन ने यह कहते हुए ट्रंप का समर्थन किया था कि यदि प्लाज्मा का इस्तेमाल करते हुए इलाज किया जाए तो 100 में से 35 लोग कोरोना वायरस से बच जाएंगे। यह दावा मायो क्लीनिक के प्रारंभिक निष्कर्षों से अधिक था। इस 35 प्रतिशत आंकड़े का अन्य वैज्ञानिकों और कुछ पूर्व FDA अधिकारियों ने आलोचना की, जिन्होंने हॉन से रिकॉर्ड को सही करने के लिए कहा था।
देशभर के 38 इंस्ट्यूशन प्लाज्मा थेरेपी पर रिचर्स कर रही हैं। अभी इनके परिणाम सामने आना बाकी है। दिल्ली एम्स में भी इस पर रिसर्च चल रही थी, जिसमें ये बात सामने आई है कि प्लाज्मा थेरेपी कोई बहुत सार्थक इलाज नहीं है। ट्रायल के दौरान कोरोना वायरस से मौत को रोकने में इस थेरेपी का कोई खास परिणाम सामने नहीं आया। लेकिन इस थेरेपी के कोई साइड इफेक्ट नहीं मिले। ये पूरी तरह से सेफ पाई गई।
डॉ सोंजा ने संस्थान द्वारा आयोजित एक वेबकास्ट में कोविड -19 रोगियों में प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग करने के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, “जब तक हम मरीजों के सबसेट की विशेषताओं को जानते हैं, तब तक हमें बहुत ही सावधानी से इसका उपयोग करना चाहिए।
एम्स में मेडिसिन विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ मनीष सोंजा ने कहा, “कंवलसेंट प्लाज्मा कोई जादू की गोली नहीं है।” उन्होंने कहा कि रोगियों का एक निश्चित सबसेट हो सकता है जो इससे लाभान्वित हो सकते हैं लेकिन यह अभी भी इसकी जांच प्रगति पर है।

इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) भी प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए परीक्षण कर रहा है लेकिन परिणाम अभी तक सामने नहीं आए हैं। इस बीच, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने हाल ही में दिखाया कि प्लाज्मा थेरेपी प्राप्त करने वाले रोगियों में 28 दिन में मृत्यु दर में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था

दिल्ली एम्स में दो ग्रुप इस पर रिसर्च करने के लिए लगाए गए थे। दोनों को इसकी उपयोगिता अलग-अलग मिली लेकिन रिजल्ट दोनों के एक ही थे। दोनों ग्रुप को कोरोना वायरस से होने वाली मौतों को रोकने में इस थेरेपी से कोई बड़ा अंतर सामने नहीं मिला। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि एक ग्रुप को इस थेरेपी को एक स्टैंडर्ड इलाज बताया। उन्होंने कहा कि इससे मौत के आंकड़ों पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

वैज्ञानिकों ने कहा, ” हमने कांसल प्लाज्मा की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए एक छोटा परीक्षण किया, जिसमें मृत्यु दर का कोई लाभ नहीं दिखा। हालांकि, रोगियों की श्वसन मापदंडों में स्पष्ट सुधार था। कोरोनो मरीज जिनको ये थेरेपी मिलती है उनको सांस लेने में तकलीफ कम हो जाती है लेकिन जिनको नहीं मिलती उनको सांस लेने में तकलीफ बनी रहती है।

सीधे तौर पर इस थेरपी में एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जाता है। किसी खास वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी तभी बनता है, जब इंसान उससे पीड़ित होता है। अभी कोरोना वायरस फैला हुआ है, जो मरीज इस वायरस की वजह से बीमार हुआ था। जब वह ठीक हो जाता है तो उसके शरीर में इस कोविड वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनता है। इसी एंटीबॉडी के बल पर मरीज ठीक होता है। जब कोई मरीज बीमार रहता है तो उसमें एंटीबॉडी तुरंत नहीं बनता है, उसके शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनने में देरी की वजह से वह सीरियस हो जाता है।

‘जरूरत पड़ने पर वापस लिया जाएगा फैसला’
हॉन ने कहा, ‘मैंने रविवार रात को प्लाज्मा के लाभ के बारे में जो टिप्पणी की थी उसके लिए मेरी आलोचना की गई। आलोचना पूरी तरह से उचित है। बेहतर होता यदि मैं यह कहता कि आंकड़ों से पता चलता है कि जोखिम में कमी आती है, जोखिम पूरी तरह से कम नहीं होता।’ उन्होंने यह भी साफ किया है कि अभी इसे मॉनिटर किया जाएगा और जरूरत पड़ने पर यह ऑथराइजेशन वापस ले लिया जाएगा। FDA ने मायो क्लीनिक के देशभर के उन अस्पतालों से एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर यह निर्णय लिया था जो मरीजों के इलाज में प्लाज्मा का उपयोग कर रहे हैं।