Tuesday , March 19 2024 10:56 PM
Home / Hindi Lit / आलेख

आलेख

जो नहीं जानते है कि हम क्या है, हम कौन है, वे पागल ही है।

जब ओस्पेंस्की, गुरूजिएफ के पास साधना कर रहा था तो उसे तीन-चार महीनों तक इस बात के लिए बहुत श्रम करना पड़ा कि आत्म-स्मरण की एक झलक मिले। निरंतर तीन महीनों तक ओस्पेंस्की, एकांत घर में रहकर एक ही प्रयोग करता रहा—आत्म-स्मरण का प्रयोग। तीस व्यक्तियों ने उस प्रयोग में हिस्सा लिया और पहले ही सप्ताह के खत्म होते-होते सत्ताईस …

Read More »

गांधी के राम

  कुछ दिनों पहले मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा, “वो तो अच्छा हुआ कि गोडसे ने गांधी को मार दिया, अगर गांधी आज ज़िंदा होता तो मैं मार देता।”   आज के परिप्रेक्ष्य में इस बात के समर्थन में कुछ पाठक भी होंगे, लेकिन सिर्फ समर्थन के लिए ही यह बात लेख के प्रारम्भ में नहीं कही और ना ही गाँधीजी के …

Read More »

क्या, लिंग परीक्षण एवं कन्या भ्रूण ह्त्या बिना माँ व परिवार की जानकारी व इच्छा के हो सकती है ?

बेटी बचाओ अभियान की सफलता के लिए चिकित्सा जगत में डर के साथ साथ जन सामान्य में भी पीसीपीएनडीटी क़ानून का किसी न किसी रूप में भय होना अनिवार्य है!!  कन्या भ्रूण ह्त्या रोकने के अभियानों में पहले तो मीडिया व अब सरकारी विभागों द्वारा स्टिंग ऑपरेशन द्वारा नाटकीय मरीज बन बन के डॉक्टरों को सबक सिखाने के बावजूद भी …

Read More »

कौन कहता है, डॉक्टर संवेदन शील या भावुक नहीं होते ?

Dr. Ashok Mittal Director & Chief Orthopedic Surgeon 21 दिसम्बर, 2015 की शाम को जब मैं मुंबई से लौट रहा था तो प्लेन में बेठने के बाद वो एक घंटे तक रनवे पे ही खड़ा रहा, फिर डेढ़ घंटे की उड़ान. पूरे ढाई घंटे नितांत अकेला रहा. उन तन्हाई के पलों में भागचंद भैया के बारे में ही सोच रहा …

Read More »

सांप्रदायिकता से जूझते अफ़सानानिगार मंटो

• अरुण प्रसाद रजक सआदत हसन मंटो का पूरा संघर्ष आदमीयत या इंसानियत के लिए था। वे जानते थे कि अहसास के शुरुआती छोर से लेकर आखिरी छोर तक एक इन्सान सिर्फ इन्सान है, उससे बड़ा न कोई धर्म है, न मज़हब, न व्यवस्था। मंटो आदमीयत के इस अहसास से अच्छी तरह वाकिफ़ थे। उनके अफ़सानों का सरोकार न राजनीति से …

Read More »