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काव्य

मुझको भी तरकीब सिखा कोई, यार जुलाहे

• गुलज़ार मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते जब कोई तागा टूट गया या ख़तम हुआ फिर से बाँध के और सिरा कोई जोड़ के उसमें आगे बुनने लगते हो तेरे इस ताने में लेकिन इक भी गाँठ गिरह बुनतर की देख …

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जो जाता है वो यादों को मिटा कर क्यों नहीं जाता

• प्रबुद्‌ध सौरभ मेरी आँखों से हिजरत का वो मंज़र क्यों नहीं जाता बिछड़ कर भी बिछड़ जाने का ये डर क्यों नहीं जाता अगर यह ज़ख़्म भरना है, तो फिर भर क्यों नहीं जाता अगर यह जानलेवा है, तो मैं मर क्यों नहीं जाता अगर तू दोस्त है तो …

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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक

•  कुँअर बेचैन जन्म: 01 जुलाई 1942 ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक चाँदनी चार क़ंदम, धूप चली मीलों तक प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली कृष्ण …

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को काहू को भाई

•  नानकदेव जन्म: संवत् १५२६,कार्तिक पूर्णिमा निधन: संवत् 15९६ हरि बिनु तेरो को न सहाई। काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥ धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई। तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥ दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई। नानक …

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आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है : ग़ालिब

• मिर्ज़ा असदुल्लाह खाँ ‘ग़ालिब’ जन्म : 27 दिसम्बर 1797 | निधन : 15 फ़रवरी 1869 आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं …

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हंगामा है क्यूँ बरपा

• अकबर इलाहाबादी जन्म: 16 नवम्बर 1846 निधन: 9 सितम्बर 1921 हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़[1] की ये बातें हैं इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है उस मय से …

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कभी जब तेरी याद आ जाय है

• फ़िराक़ गोरखपुरी जन्म: 28 अगस्त 1896 | निधन: 1982 कभी जब तेरी याद आ जाय है दिलों पर घटा बन के छा जाय है शबे-यास में कौन छुप कर नदीम1 मेरे हाल पर मुसकुरा जाय है महब्बत में ऐ मौत ऐ ‍‍ज़ि‍न्दगी मरा जाय है या जिया जाय है पलक …

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कविता : फिर बसंत आना है – कुमार विश्वास

तूफ़ानी लहरें हों अम्बर के पहरे हों पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों सागर के माँझी मत मन को तू हारना जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है राजवंश रूठे तो राजमुकुट टूटे तो सीतापति-राघव से राजमहल छूटे …

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