
तालिबान की खुलकर मदद की थी। इसी कारण तालिबान ने कतर की राजधानी दोहा में अपना राजनीतिक कार्यालय खोला था। इसी कार्यालय के जरिए तालिबान ने अमेरिका के साथ शांति समझौता किया। इसी के चलते तालिबान को अफगानिस्तान में पकड़ जमाने का मौका मिल गया। तालिबान के इस कार्यालय को चलाने के लिए फंडिंग कतर ने की। कतर के ही दिए विमान में तालिबान के नेता उड़ान भर पूरी दुनिया की सैर करते थे। यह वही तालिबान है, जिसने अफगानिस्तान में लाखों लोगों का कत्लेआम किया, महिलाओं पर भयंकर जुल्म ढाहे और लड़कियों की शिक्षा को बंद कर दिया। अब उसी तालिबान ने नागरिक सरकार को बंदूक के दम पर अपदस्थ कर अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है।
अल नुसरा फ्रंट को दिए लाखों-करोड़ों डॉलर : द टाइम्स ऑफ लंदन के अनुसार, कतर के शाह के एक निजी कार्यालय के जरिए अल नुसरा फ्रंट को अरबों डॉलर की मदद दी गई थी। सीरियाई संगठनों ने दावा किया था कि इस फंडिंग के पीछे दो कतरी बैंक, कई दान, धनी व्यवसायी, प्रमुख राजनेता और नागरिक शामिल थे। लंदन में उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका में कहा गया था कि कतर के इन संस्थाओं, राजनेताओं और शाही परिवार ने मुस्लिम ब्रदरहुड, सुन्नी इस्लामी संगठन के समन्वय में काम करने वाले अल नुसरा फ्रंट की मदद की थी। सीरियाई लोगों द्वारा दायर कानूनी कार्रवाई के अनुसार, अल-नुसरा फ्रंट को फंड देने में सबसे बड़ी भूमिका कतरी अमीरों की थी। अल नुसरा फ्रंट को अमेरिका, ब्रिटेन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया है।
आईएसआईएस और हिजबुल्लाह की फंडिंग का आरोप : जर्मनी के पूर्व विकास मंत्री गर्ड मुलर ने 2014 में कतर पर इस्लामिक स्टेट को वित्तपोषित करने का आरोप लगाया था। यह वही साल था, जब इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने सीरिया और इराक में धर्म के नाम पर जमकर तबाही मचाई थी। 2020 में जेरूसलम पोस्ट ने दावा किया था कि आतंकवादी संगठन हिज़्बुल्लाह के कथित वित्तपोषण के लिए कतर के शासन की जांच के लिए अमेरिका ने एक टीम भेजी थी। अमेरिका और यूरोपीय संघ हिजबुल्लाह को आतंकवादी संगठन का दर्जा दिया हुआ है। हिजबुल्लाह लेबनान का शिया आतंकवादी संगठन है, जिसके निशाने पर इजरायल रहता है।
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