
ऑनलाइन चरमपंथ से निपटने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक बैठक हुई जिसमें न्यूजीलैंड की पीएम जैसिंडा अर्डन के नेतृत्व में 17 देशों के राजनेताओं और दिग्गज टेक कंपनियां शामिल हुईं । बैठक में शामिल सभी देशों की सरकारों और टेक कंपनियों ने आतंकवादी और हिंसक सामग्री को ऑनलाइन माध्यम से हटाने के लिए क्राइस्टचर्च कॉल नाम के समझौते (शपथ पत्र) पर हस्ताक्षर किए।
सरकारों और कंपनियों के बीच अपनी तरह का पहला गैर-बाध्यकारी समझौता है। बताते चलें कि न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च की एक मस्जिद पर 15 मार्च को हुए आतंकी हमले के बाद इस बैठक को किया गया है, जिसमें 51 मुस्लिमों की हत्या कर दी गई थी और घटना को फेसबुक पर लाइव स्ट्रीम किया गया था। इस घटना ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। इसके बाद जैसिंडा के नेतृत्व में अन्य विश्व नेताओं ने इस तरह की घटनाओं को ऑनलाइन माध्यम से हटाने के लिए पहल की। बैठक में फ्रांसीसी पीएम इमैनुएल मैक्रॉ, ब्रिटिश पीएम थेरेसा मे, कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो शामिल थे। भारत ने भी इस शपथ पत्र पर साइन किए।
अमेरिका ने कहा कि वह इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं करेगा, लेकिन इस बैठक के लक्ष्यों का समर्थन करता है। बैठक में ट्विटर के सीईओ के साथ ही अमेजन, डेलीमोशन, गूगल माइक्रोसॉफ्ट, क्वांट, यूट्यूब के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग इस बैठक में मौजूद नहीं थे, इसके बजाय उन्होंने वैश्विक मामलों और संचार के लिए अपने नए उपाध्यक्ष निक क्लेग की प्रतिनियुक्ति की थी, जो ब्रिटेन के पूर्व डिप्टी पीएम थे।
न्यूजीलैंड की पीएम जैसिंडा ने तकनीकी कंपनियों को जिम्मेदारी का बोझ उठाने के लिए कहते हुए फ्री स्पीच के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि ये नियम स्वतंत्र, खुले विचारों और इंटरनेट के लिए बाधा नहीं बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह श्रीलंका में हुए आतंकी हमले के बाद सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के विपरीत है। यह सरकारों द्वारा आतंकवादी सामग्री पर कानूनों को सुनिश्चित करने और कंपनियों द्वारा अपने प्लेटफार्मों पर आतंकवादी सामग्री की मात्रा को सार्वजनिक करने के लिए एक प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करने की प्रतिज्ञा थी।
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