
भारत और अमेरिका के बीच मंत्री स्तर की 2+2 बातचीत होने जा रही है। 27 अक्टूबर को अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर भारत में होंगे। दोनों अपने-अपने समकक्षों यानी एस जयशंकर और राजनाथ सिंह से मुलाकात करेंगे। पॉम्पियो ने साफ कर दिया है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से पैदा हुए खतरों पर चर्चा होगी। इस दौरान, भारत और अमेरिका के बीच में ऐतिहासिक समझौता होने जा रहा है। 2+2 मीटिंग में बेसिक एक्सचेंज ऐंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फॉर जियोस्पेशियल कोऑपरेशन (BECA) पर हस्ताक्षर होंगे। लंबे वक्त से इसकी कोशिशें चल रही थी। अमेरिका के साथ BECA से भारत को बेहद सटीक जियोस्पेशियल डेटा मिलेगा जिसका मिलिट्री में बेहतरीन इस्तेमाल किया जा सकता है। BECA क्या है और इससे क्या फायदे होंगे, आइए समझते हैं।
भारत-अमेरिका के बीच BECA क्या है?
BECA उन तीन मूल समझौतों में आखिरी है जो अमेरिका अपने खास सहयोगियों संग करता है। इससे संवेदनशील और क्लासिफाइड जानकारी साझा करने के रास्ते खुलते हैं। बाकी दो समझौते मिलिट्री लॉजिस्टिक्स और सिक्योर कम्युनिकेशंस के लिए हैं। BECA का मकसद नॉटिकल और एयरोनॉटिकल चार्ट्स समेत जियोस्पेशियल डेटा की साझेदारी है। अमेरिका के सटीक सैटेलाइट्स के डेटा से मिलिट्री ठिकानों को निशाना बनाने के साथ-साथ नेविगेशन में भी मदद मिलेगी।
क्या-क्या साझा करेंगे दोनों देश?
BECA के तहत जो आइटम्स एक्सचेंज किए जा सकते हैं, उनमें मैप्स, नॉटिकल और एयरोनॉटिकल चार्ट्स, कॉमर्शियल व अन्य अनक्लासिफाइड इमेजरी, जियोडेटिक, जियो फिजिकल, जियो मैग्नेटिक और ग्रेविटी डेटा शामिल हैं। यह डेटा प्रिंट या डिजिटल फॉर्मेट में हो सकता है। BECA में क्लासिफाइड सूचनाएं साझा करने का भी प्रावधान है मगर पूरी सावधानी के साथ ताकि वह जानकारी किसी तीसरे के हाथ न लगे।
भारत को कैसे होगा फायदा?
डेटा शेयरिंग दोनों तरफ से होगी लेकिन BECA से भारत को फायदा ज्यादा है। उसे मिलिट्री ग्रेड डेटा का एक्सेस मिलेगा जिसकी मदद से टारगेट को सटीकता के साथ लोकेट किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, मिलिट्री ग्रेड कोऑर्डिनेट्स से मिसाइलों या हवा में लॉन्च किए जाने वाले बमों को किसी आतंकी ठिकाने पर टारगेट किया जा सकता है, वह भी एकदम सटीक। कैप्टन विक्रम महाजन (रिटा.) कहते हैं, “इस एग्रीमेंट से मिलने वाला डेटा बड़े काम का होगा। लॉन्च-रेंज नेविगेशन और मिसाइल टारगेटिंग की एक्युरेसी बढ़ जाएगी। अभी के हालात देखते हुए, यह डेटा भारत की पश्चिमी और उत्तरी सीमा पर काम आ सकता है।”
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