
शास्त्रों में वर्णित है, कामदा एकादशी का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाने का विधान है। इसे आम भाषा में जिसे फलदा एकादशी भी कहकर बुलाया जाता है। शब्द फलदा का अर्थ है फल की प्राप्ति और शब्द कामदा का अर्थ है कामनाओं की दात्री अर्थात कामनाओं को पूरा करने वाली। इसे शास्त्रों में भगवान विष्णु का उत्तम व्रत कहकर संबोधित किया गया है। कामदा एकादशी को ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करने वाली एकादशी माना जाता है।
कामदा एकादशी व्रत कथा
कामिका एकादशी इतनी शुभ फलदाई है की उसके स्मरण मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस दिन किए गए पूजन से जो फल मिलता है वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में दर्शन करने से भी प्राप्त नहीं होता। सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस अमोघ फल की प्राप्ति होती है वही फल भगवान श्री कृष्ण की अर्चना से मिलता है। जो मनुष्य समुद्र और वन सहित सारी पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है। वे दोनों जातक ही एक समान फल के भागी होते हैं। आज रात को जागरण करने से यमदूत का दर्शन नहीं होता और न ही कभी दुर्गति को प्राप्त हुआ जा सकता है।
कामदा एकादशी व्रत कल: ये है व्रत विधि, महत्व और राशि अनुसार उपाय
एकादशी के दिन सांझ ढले दीप दान करने से प्राप्त होने वाले असंख्य पुण्यों का लेखा- जोखा तो चित्रगुप्त भी नहीं जानते। एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं। घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है।
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