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धरती पर गिरे 456 करोड़ साल पुराने इंद्रधनुषी उल्कापिंड Aguas Zarcas में छिपे हो सकते हैं जीवन की उत्पत्ति के राज


कोस्टा रीका में पिछले साल मिले इंद्रधनुष रंग के उल्कापिंड (Rainbow Asteroid) के टुकड़े में धरती पर जीवन की शुरुआत से जुड़े रहस्य छिपे हो सकते हैं। ये उल्कापिंड एक ऐस्टरॉइड से टूटकर ला पालमेरा और ऐगुअस जारकस गांवों में पिछले साल अप्रैल में फैल गया था। ये ऐस्टरॉइड हमारे सोलर सिस्टम के वक्त का बचा हुआ हिस्सा बताया जाता है और इससे निकला उल्कापिंड, Aguas Zarcas कई कार्बन कंपाउंड्स के मिलकर बने होने की संभावना है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें कॉम्प्लेक्स ऑर्गैनिक कंपाउंड हो सकते हैं क्योंकि यह शुरुआती Milky Way की उसी धूल से बना है जो 1969 में ऑस्ट्रेलिया में पाया गया था। उसमें अमीनो ऐसिड भी मिले थे। अभी इस बात की पुष्टि की जानी बाकी है और टीम को उम्मीद है कि इसमें प्रोटीन मिल सकते हैं।

इसलिए खास है यह उल्कापिंड
आकलन के मुताबिर Aguas Zarcas 456 करोड़ साल पुराना है। यह एक महिला के घर में छत से गिरा और 2.4 पाउंड के उल्कापिंड को वहीं टेस्ट किया गया। स्कूल ऑफ द जियॉलजी के पेट्रॉग्रफी ऐंड जियोकेमिस्ट्री सेक्शन ने एक साल तक इसे स्टडी किया। बताया गया है कि यह एक कार्बनेशस कॉन्ड्राइट (Carbonaceous chondrite) है जो हमारे सूरज के विकसित होने से पहले बना था। Carbonaceous chondrite कार्बन से भरपूर होते हैं और इनमें अमीनो ऐसिड भी होते हैं।
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ऐस्टरॉइड्स वे चट्टानें होती हैं जो किसी ग्रह की तरह ही सूरज के चक्कर काटती हैं लेकिन ये आकार में ग्रहों से काफी छोटी होती हैं। हमारे सोलर सिस्टम में ज्यादातर ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति यानी मार्स और जूपिटर की कक्षा में ऐस्टरॉइड बेल्ट में पाए जाते हैं। इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं।

करीब 4.5 अरब साल पहले जब हमारा सोलर सिस्टम बना था, तब गैस और धूल के ऐसे बादल जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे छूट गए, वही इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स में तब्दील हो गए। यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता। कोई भी दो ऐस्टरॉइड एक जैसे नहीं होते हैं। आपने कई बार सुना होगा कि एवरेस्ट जितना बड़ा ऐस्टरॉइड धरती के पास से गुजरने वाला है तो कभी फुटबॉल के साइज का ऐस्टरॉइड आने वाला है। ब्रह्मांड में कई ऐसे ऐस्टरॉइड्स हैं जिनका डायमीटर सैकड़ों मील का होता है और ज्यादातर किसी छोटे से पत्थर के बराबर होते हैं।

पृथ्वी पर विनाश के लिए सिर्फ इनका आकार अहम नहीं होता। अगर किसी तेज रफ्तार चट्टान के धरती से करीब 46 लाख मील से करीब आने की संभावना होती है तो उसे स्पेस ऑर्गनाइजेशन्स खतरनाक मानते हैं। NASA का Sentry सिस्टम ऐसे खतरों पर पहले से ही नजर रखता है। इस सिस्टम के मुताबिक जिस ऐस्टरॉइड से धरती को वाकई खतरे की आशंका है वह है अभी 850 साल दूर है। साल 2880 में न्यूयॉर्क की empire state building जितना बड़ा ऐस्टरॉइड 29075 (1950 DA) के पृथ्वी की ओर की आने की आशंका है। हालांकि, वैज्ञानिकों को विश्वास है कि आने वाले वक्त में Planetary Defense System विकसित कर लिया जाएगा जिस पर काम पहले ही शुरू हो चुका है।

ऐस्टरॉइड्स की बनावट भी अलग होती है जैसे कई चट्टानी होते हैं, तो कोई क्ले या Nickel और लोहे जैसे मेटल से बना होता हैं। हमारा सोलर सिस्टम और ग्रह कैसे बने, इस राज की तह तक जाने के लिए ऐस्टरॉइड्स की स्टडी बेहद अहम होती है। तो वैज्ञानिक इन विशाल, खतरनाक चट्टानों को स्टडी कैसे कर पाते होंगे? इसका जवाब है उल्कापिंड-
अब हम आपको बताते हैं कि ऐस्टरॉइड्स और उल्कापिंड में क्या अंतर होता है और ये आपसे कैसे जुड़े हुए हैं।

दरअसल, उल्कापिंड ऐस्टरॉइड का ही हिस्सा होते हैं। किसी वजह से ऐस्टरॉइड के टूटने पर उनका छोटा सा टुकड़ा उनसे अलग हो जाता है जिसे उल्कापिंड यानी meteroid कहते हैं। जब ये उल्कापिंड धरती के करीब पहुंचते हैं तो वायुमंडल के संपर्क में आने के साथ ये जल उठते हैं और हमें दिखाई देती एक रोशनी जो शूटिंग स्टार यानी टूटते तारे की तरह लगती है लेकिन ये वाकई में तारे नहीं होते। और ये Comet यानी धूमकेतु भी नहीं होते।

धूमकेतु भी ऐस्टरॉइड्स की तरह सूरज का टक्कर काटते हैं लेकिन वे चट्टानी नहीं होते बल्कि धूल और बर्फ से बने होते हैं। जब ये धूमकेतु सूरज की तरफ बढ़ते हैं तो इनकी बर्फ और धूल वेपर यानी भाप में बदलते हैं जो हमें पूंछ की तरह दिखता है। खास बात ये है कि धरती से दिखाई देने वाला कॉमट दरअसल हमसे बेहद दूर होता है जबकि अगर उल्कापिंड देख पा रहे हैं तो इसके मतलब वह धरती के वायुमंडल में दाखिल हो चुका है।

जरूरी नहीं है कि हर उल्कापिंड धरती पर आते ही जल उठे। कुछ बड़े आकार के उल्कापिंड बिना जले धरती पर लैंड भी करते हैं और तब उन्हें meteorite कहा जाता है। NASA का जॉन्सन स्पेस सेंटर दुनिया के अलग-अलग कोनों में पाए गए meteorites का कलेक्शन रखता है और इन्हीं की स्टडी करके ऐस्टरॉइ़ड्स, planets और हमारे सोलर सिस्टम की परतें खोली जा जाती हैं।

जीवों में पाए जाने वाले अमीनो ऐसिड मिले
ऑस्ट्रेलिया में मिले ऐसे ही उल्कापिंड Murchison को दुनियाभर के लैब में टेस्ट किया गया है और इसमें करीब 100 अमीनो ऐसिड मिले हैं जिनमें से कई धरती के जीवों में पाए जाते हैं। कई ऐसे भी हैं जो अभी तक किसी जीव में नहीं पाए गए है। Murchison में न्यूक्लियोबेस भी पाए गए थे जिनसे RNA जैसे जेनेटिक मॉलिक्यूल बनते हैं। यहां तक कि पिछले साल ही इनमें RNA का अहम हिस्सा शुगर मॉलिक्यूल राइबोज (Sugar molecule ribose) पाया गया था।