पंद्रह साल पहले 11 सितंबर को अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और रक्षा मुख्यालय पेंटागन पर चरमपंथी हमले हुए थे जिनमें करीब तीन हज़ार लोग मारे गए थे.
इन पंद्रह सालों में इस घटना ने पूरी दुनिया में बहुत कुछ बदल दिया.
चरमपंथ को लेकर अमरीकी नीति में बदलाव और भविष्य की योजनाओं पर बोस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हुसैन हक़्क़ानी की राय पढ़ें-
“भले ही अमरीका में 9/11 के बाद उतना बड़ा हमला नहीं हुआ लेकिन पूरी दुनिया में अब भी चरमपंथ है. दुनिया में कई जगह चरमपंथी हमले हुए हैं.
अमरीका में अब वो माहौल नहीं रहा जो 9/11 के तुरंत बाद था. बहुत से अमरीकी कहते हैं कि ‘दो जंगे इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में बग़ैर किसी वजह की लड़ ली.’
इससे अमरीका को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है. जहां तक दुनिया की बात है तो अमरीका कई सारे देशों को चरमपंथियों का समर्थन करने से रोक नहीं पाया और ना ही चरमपंथ को पूरी तरह से ख़त्म कर पाया है.
अमरीका को चरमपंथ ख़त्म करने के लिए सोची समझी रणनीति से काम लेना होगा. आधे-अधूरे मन से काम नहीं चलेगा.
इस्लामिक स्टेट (आईएस) सारे मुसलमानों को ना सही, लेकिन जिन थोड़े-बहुत मुसलमानों को अपनी गिरफ्त में लेने में कामयाब हुए है, उसकी बदौलत वो दुनिया में कई जगह चरमपंथी वारदातों को अंज़ाम देने में कामयाब हो रहा है.
इसकी वजह से ख़ुद मुसलमानों को बहुत नुकसान हो रहा है. चरमपंथ की वजह से दुनिया में मारे गए लोगों में मुसलमानों की संख्या ही सबसे ज्यादा है.
अमरीका जैसी अंतरराष्ट्रीय ताकतों को इसमें पूरे मन से दिलचस्पी लेनी होगी, नहीं तो दुनिया के कई हिस्सों में चरमपंथ के जज़ीरे (टापू) बन जाएंगे और इससे चरमपंथ पूरी दुनिया में फैलेगा.
दो जंग लड़ने के बाद अमरीका ने सबक लिया कि ख़ुद सामने से जाकर भिड़ने की जगह संबंधित देशों की नीतियों को बदला जाए.
लेकिन अगले कुछ सालों में यह भी बदल सकती है क्योंकि इस नीति का कोई बहुत अच्छा नतीजा नहीं निकला है. अमरीका पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे देशों की नीतियों में कोई ख़ास बदलाव नहीं ला सका है.
इसलिए मेरे ख्याल से अब एक नई सोच सामने आएंगी जिसमें दोनों चीजों का समन्वय होगा, कि कैसे संबंधित देशों की नीतियों को बदला जाए और कैसे सीधे तौर पर चरमपंथियों से निपटा जाए.
चरमपंथ की वजह से दुनिया में कई जगह मुसलमानों को लेकर एक नापसंद करने का रवैया कई लोगों में देखा गया है. इसकी आड़ में कुछ लोग इस्लाम के ख़िलाफ़ प्रौपेगेंडा करने में भी कामयाब हो गए हैं.
9/11 के बाद इस्लामोफोबिया पूरी दुनिया में बढ़ गया है लेकिन इस्लामोफोबिया और इस्लामी चरमपंथ दोनों का मुकाबला एक साथ करना होगा.
इसमें कई साल लग सकते हैं. इसके लिए सोच-समझ और एक पूरी योजना की जरूरत है जो कि अभी शुरू हुई है, मुकम्मल नहीं हुई.
जहां तक सिर्फ़ ख़ुद को सुरक्षित करने की बात है, तो अमरीका में कुछ लोगों का मानना है कि अमरीका का पहला काम ख़ुद को सुरक्षित करना है, ना कि पूरी दुनिया का चौकीदार बनना.
जबकि कुछ लोग यह मानते हैं कि जब तक पूरी दुनिया सुरक्षित नहीं होगी, तो अमरीका अकेले कैसे सुरक्षित रहेगा.”
(बोस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और सुरक्षा मामलों के जानकार हुसैन हक़्क़ानी से बीबीसी संवाददाता निखिल रंजन की बातचीत पर आधारित)
( साभार : बी बी सी )