मकर संक्रांति से पूर्व एक माह तक खर मास होता है। जिसमें किसी भी अच्छे काम को अंजाम नहीं दिया जाता परन्तु मकर संक्रांति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरूआत होती है और शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं किंतु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इस पर्व पर खासतौर पर तिल-गुड़ का ही महत्व होता है। इस दिन तिल, गुड़ का दान करना, दाल-चावल की खिचड़ी का दान करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस दिन तिल, खिचड़ी और गुड़ दान करने से आपके अशुभ परिणामों में कमी आती है।
मकर संक्रांति का राष्ट्रव्यापी पर्व मूलत: सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश की पूजा है। यह सूर्य पर्व है, जिसकी आराधना का मूल उद्देश्य आत्मजागृति है। इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। आध्यात्मिक उपलब्धियों एवं ईश्वर के पूजन-स्मरण के लिए इस संक्रांति काल को विशेष फलदायी माना गया है।
उत्तरायण को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र समय माना गया है। महाभारत में भी कई बार उत्तरायण शब्द का उल्लेख आया है। सूर्य के उत्तरायण होने का महत्व भीष्म पितामह की इच्छामृत्यु से भी जुड़ा है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि जब सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायन होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुन: जन्म लेना पड़ता है।