
कई दशक तक ग्लोबल इकॉनमी का इंजन रहे चीन की इकॉनमी का दम फूलने लगा है। देश की इकॉनमी कई मोर्चों पर संघर्ष कर रही है और अब फिच ने भी चीन की क्रेडिट रेटिंग का डाउनग्रेड कर दिया है। उनका कहना है कि चीन कई तरह की आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है और उसके वित्तीय स्थिति को लेकर जोखिम लगातार बढ़ता जा रहा है। फिच ने चीन के आउटलुक को स्टेबल से निगेटिव कर दिया है। इससे चीन की क्रेडिटवर्दीनेस के भी डाउनग्रेड होने की आशंका बढ़ गई है। हालांकि फिच ने अभी चीन के सॉवरेन बॉन्ड्स की रेटिंग को A+ पर बरकरार रखा है। चीन लंबे समय से रियल एस्टेट के संकट से जूझ रहा है जिससे पूरी इकॉनमी के डूबने का खतरा पैदा हो गया है।
फिच ने एक बयान में कहा कि क्रेडिट रेटिंग में बदलाव इस बात को दर्शाता है कि चीन में पब्लिक फाइनेंस आउटलुक को लेकर जोखिम लगातार बढ़ रहा है। देश प्रॉपर्टी पर निर्भर ग्रोथ से सस्टेनेबल ग्रोथ मॉडल की तरफ जा रहा है जिससे आगे इकॉनमी का भविष्य को लेकर अनिश्चतता है। चीन की सरकार रियल एस्टेट पर निर्भरता कम करने के लिए दूसरे सेक्टर्स पर फोकस कर रही है। देश की जीडीपी में रियल एस्टेट की करीब 30 फीसदी हिस्सेदारी है। लेकिन पिछले कुछ साल से यह गहरे संकट में है और इस कारण देश की पूरी इकॉनमी के चौपट होने की आशंका जताई जा रही है।
बढ़ रहा है कर्ज – फिच का अनुमान है कि चीन में सरकार का घाटा 2024 में बढ़कर जीडीपी का 7.1 फीसदी पहुंच सकता है जो पिछले साल 5.8 फीसदी था। यह घाटा 2020 के बाद सबसे ज्यादा होगा जब कोरोना महामारी के कारण लगाई गई पाबंदियों से सरकार का खजाना बुरी तरह प्रभावित हुआ था। हालांकि चीन की सरकार ने फिच के इस कदम पर अफसोस जताया है। सरकार का कहना है कि उसने फिच रेटिंग्स की टीम के साथ शुरुआती चरण में पूरी संजीदगी के साथ बातचीत की थी और यह रिपोर्ट चीन की असली तस्वीर बयां नहीं करती है। इसमें इकनॉमिक ग्रोथ में फिस्कल पॉलिसी के पॉजिटिव रोल के बारे में नहीं बताया गया है। लॉन्ग टर्म में इससे इकॉनमी को काफी फायदा होगा।
इससे पहले दिसंबर में रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी चीन की क्रेडिट रेटिंग को स्टेबल से निगेटिव कर दिया था। उसका कहना था कि प्रॉपर्टी सेक्टर गहरे संकट में है और इस कारण पूरी इकॉनमी के प्रभावित होने की आशंका है। अमेरिका के बाद चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है। लेकिन पिछले कुछ समय से चीन की इकॉनमी कई मोर्चों पर संघर्ष कर रही है। मंदी की आशंका के कारण लोग खर्च करने से बच रहे हैं। इससे घरेलू खपत प्रभावित हुई है। साथ ही अमेरिका के साथ रिश्तों में तनाव बना हुआ है। देश का एक्सपोर्ट गिर रहा है जबकि विदेशी निवेशक भी मुंह मोड़ने लगे हैं। पिछले साल चीन के शेयर मार्केट का प्रदर्शन दुनिया में सबसे खराब रहा। विदेशी कंपनियां भी चीन से अपना बोरिया-बिस्तर समेट रही हैं।
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