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लिट्टे के नाम से कांपती थी श्रीलंका की सेना, भारत ने लगाया प्रत‍िबंध, क्‍या फिर से ‘जिंदा’ होंगे प्रभाकरन के तमिल टाइगर?


भारत सरकार ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि ये संगठन जनता के बीच अलगाववादी प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हुए तमिलनाडु में समर्थन आधार बढ़ा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 3 की उप-धारा (1) को लागू करते हुए ये प्रतिबंध बढ़ाया है। गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है कि लिट्टे अभी भी उन गतिविधियों में लिप्त है जो देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं। लिट्टे की 2009 में श्रीलंका में अपनी सैन्य हार हो गई थी लेकिन भारत सरकार मानती है कि उसने अभी भी ‘ईलम’ (तमिलों के लिए एक स्वतंत्र देश) की अवधारणा को नहीं छोड़ा है और गुप्त रूप से धन जुटाने के साथ-साथ संगठन को खड़ा करने की कोशिश में भी जुटा है।
लिट्टे इस समय भले ही बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं दिखता है लेकिन एक समय इस संगठन और इसके नेता प्रभाकरन का ना सिर्फ श्रीलंका में आतंक था बल्कि दक्षिण भारत में भी ये एक्टिव थे। उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में एक स्वतंत्र तमिल राज्य, ईलम स्थापित करने की मांग करने वाले लिट्टे की स्थापना 1976 में वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने की थी। कुछ समय में ही लिट्टे दुनिया के सबसे मजबूत विद्रोही समूहों में से एक बन गया था। संगठन ने गुरिल्ला हमलों से श्रीलंका सरकार को चिंता में डाल दिया था। 1983 में संगठन ने 13 सैनिकों की हत्याकर दी थी, इसके बाद श्रीलंकाई सेना ने जवाबी हमला किया। इसके बाद काफी समय तक श्रीलंका सरकार और लिट्टे के बीच लड़ाई चली थी।
लिट्टे के प्रभाव का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इसने 1985 तक श्रीलंका में जाफना प्रायद्वीप के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण कर चुका था। लिट्टे ने 1987 तक अपनेप्रतिद्वंद्वी तमिल संगठनों के लोगों को भी मार डाला था। लिट्टे के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए उस समय की भारत सरकार को अपनी सेना श्रीलंका भेजनी पड़ी थी। अक्टूबर 1987 में भारतीय शांति-रक्षा बल (आईपीकेएफ) ने लिट्टे से जाफना को छीन लिया था। हालांकि कुछ समय बाद 90 के दशक में फिर से लिट्टे की ताकत बढ़ी और उसने कई गुरिल्ला हमलों को अंजाम दिया।
मई 1991 में तमिलनाडु में आत्मघाती हमले में पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी की हत्या को भी लिट्टे के लोगों ने ही अंजाम दिया था। लिट्टे ने अगस्त 1992 में जाफना में एक बारूदी सुरंग विस्फोट कर 10 वरिष्ठ सैन्य कमांडरों को मार डाला था। मई 1993 में श्रीलंका के राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या, इसके बाद जनवरी 1996 में कोलंबो के केंद्रीय बैंक पर हमला कर 100 लोगों की हत्या और जुलाई 2001 में कोलंबो के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हमले को लिट्टे ने अंजाम दिया। लिट्टे की ब्लैक टाइगर्स नाम की यूनिट ने कई आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया और बड़े पैमाने पर दहशत फैलाई।

2009 में हुआ लिट्टे का खात्मा और प्रभाकरन की मौत – 1990 और 2000 के दशक में लिट्टे और सरकार के बीच कई बार सीजफायर की बात हुई और कई बार टूटी। लिट्टे के लड़ाकों औरसरकारी बलों के बीच भारी लड़ाई में हजारों लोग मारे गए। 2006 में यूरोपीय संघ ने प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर लिया। इसके दो साल बाद 2008 में श्रीलंका के बलों को बड़ी सफलता मिली और लिट्टे के प्रमुख गढ़ों पर उसने कब्जा कर लिया। आखिरकार जनवरी 2009 में लिट्टे का प्रशासनिक केंद्र किलिनोच्ची शहर सरकार के नियंत्रण में आ गया। मई के मध्य में सैन्य बल विद्रोहियों के अंतिम गढ़ पर कब्जा करने में सफल रहा और लिट्टे नेता प्रभाकरन मारा गया। श्रीलंका में लिट्टे करीब तीन दशक तक सरकारी बलों से लड़ता रहा। इस लड़ाई में अलग-अलग संस्थाएं 70,000 से 80,000 लोगों के मारे जाने का दावा करती हैं। वहीं विस्थापितों की संख्या को लाखों में माना जाता है।