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श्रीलंका में चुनाव आज, दो पूर्व राष्ट्रपतियों के बेटे भी आजमा रहे किस्मत, राजनीति की विरासत को बढ़ा पाएंगे आगे?


श्रीलंका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर भारत की नजर है। शनिवार को यहां 13,400 से ज्यादा मतदान केंद्रों पर वोटिंग शुरू हुई। श्रीलंका में 2022 के आर्थिक संकट के बाद पहला चुनाव है। राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे देश को आर्थिक चुनौतियों से निकालने के मुद्दे पर लड़ रहे हैं।
चुनावों में परिवारवाद का आरोप सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया भर में देखा जाता है। श्रीलंका के चुनाव में भी परिवारवाद देखा जा रहा है। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे और रणसिंघे प्रेमदासा के बेटे भी मैदान में हैं। श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए शनिवार को मतदान शुरू हो गया। साल 2022 में श्रीलंका ने भयानक आर्थिक संकट देखा था। इसके बाद से यह श्रीलंका में पहला चुनाव है। देश भर में 13,400 से ज्यादा मतदान केंद्रों पर एक करोड़ 70 लाख लोग अपने मताधिकारों का इस्तेमाल करेंगे।
मतदान सुबह सात बजे प्रारंभ हुआ जो शाम पांच बजे तक जारी रहेगा। चुनाव परिणाम रविवार तक घोषित किए जाने की संभावना है। मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (75) देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के अपने प्रयासों की सफलता के आधार पर एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। कई विशेषज्ञ इसके लिए उनकी सराहना कर चुके हैं।
चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला – त्रिकोणीय चुनावी लड़ाई में विक्रमसिंघे को नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) के 56 वर्षीय अनुरा कुमारा दिसानायके और समागी जन बालावेगया (एसजेबी) के साजिथ प्रेमदासा (57) से कड़ी टक्कर मिल रही है। विश्लेषकों का मानना है कि 1982 के बाद से श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनावों के इतिहास में पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है।
चुनाव में परिवारवाद! – साजिथ प्रेमदासा: इस चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा के बेटे साजिथ प्रेमदासा भी मैदान में हैं। एसजेबी का गठन 2020 में श्रीलंकाई संसदीय चुनाव को अलग से लड़ने के लिए किया गया था। प्रेमदासा बार-बार अपनी सिंहली बौद्ध पहचान उजागर करते रहे हैं। उन्होंने खुलेआम श्रीलंकाई युद्ध अपराध के आरोपियों का अपनी पार्टी में स्वागत किया है।
नमल राजपक्षे: पूर्व श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे श्रीलंका पोदुजना पेरामुना (SLPP) से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं। SLPP श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (SLFP) से अलग हुई है। 2016 में उनकी पार्टी SLFP से अलग हुई जो उस समय पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के अधीन था। राजपक्षे की पार्टी सिरिसेना प्रशासन के लिए एक मजबूत विपक्ष बनाने में कामयाब रही। उन्होंने अल्पसंख्यकों को रियायतों के विरोध में एक कट्टरपंथी सिंहली राष्ट्रवादी दृष्टिकोण का समर्थन किया।