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भारत-पाकिस्तान में इस बार मौन रहकर जंग क्यों देख रहा अमेरिका? युद्ध रूकवाने आपातकालीन कोशिशें क्यों नहीं कर रहे ट्रंप? जानें


पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने 2019 में पुलवामा आतंकी हमले को याद करते हुए अपनी किताब “नेवर गिव एन इंच” में लिखा है कि “मुझे नहीं लगता कि दुनिया को ठीक से पता है कि फरवरी 2019 में भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता परमाणु संघर्ष में कितनी करीब आ गई थी।”
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए सख्त प्रतिक्रिया दी है। दोनों देशों के बीच का तनाव पूर्ण युद्ध की कगार तक पहुंच गया है। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए ऑपरेशन “सिंदूर” के तहत पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। लेकिन हैरानी की बात ये है कि अमेरिका की तरफ से इस युद्ध को रूकवाने के लिए कोई कोशिश नहीं हो रही है। जबकि भारत और पाकिस्तान के बीच के हालात आपातकालीन हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद बस इतना कहा कि “मैं बस उम्मीद करता हूं कि यह जल्दी खत्म हो जाए।” बुधवार को वो दो कदम और आगे बढ़े लेकिन बहुत कम उत्साह दिखाते हुए सिर्फ इतना कहा कि “मैं दोनों के साथ मिलता हूं, मैं दोनों को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं, और मैं उन्हें इसे हल करते हुए देखना चाहता हूं।” ट्रंप ने आगे कहा कि “वे एक दूसरे के खिलाफ हैं। इसलिए उम्मीद है कि वे अब रुक सकते हैं। … अगर मैं मदद करने के लिए कुछ कर सकता हूं, तो मैं वहां रहूंगा।”
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने भारत और पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों से टेलीफोन पर बात की है, लेकिन उन्होंने अभी तक दोनों देशों के तनाव को कम करने के लिए अमेरिका की तरफ से क्या कोशिश हो रही है, इसकी कोई जानकारी नहीं दी है। तो क्या ऐसा इसलिए क्योंकि अभी तक कूटनीति के लिए वक्त नहीं आया है? तो क्या अमेरिका चाहता है कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच जंग जब चरम पर पहुंच जाए, फिर अमेरिका के लिए डिप्लोमेसी का वक्त आएगा?
ट्रंप के सिर से क्यों उतर गया ‘मध्यस्थता’ का भूत? – डोनाल्ड ट्रंप कुछ देशों को मिलाकर एक इंटरनेशनल गठबंधन बनाने में काफी कम विश्वास करते हैं। जबकि उनकी दिलचस्पी इस बात में ज्यादा होती है कि छोटे देश अमेरिका की छत्रछाया में रहे और वो उनपर रोब जमा सकें। डोनाल्ड ट्रंप ने जब राष्ट्रपति चुनाव फिर से लड़ने की घोषणा की थी, उस वक्त उन्होंने चंद घंटों में यूक्रेन युद्ध रोकने का दावा किया था। उन्होंने इजरायल-हमास युद्ध को खत्म करते हुए मिडिल ईस्ट में शांति लाने का ढोल पीटा था। लेकिन 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले ट्रंप को अब तक समझ में आ गया होगा कि दुनिया उनके इशारे पर नहीं चलती है। यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए ट्रंप ने अपने अनुभवहीन दूत स्टीव विटकॉफ के नेतृत्व में टीम बनाई, जो दो-तीन बैठकों के अलावा कुछ नहीं कर सके।
अमेरिका के जिन राष्ट्रपतियों ने अतीत में सफल मध्यस्थता की है, जिनमें जिमी कार्टर की तरफ से इजरायल और मिस्र के बीच शांति समझौता समझौता करवाना हो या बिल क्लिंटन की कोशिशों से यूगोस्लाविया में युद्ध खत्म करवाना, इसके लिए कई महीनों तक अथक कूटनीतिक कोशिशें की गईं। उससे भी बड़ी बात, कूटनीति शुरू करने से पहले गहन तैयारियां की गईं। लेकिन भारत और पाकिस्तान जब 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद एक युद्ध में फंसने के लिए निकल पड़े, फिर भी ट्रंप प्रशासन की तरफ से होमवर्क नहीं शुरू किया गया। अमेरिका ने 2000, 2008 और 2019 में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष रोकने में अहम भूमिका निभाई थी। सीएनएन की रिपोर्ट में पूर्व ब्रिटिश राजनयिक विलसी-विल्सी ने कहा कि “अब हमारे पास व्हाइट हाउस में एक ऐसा राष्ट्रपति है, जो कहता है कि वह दुनिया का पुलिसवाला नहीं बनना चाहता है। या फिर वो भारतीय प्रधानमंत्री के ज्यादा करीब हैं।”