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बच्चे से हो गया है झगड़ा? बातचीत शुरू करने के लिए अपनाएं 4 तरीके, टीनएजर खुद आकर बोलेगा- सॉरी मम्मा !

टीनएज में बच्चों और पैरेंट्स के बीच कई बार झगड़े हो जाते हैं। इसकी वजह यह है कि इस उम्र में बच्चे खुद को समझदार समझने लगते हैं और अपने फैसले खुद लेना चाहते हैं। वहीं दूसरी तरफ, माता-पिता को यह चिंता होती है कि नाजुक उम्र में उनकी औलाद कोई गलत कदम न उठा ले। इसी वजह से टकराव हो जाते हैं। ऐसे में पैरेंट्स को बेहद सावधानी से यह सिचुएशन हैंडल करनी चाहिए।
टीनएजर में कदम रखते ही बच्चों और माता-पिता के बीच टकराव होना आम हो जाता है। कभी पढ़ाई को लेकर बहस छिड़ जाती है, तो कभी दोस्तों की वजह से पैरेंट्स की चिंता बढ़ जाती है। कई बार तो मोबाइल फोन या सोशल मीडिया पर रोक लगाने से झगड़ा हो जाता है। दरअसल, इस उम्र में बच्चों को लगता है कि उन्हें पूरी आजादी मिलनी चाहिए, जबकि पैरेंट्स को लगता है कि इस समय उनका कंट्रोल बनाए रखना बेहद जरूरी है।
इन्हीं वजहों से कई बार बात इतनी बिगड़ जाती है कि पैरेंट्स और बच्चों के बीच बोलचाल तक बंद हो जाती है। अब ऐसे में अभिभावकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है बातचीत दोबारा कैसे शुरू करें? अगर आप भी इसी स्थिति से गुजर रहे हैं, तो घबराइए नहीं। आज हम आपके लिए लाए हैं एनएलपी प्रैक्टिशनर अवनी की ओर से सुझाए गए 4 ऐसे स्मार्ट और असरदार तरीके लेकर आए, जिनसे
आप अपने टीनएजर बच्चे के साथ दोबारा बातचीत शुरू कर सकते हैं। साथ ही संभव है कि बच्चा आपकी कोशिश को देखते हुए खुद आकर गले लग जाएगा और बोल दे “सॉरी मम्मा। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
न दें साइलेंट ट्रीटमेंट – एनएलपी प्रैक्टिशनर अवनी द्वारा इंस्टाग्राम पर शेयर किए गए एक वीडियो के मुताबिक, अगर 13 से 17 साल के टीनएज बच्चों से झगड़ा हो जाए, तो दोबारा बातचीत शुरू करने के लिए पैरेंट्स ध्यान रखें कि को पॉज करना चाहिए, लेकिन डिस्कनेक्ट नहीं। वह कहती हैं, लड़ाई के बाद शांत होना जरूरी है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप बच्चे को इग्नोर करें या साइलेंट ट्रीटमेंट दें।
बातचीत की करें पहल – अवनी आगे बताती हैं कि कई बार बच्चा खुद बातचीत शुरू नहीं करता, लेकिन अंदर ही अंदर वो इस इंतजार में होता है कि पहले आप पहल करें। जब माता-पिता पहला कदम बढ़ाते हैं, तो बच्चे को यह महसूस होता है कि मेरी वैल्यू है। इसलिए संवाद की पहल आप कर दें।
ऐसा बिल्कुल न कहें – एनएलपी प्रैक्टिशनर कहती हैं कि लड़ाई के दौरान बच्चों को पैरेंट्स की जिस एक बात से सबसे ज्यादा तकलीफ होती है, वो होता है पैरेंट्स का ईगो। दरअसल होता क्या है कि पैरेंट्स बातचीत के लिए तैयार तो होते हैं, लेकिन शुरुआत ऐसे करते हैं कि ‘तुमने ऐसा किया, इसलिए मैं चिल्लाई या अगर तुमने बात मानी होती, तो मैं गुस्सा ही क्यों करता?’ ऐसा बिल्कुल भी न कहें।
सॉफ्ट जेस्चर से करें बातचीत – एनएलपी प्रैक्टिशनर कहती हैं कि कई बार ऐसा होता है कि बच्चा बिल्कुल भी बात करने के मूड में नहीं होता। ऐसे में जबरदस्ती बातचीत न करें, बल्कि इस सिचुएशन में शब्दों से नहीं, सॉफ्ट जेस्चर से बात कहिए।
पैरेंट्स कर सकते मनपसंद म्यूजिक प्ले – अवनी कहती हैं कि उदाहरण के तौर पर, जब बच्चा पास से गुजरे, तो बिना कुछ कहे आई कॉन्टेक्ट बनाएं और हल्की मुस्कान दे दें। उसकी पसंद का कोई म्यूजिक प्ले कर दें और आप खुद भी वही गाना धीरे-धीरे गुनगुनाने लगें।