
Su-33 फाइटर जेट का मुकाबला MiG-29K नौसैनिक जेट से रहा। दोनों को 1980 के दशक में डेवलप किया गया था। हालांकि पहले रूस ने Su-33 को प्राथमिकता दी क्योंकि इसकी रेंज और पेलोड क्षमता ज्यादा था। लेकिन जल्द Su-33 को लेकर दिक्कतें सामने आने लगी। लेकिन चीन ने इसका फायदा उठाया।
डिफेंस की दुनिया काफी रहस्यमय और दिलचस्प है। अपनी इस रिपोर्ट में हम आपको एक ऐसे फाइटर जेट की कहानी बताएंगे, जिसे दोस्त रूस ने बनाया था, लेकिन उसका इस्तेमाल चीन कर रहा है। हम आपको बताएंगे कि कैसे यूक्रेन ने भारत की सुरक्षा चिंताओं की परवाह नहीं करते हुए Su-33 नाम के लड़ाकू विमान थाल में सजाकर चीन को सौंप दिया था। ये कहानी है रूसी Su-33 फ्लैंकर-डी फाइटर जेट की, जिसे रूस ने अपने एयरक्राफ्ट कैरियर से ऑपरेट करने के लिए तैयार किया था।
आज से ठीक 27 साल पहले 31 अगस्त 1998 को Su-33 फ्लैंकर-डी को रूस की नौसेना में शामिल किया गया था। ये तत्कालीन सोवियत संघ का पहला फाइटर जेट था, जिसे एयरक्राफ्ट कैरियर से ऑपरेट करने के लिए बनाया गया था। Su-33, रूस के ही Su-27 फ्लैंकर एयरक्राफ्ट पर आधारित था, लेकिन Su-33 को रूसी नौसेना की जरूरतों के मुताबिक नया जहाज बनाया गया था। जैसे की इसमें मुड़ने वाले पंख लगाए गये, मजबूत लैंडिंग गियर लगाए गये, अरेस्टिंग हुक और कैनार्ड्स लगाए गये, ताकि जहाज को एयरक्राफ्ट कैरियर के छोटे रनवे और स्की-जंप से उड़ान संभव हो सके। लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद इस फाइटर जेट का भविष्य खराब हो गया। माना जाता है कि एसयू-33 लड़ाकू विमान के सिर्फ 40 से 50 यूनिट की बनाए जा सके।
Home / News / भारत ने किया खारिज तो चीन में हुआ पुनर्जन्म, यूक्रेन की एक गलती से चीनी नौसेना बनी महाताकतवर, कहानी रूस के Su-33 जेट की
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