
अगर आप बच्चों में होने वाले कैंसर से जुड़ी सही जानकारी जानना चाहते हैं, तो यह आर्टिकल आपके लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है, क्योंकि इसमें हमने इस मर्ज से जुड़े कुछ मिथकों के बारे में सूचना दी है, जो कि आपके काम की हो सकती है।
आमतौर पर हर बीमारी को लेकर समाज में कुछ न कुछ मिथक फैल ही जाते हैं। यही स्थिति बच्चों में होने वाले कैंसर के मामले में भी देखने को मिलती है। बचपन के कैंसर को लेकर कई गलतफहमियां लोगों के बीच आम हैं। इसलिए आज के लेख में हम ऐसे ही कुछ गलत धारणों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जो सिर्फ मिथक हैं और उन पर पेरेंट्स को कतई भरोसा नहीं करना चाहिए। चलिए बिना देरी करे एमपावर, द सेंटर, कोलकाता की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट अंकिता Gayen से इस विषय में जानने की कोशिश करते हैं।
कैंसर से पीड़ित बच्चे हमेशा दुखी और डिप्रेस्ड रहते हैं? – कैंसर से पीड़ित बच्चों के लिए यह धारणा है कि वे हमेशा दुखी या डिप्रेस्ड ही रहते हैं। इस धारणा पर एक्सपर्ट कहती हैं कि हां, यह सही है कि इस दौरान कई बच्चे उदासी, निराशा या दुख महसूस करते हैं, लेकिन हर बच्चे का रिस्पॉन्स अलग होता है। कुछ बच्चे कैंसर जैसी बीमारी की स्थिति में भी पॉजिटिव और मजबूत बने रहते हैं, खासकर तब, जब उन्हें डॉक्टरों, दोस्तों या परिवार का पूरा साथ मिलता है।
बच्चों से कैंसर जैसी बीमारी के बारे में छिपाना चाहिए ? – समाज में ऐसी धारणा है कि परिवारों को बच्चे से कैंसर जैसी बीमारी के बारे में छिपाना चाहिए, क्योंकि वे इसे समझने के लिए बहुत छोटे होते हैं और इमोशनली रूप से टूट सकते हैं। इसीलिए पेरेंट्स को इस मर्ज के बारे में बच्चों से नहीं कहना चाहिए।
बातचीत में पारदर्शिता है जरूरी – क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट का इस मामले पर मानना है कि बच्चे को उसकी उम्र के अनुसार उचित कम्युनिकेशन बहुत अहम है। क्योंकि यह उन्हें कुछ बदतर सोचने की संभावना को रोकने में मदद करता है। साथ ही यह अनावश्यक स्ट्रस को भी कम करता है। इसके अलावा बातचीत में पारदर्शिता होने से परिवार और बच्चे के बीच भी विश्वास कायम रहता है।
कैंसर से उबर चुके बच्चे को ज्यादा सुविधाओं की जरूरत है ? – लोग अक्सर यह भी मानते हैं कि कैंसर से उबर चुके बच्चों को अतिरिक्त सुविधाएं देनी चाहिए या उन्हें ज्यादा प्यार और पैम्परिंग की जरूरत होती है। इस मसले पर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट कहती हैं कि माता-पिता अक्सर कैंसर से उबर चुके बच्चों को जरूरत से ज्यादा पैम्पर करने लगते हैं या फिर उन्हें लेकर ओवरप्रोटेक्टिव हो जाते हैं। पेरेंट्स का यह व्यवहार बच्चे के नैतिक और भावनात्मक विकास में बाधा डाल सकता है। इस वजह से उसकी नॉर्मल ग्रोथ भी प्रभावित होती है। इसके अलावा, बच्चे के मन में यह गलत मैसेज जा सकता है कि बीमारी का बहाना बनाकर जिम्मेदारी और जवाबदेही से बचना ठीक है। इससे उनमें निर्भरता बढ़ सकती है, जो कि ठीक नहीं है।
नहीं होती कोई भावनात्मक समस्या – समाज में यह भी माना जाता है कि कैंसर का इलाज खत्म होने के बाद बच्चों को कोई भावनात्मक समस्या नहीं होती या वे पूरी तरह ठीक होकर इस बारे में दोबारा इस बारे में कुछ सोचते ही नहीं हैं।
लंबे समय तक जूझते हैं बच्चे -अंकिता कहती हैं कि यह मिथ है कि बच्चों को इलाज के बाद कोई भावनात्मक समस्या नहीं होती है, क्योंकि बच्चे जो कैंसर से ठीक हो जाते हैं, उन्हें लंबे समय तक भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इनमें बीमारी के दोबारा होने का डर, तनाव, शरीर को लेकर असहजता, सामान्य जीवन में लौटने में कठिनाई, और स्कूल या दोस्तों के साथ तालमेल बैठाने में मुश्किल जैसी समस्याएं शामिल हो सकती हैं।
दिलो-दिमाग में चलती हैं ये बातें – एक्सपर्ट अंत में कहती हैं कि कुछ बच्चे यह सोचकर गिल्ट भी महसूस कर सकते हैं कि वे ठीक हो गए, जबकि उनके कुछ साथी अभी भी इलाज से गुजर रहे हैं। इसलिए पेरेंट्स को यह समझना चाहिए कि मन का ठीक होना शरीर के ठीक होने से ज्यादा समय लेता है। इसी वजह से इलाज खत्म होने के बाद भी बच्चों को लगातार मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सपोर्ट देना बेहद जरूरी है।
Home / Lifestyle / पेरेंट्स सावधान! बच्चों के कैंसर को लेकर फैली इन 3 बातों पर न करें भरोसा, ये सब मिथ हैं सिर्फ
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