
भारतीय संस्कृति के मूल आधार धर्म में पूजा के किसी भी अनुष्ठान में गणनायक, गणपति या गणेश का स्मरण सर्वप्रथम होता है। इनकी आराधना के बिना किसी भी कार्य की सफलता संदिग्ध मानी जाती है। किसी भी देवी-देवता के पूजन से पूर्व गणेश का पूजन अनिवार्य है। घरों के दरवाजों पर गणेश को स्थापित करने एवं विवाह, उपनयन आदि पवित्र संस्कारों के कार्यों का शुभारंभ गणेश निमंत्रण से प्रारंभ होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य में विघ्न नहीं होता तथा लक्ष्य की प्राप्ति होती है। गणेश जी को भारतीय संस्कृति में पूर्ण ज्ञान और विवेक का प्रतीक माना गया है।
गणेश जी का जन्मोत्सव सिद्धि विनायक श्री गणेश चतुर्थी, कलंक चौथ अथवा पत्थर चौथ के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत और पूजन करने का तो विधान है लेकिन चांद का दीदार करने पर मनाही है। मान्यता है कि चंद्र दर्शन से मिथ्यारोप लगने या किसी कलंक का सामना करना पड़ता है। दृष्टि धरती की आेर करके चंद्रमा की कल्पना मात्र करके अर्ध्य देना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण ने भूलवश इसी दिन चांद देख लिया था और फलस्वरूप उन पर हत्या व स्मयंतक मणि, जो आज कल कोहीनूर हीरा कहलाता है और इंगलैंड में है, को चुराने का आरोप लगा था। इसके अलावा आप हाथ में फल या दही लेकर भी दर्शन कर सकते हैं।
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