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गूगल टीम की हेड बनी एक ब्लाइंड, रिज्यूमे देख Impressed हुई कंपनी

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नई दिल्ली: मंजिल उन्हीं को मिलती है,
जिनके सपनों में जान होती है,
पंख से कुछ नहीं होता हौसलो से उड़ान होती है…

कोई भी कमी इंसान को उसकी मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती बशर्ते उसके हौसले बुलंद होने चाहिए। ज्योत्सना काकी ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह कभी गूगल की टीम के साथ काम करेगी वो भी एक हेड को तौर पर। ज्योत्सना को जब जॉब के लिए गूगल से कॉल आई तो पहले उसे यकीन ही नहीं हुआ क्योंकि उसने तो इस जॉब के लिए अप्लाई भी नहीं किया था। गूगल में काम करना उसके लिए किसी सपने से कम नहीं था।

आपको बता दें कि ज्योत्सना ब्लाइंड हैं इसलिए किसी बड़ी कंपनी में नौकरी की बात सोचना भी उसके लिए दूर की बात है। ज्योत्सना के भाई ने उसका रिज्यूमे गूगल भेजा था। 10 साल पहले गूगल में दिव्यांगों की मदद करने वाली सर्विसेस पर काम करने के लिए पार्ट टाइम टीम थी। तब उसके भाई ने गूगल में ज्योत्सना का रिज्यूमे भेजा, कंपनी में कोई वैकेंसी नहीं थी फिर भी गूगल की ओर से ज्योत्सना को जॉब के लिए कॉल आई। तब ज्योत्सना ने टेस्ट इंजीनियर के तौर पर गूगल ज्वाइन किया था पर आज वह वहां पर टीम को हेड करती है।

बचपन से ब्लाइंड नहीं थी
ज्योत्सना जन्म से ब्लाइंड नहीं है। वह कॉलेज में पढ़ रही थी। कॉलेज में अभी उसके दो साल बीते थे कि एक सुबह जब वह उठी तो सबकुछ धुंधला दिख रहा था। डॉक्टर ने देखा तो कहा कि ब्रेन ट्यूमर बड़ा होकर ऑप्टिक नर्व तक पहुंच गया है। डॉक्टर ने सर्जरी से ट्यूमर हटाने की सलाह दी लेकिन सर्जरी के बाद ज्योत्सना ने आंखें खोलीं तो उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था क्योंकि उसका ऑप्टिकल नर्व डेमेज हो चुका था।

अपने लिए रखा लक्ष्य
कुछ दिनों बाद ज्योत्सना ने अपने भाई को कहा कि वह आगे पढ़ना चाहती है ताकि किसी पर उसे निर्भर न रहना पड़े। इसके लिए ज्योत्सना ने ब्रेल लिपि सीखी और स्क्रीन रीडर जैसी टेक्नोलॉजी को भी जाना। ज्योत्सना ने पढ़ाई पूरी की तो वह जॉब करना चाहती थी और दिव्यांगों की भी मदद करना चाहती थी लेकिन प्राइवेट कंपनियों में ऐसी कोई पोजीशन नहीं होती जिस पर दिव्यांग काम कर सकें।
रिज्यूमे ने किया गूगल को इम्प्रेस्सेड
तभी ज्योत्सना के पिता ने एक ऐसा रिज्यूमे बनाने की सलाह दी जिसमें उसकी यह ख्वाहिश का जिक्र हो। ज्योत्सना ने ऐसा ही रिज्यूमे बनाया जिसे उनके भाई राजू ने बिना बताए ही उसे गूगल को भेज दिया। गूगल के मैनेजमेंट को उनका यह आइडिया पसंद आया और उन्होंने ज्योत्सना के रिज्यूमे के आधार पर उन्हें कॉल करने का फैसला किया। आज ज्योत्सना अपनी पोजिशन से खुश हैं। आज भी उसका वही रुटीन है कि वह सुबह 6 बजे उठती है लेकिन वीकेंड पर काम नहीं करती, अपने परिवार के साथ समय बिताती है। ज्योत्सना का कहना कि जब वह शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की मदद करती है तो उसे संतोष मिलता है कि वह उनके लिए कुछ कर रही है।