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जब नारद के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने रचा ये जाल


इस बात से तो सब वाकिफ ही हैं कि भगवान विष्णु के अन्नय भक्तों में से एक है देवर्षि नारद। भगवान विष्णु के परम भक्त नारद जी सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी के पुत्र हैं। श्रीमद्भागवत और वायुपुराण के अनुसार नारद जी का जन्म ब्रह्मा जी की जंघा से हुआ था। इन्हें वेदों के संदेशवाहक कहा गया है। मान्यता है कि वीणा का आविष्कार नारद जी ने ही किया था। आज हम आपको नारद जी से जुड़ी एक ऐसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसमें बताया गया है कि भगवान विष्णु ने कैसे उनके घमंड का एहसास करवाया।
एक पौराणिक कथा के अनुसार नारद मुनि पृथ्वी का भ्रमण करते हुए एक नगर पहुंचे। जहां उनके एक खास भक्त जोकि उस नगर के सेठ थे। नारद जी की खातिर करने के बाद उन्होंने नारद जी से प्रार्थना की कि आप ऐसा कोई आशीर्वाद दें कि जिससे हमारे घर संतान का जन्म हो जाए। नारद ने कहा कि तुम लोग चिंता न करो, मैं अभी भगवान हरि से मिलने जा रहा हूं। उन तक तुम्हारी प्रार्थना पहुंचा दूंगा और वे अवश्य कुछ करेंगे। नारद विष्णु धाम विष्णु से मिलने गए और सेठ की व्यथा बताई। भगवन बोले कि उसके भाग्य में संतान सुख नहीं है इसलिए कुछ नहीं हो सकता। उसके कुछ समय बाद नारद ने एक दीये में तेल ऊपर तक भरा और अपनी हथेली पर सजाया और पूरे विश्व की यात्रा की। अपनी निर्विघ्न यात्रा का समापन उन्होंने विष्णु धाम आकर ही संपन्न किया।
इस पूरी प्रक्रिया में नारद को बड़ा घमंड हो गया कि उनसे ज्यादा ध्यानी और विष्णु भक्त कोई ओर नहीं। अपने इसी घमंड में नारद पुनः पृथ्वी लोक पर आए और उसी सेठ के घर पहुंचे। इस दौरान सेठ के घर में छोटे-छोटे चार बच्चे घूम रहे थे। नारद ने जानना चाहा कि ये संतान किसकी हैं तो सेठ बोले आपकी कृपा से ही हैं। नारद इस बात से खुश नहीं थे। उन्होंने दोबारा सेठ से पूछा जो भी बात ही सब सच बताओ।
तब सेठ ने कहा एक साधु हमारे घर के सामने से गुजर रहा थे और बोल रहे थे कि एक रोटी दो तो एक बेटा और चार रोटी दो तो चार बेटे। मैंने उन्हें चार रोटी खिलाई। कुछ समय बाद मेरे चार पुत्र पैदा हुए। नारद आग-बबूला हुए और विष्णु की खबर लेने विष्णु धाम पहुंचे। नारद को देखते ही भगवान अत्यधिक पीड़ा से कराह रहे थे। उन्होंने नारद को बोला मेरे पेट में भयंकर रोग हो गया है और मुझे जो व्यक्ति अपने हृदय से लहू निकाल कर देगा उसी से मुझे आराम होगा। नारद उलटे पांव लौटे और पूरी दुनिया से विष्णु की व्यथा सुनाई, पर कोई भी आदमी तैयार नहीं हुआ। जब नारद ने यही बात एक साधु को सुनाई तो वो बहुत खुश हुआ, उसने छुरा निकाला और एकदम अपने सीने में भौंकने लगा और बोला मेरे प्रभु की पीड़ा यदि मेरे लहू से ठीक होती है, तो मैं अभी तुम्हें दिल निकालकर देता हूं।
जैसे ही साधु ने दिल निकालने के लिए चाकू अपने सीने में घोपना चाहा, तभी विष्णु वहां प्रकट हुए और बोले जो व्यक्ति मेरे लिए अपनी जान दे सकता है, वह किसी व्यक्ति को चार पुत्र भी दे सकता है। साथ ही नारद से यह भी कहा कि तुम तो सर्वगुण संपन्न ऋषि हो। तुम चाहते तो उस सेठ को भी पुत्र दे सकते थे। इस बात को जानकर नारद को अपने घमंड पर बहुत पश्चाताप हुआ।