
यहां काम करने आए गैर-यूरोपीय यूनियन (ईयू) देशों के तकनीकी रूप से कुशल कामगारों को निकाला जा रहा है। इसमें कई एशियाई देशों के लोग भी हैं। कर्मचारियों को निकालने के लिए बाकायदा स्वीडिश माइग्रेशन एजेंसी ने आदेश जारी किया है। इसके तहत कंपनियों (नियोक्ताओं) की प्रशासनिक गलतियों को आधार बनाकर वर्क परमिट रिन्यू नहीं किया जा रहा। लिहाजा सैकड़ों लोग देश छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।
बीबीसी के मुताबिक, ईरान के 38 साल के अली ओमुमी का देश छोड़ने का आदेश 2018 में ही आ गया था। इसके खिलाफ उन्होंने कोर्ट में अपील की, लेकिन नाकामी हाथ लगी। ओमुमी का वर्क परमिट बढ़ाने से इनकार कर दिया गया। ओमुमी कहते हैं कि हमने यहां काम किया, टैक्स भरा, लेकिन अब अपराधी जैसा महसूस करते हैं।
स्वीडन में टेक्नीकल स्टूडेंट्स की कमी थी
स्वीडन में इंजीनियरिंग और प्रोग्रामिंग के ग्रेजुएट्स की कमी थी। लिहाजा यूरोपीय समेत अन्य देशों के लोगों ने यहां आना शुरू किया। मजबूत अर्थव्यवस्था और जीवन के बेहतर अवसरों के चलते बाहर के लोग यहां बसने लगे। स्वीडन में नौकरी के लिए गैर-ईयू लोगों को वर्क परमिट जरूरी होता है।
कई लोग नौकरी छोड़कर नया काम शुरू करना चाहते हैं तो उन्हें वीजा विस्तार जरूरी होता है। इसके लिए कर्मचारियों की पूर्व नियोक्ता कंपनी की तरफ से वीजा अप्लाई करना होता है। स्वीडिश माइग्रेशन एजेंसी कंपनी के आवेदन में छोटी सी गलती निकलाकर वीजा विस्तार निरस्त कर रही है। आवेदन रद्द करने की जो वजह बताई जा रही है, गलत पेंशन पेमेंट, बहुत ज्यादा या कम छुट्टियां लेना या सरकारी रोजगार सेवा छोड़कर लिंक्डइन वेबसाइट के जरिए नौकरी ढूंढना शामिल है।
इस साल 550 परमिट रिजेक्ट हुए
2019 में अब 550 लोगों के परमिट रिजेक्ट किए जा चुके हैं। भारत की 28 वर्षीय जेना जोज बतौर वेब डेवलपर काम कर रही थीं। वीजा की अवधि न बढ़ाए जाने पर उनकी लड़ाई जारी है। जेना कहती हैं कि ऐसी स्थितियां काफी परेशान करने वाली है और यह हमारी गलती भी नहीं है। 34 वर्षीय अनिल भागा ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले हैं और यहां के फैशन ब्रांड में बतौर बिजनेस डेवलपर काम कर रहे हैं। एनियल ने 3 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी और हार गए।
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