Tuesday , December 23 2025 4:45 PM
Home / News / Coronavirus, बेरोजगारी, अब हिंसा: सर्वे में Joe Biden से पीछे Donald Trump, होगा चुनावों में नुकसान?

Coronavirus, बेरोजगारी, अब हिंसा: सर्वे में Joe Biden से पीछे Donald Trump, होगा चुनावों में नुकसान?


पूरी दुनिया इस वक्त जिस कोरोना वायरस से जूझ रही है, उसका सबसे बड़ा शिकार अमेरिका बना है। सबसे ज्यादा केस और मौतें भी झेलीं और वायरस को फैलने से रोकने के लिए इकॉनमी को बंद करना पड़ा जिससे देश में बेरोजगारी बुरी तरह बढ़ गई। इसी बीच मिनेसोटा में अश्वेत अमेरिकन George Floyd की पुलिस हिरासत में मौत के बाद रंगभेद के खिलाफ हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर विरोध करने उतर आए। जाहिर है कि इस सबका असर ट्रंप की छवि पर पड़ा और राष्ट्रपति चुनाव से पहले ताजा पोल इसी ओर इशारा भी कर रहे हैं। पोल के मुताबिक 10 में से 8 अमेरिकी नागरिकों को लगता है देश गलत दिशा में आगे जा रहा है और कंट्रोल से बाहर जा रहा है।
जब राष्ट्रपति चुनावों में 5 से भी कम महीने बाकी रह गए हैं, पिछले कई पोल्स में ट्रंप डेमोक्रैट उम्मीदवार जो बाइडेन से पीछे नजर आने लगे हैं। उनके पूर्व डिफेंस सेक्रटरी और ट्रंप के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ ने आरोप लगा दिया कि राष्ट्रपति संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं और अमेरिका को बांट रहे हैं। वहीं, वॉल स्ट्रीट जर्नल/ NBC न्यूज पोल के सर्वे में पता चला कि अमेरिका के 80% लोगों का मानना है कि देश कंट्रोल से बाहर जा रहा है।
इकॉनमी बचा सकती है ट्रंप की कुर्सी
रिपब्लिकन नेता दबे-छिपे अंदाज में यह मानते हैं कि हालात गंभीर हैं लेकिन उनका मानना है कि अगर देश की अर्थव्यवस्था डिप्रेशन जैसे बेरोजगारी संकट से उबर लेती है तो इससे ट्रंप के पास यह साबित करने का मौका होगा कि देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भले ही समाज में अशांति हो और हेल्थ क्राइसिस फैला हो, ट्रंप के चुनाव के लिए सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका की इकॉनमी है। इसलिए भले ही देश में बेरोजगारों की संख्या महामारी के पहले के आंकड़े को न छू सके, ट्रंप को लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है।
ट्रंप ने आरोप लगाया है कि George के लिए शुरू हुए आंदोलन को हाइजैक कर लिया गया है और अब उन्होंने ऐसे लोगों को आतंकवादी घोषित करने का फैसला किया है। ट्रंप ने ट्वीट करके कहा है कि अमेरिका Antifa को आतंकवादी संगठन करार देगा।
क्या है Antifa?
अमेरिका में फासीवाद के विरोधी लोगों को Antifa (anti-fascists) कहते हैं। अमेरिका में Antifa आंदोलन उग्रवादी, वामपंथी और फासीवादी विरोधी आंदोलन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ये लोग नव-नाजी, नव-फासीवाद, श्वेत सुपीरियॉरिटी और रंगभेद के खिलाफ होते हैं और सरकार के विरोध में खड़े रहते हैं। इस आंदोलन से जुड़े लोग आमतौर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हैं, रैलियां करते हैं। हालांकि, विरोध के दौरान हिंसा के भी परहेज नहीं किया जाता है।
कब बना यह संगठन
एंटीफा के गठन को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। इससे जुड़े सदस्य दावा करते हैं कि इसका गठन 1920 और 1930 के दशक में यूरोपीय फासीवादियों का सामना करने के लिए किया गया था। हालांकि एंटीफा की गतिविधियों पर नजर रखने वाले जानकार बताते हैं कि एंटीफा आंदोलन 1980 के दशक में एंटी-रेसिस्ट एक्शन नामक एक समूह के साथ शुरू हुआ था। 2000 तक यह आंदोलन एकदम सुस्त था लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद इसने रफ्तार पकड़ी है।
Antifa के सदस्य कौन हैं?
अमेरिका में एंटीफा के सदस्यों की पहचान करना मुश्किल है, क्योंकि इनमें से अधिकतर लोग पुलिस कार्रवाई के कारण सार्वजनिक खुलासा नहीं करते हैं। इनका कोई आधिकारिक नेता भी नहीं है। कहीं भी जब कोई रंगभेद से संबंधित विरोध प्रदर्शन का मामला आता है तो इसके सदस्य चुपचाप उस स्थान पर आंदोलन करने पहुंच जाते हैं। ये लोग अधिकतर काले कपड़े पहने होते हैं। प्रदर्शन के दौरान एंटीफा के सदस्य हिंसात्मक गतिविधियों में भी शामिल होते हैं।
Antifa किसके विरोध में हैं?
एंटीफा के सदस्य नव-नाजीवाद (Neo-Nazis), नव-फासीवाद ( Neo-fascism), श्वेत वर्चस्ववादी (white supremacists) और नस्लवाद ( racism) का खुलकर विरोध करते हैं। इसके सदस्य दक्षिणपंथी नेताओं और विचारधारा का भी खुलकर विरोध करते हैं। दक्षिणपंथी कार्यकर्ता या नेताओं को रोकने के लिए चिल्लाना, भगदड़ मचाना और मानव श्रृंखला बनाना इनकी पसंदीदा रणनीति है। जब ये रणनीतिया कामयाब नहीं होता है तब यह हिंसा और आगजनी का सहारा लेते हैं।
रंगभेद का सहारा लेकर बढ़ाईं दूरियां?
ट्रंप के सामने सिर्फ अर्थव्यवस्था की चुनौती नहीं है। पिछले दिनों George Floyd की मौत के बाद ट्रंप ने दुख जताया लेकिन कई बार आक्रामक बयान दिए जिससे लोगों में संदेश गया कि वह अश्वेत समुदाय पर पुलिस की बर्बरता के बारे में गंभीर नहीं हैं। उन्होंने कई बार प्रदर्शनकारियों के लूट मचाने, हिंसा करने को लेकर ट्वीट किया। प्रदर्शनकारियों की बातों को समझने की जगह उन्होंने ‘ठग’ बता दिया।
ट्रंप रंगभेद के सहारे तनाव बढ़ाने से पीछे नहीं हट रहे हैं जिसे उनकी राजनीति का खास तरीका माना जाता है। बराक ओबामा से उनका बर्थ सर्टिफिकेट मांगने के बाद से ही यह राष्ट्रीय स्तर पर सबके सामने था। माना जाता है कि 2016 में यह चल भी गया लेकिन क्या यह दोबारा चल सकेगा, इसे लेकर संशय बरकरार है। विरोध प्रदर्शनों के शुरू होने से पहले पोल्स में देखा जा रहा था कि बाइडेन ट्रंप के श्वेत-वोटबैंक में सेंध लगा रहे थे। अब इस बात पर नजरें हैं कि क्या ट्रंप की बांटने की रणनीति श्वेत लोगों में समर्थन हासिल कर सकेगी? खासकर पढ़े-लिखे श्वेतों में जो ट्रंप की पार्टी के खिलाफ हो चुके हैं।
अमेरिका को आई बराक की याद
White House के सामने चल कई दिनों से विरोध प्रदर्शन जारी हैं। यहां तक कि आसपास की कई इमारतों को नुकसान पहुंचाया जा चुका है। यहां तक कि ‘चर्च ऑफ प्रेजिडेंट्स’ के नाम से मशहूर ऐतिहासिक सेंट जॉन्स एपिस्कोपल चर्च को आग तक लगा दी गई। इसी बीच जब विरोध प्रदर्शन तेज होने लगे तो White House की बाहरी लाइटें बंद कर दी गईं। ऐसा शायद ही कभी देखा गया हो कि White House की लाइटें इस तरह से बंद की गई हों। ऐसे में सोशल मीडिया पर ट्रंप से पहले राष्ट्रपति बराक ओबामा का शासन याद किया जाने लगा कि कैसे उनके रहते White House रोशन रहता था। इसका सहारा लेकर ट्रंप के नेतृत्व पर भी सवाल उठाया गया है।
उठे ट्रंप पर सवाल
दरअसल, जब से देश में हिंसा भड़की है डोनाल्ड ट्रंप ने सिर्फ ट्वीट के जरिए अपनी बात कही है। यहां तक कि आंदोलन के हिंसक होने और राजधानी वॉशिंटगन तक पहुंचने के बावजूद उन्होंने देश को न ही हिंसा को लेकर संबोधित किया और न ही George की मौत को लेकर। दूसरी ओर प्रदर्शनकारियों पर साजिश का आरोप लगाते हुए वह उनके खिलाफ बल के प्रयोग की वकालत करते रहे हैं। इसी बीच जब उनके White House के नीचे बने बंकर में जाने की खबरें आने लगीं तो लोग उनके नेतृत्व पर सवाल उठाने लगे कि ऐसे तनावपूर्ण हालात में राष्ट्रपति छिप कैसे सकते हैं।
दुनिया के सबसे सुरक्षित घरों में से एक
खास बात यह भी है कि White House दुनिया के सबसे ज्यादा सुरक्षित घरों में से एक है जिसकी 24 घंटे कड़ी निगरानी की जाती है। पूरा परिसर लोहे की बाउंड्री से घिरा हुआ है। इसमें 147 बुलेटप्रूफ खिड़कियां हैं। यही नहीं यह इन्फ्रारेड मोशन डिटेक्टर से भी लैस है। वाइट हाउस की सुरक्षा के लिए सीक्रेट सर्विस के करीब 1300 सदस्य किसी भी कीमत फर्स्ट फैमिली को बचाने के लिए तैनात हैं। इनके अलावा जब भी राष्ट्रपति वाइट हाउस के अंदर आते या जाते हैं, SWAT टीम छत पर तैनात रहती है।
नीचे है खास बंकर
जिस बंकर में ट्रंप के छिपने की रिपोर्ट्स आई हैं, वह प्रेजिडेंट इंमर्जेंसी ऑपरेशन्स सेंटर (PEOC) है जो White House के नीचे बना है। आपात की स्थिति में इसका इस्तेमाल होता है और यहां से आधिकारिक काम जारी रहता है। राष्‍ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्‍ट थे की सुरक्षा के लिए 1942 में इसे तैयार किया गया था। यहां पर टीवी, फोन, हाईस्‍पीड इंटरनेट समेत कम्‍युनिकेशन के लेटेस्‍ट इक्विपमेंट्स मौजूद रहते हैं। PEOC में मिलिट्री और नान-कमिशंड ऑफिसर्स लगातार तैनात रहते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, PEOC इतना मजबूत है कि न्‍यूक्लियर धमाके को भी झेल सकता है।
बाइडेन को मिलेगा अपनी पार्टी का सहारा?
बाइडेन इस हफ्ते हाउसिंग, एजुकेशन और पैसे की उपलब्धता को लेकर अपना इकनॉमिक प्लान रिलीज कर सकते हैं। अगर बाइडेन ट्रंप को हराने में कामयाब रहते हैं, तो राजनीतिक दुनिया को उनकी योजनाओं के बारे में जानने की उत्सुकता रहेगी। दिलचस्प बात यह है कि प्रोग्रेसिव तबका बाइडेन के समर्थन में तब खड़ा हुआ जब बर्नी सैंडर्स और एलिजाबेथ वॉरन डेमोक्रैटिक प्राइमरी के चुनाव में हार गए। ट्रंप के खिलाफ डमोक्रैट्स एकजुट हो सकते हैं लेकिन यह देखना होगा कि क्या बाइडेन की मॉडरेट सोच के खिलाफ रहा पार्टी का तबका भी उनके खेमे में आ सकेगा या नहीं।
जॉर्ज फ्लायड मौत: अमेरिका में पुलिस की एक और क्रूरता, बुजुर्ग प्रदर्शनकारी का सिर फटा
कोरोना के निशाने पर दोनों नेता, कैसे लड़ेंगे चुनाव
बाइडेन पिछले हफ्ते में करीब 4 बार पब्लिक में गए जबकि ट्रंप कई बार जा चुके हैं। यहां तक कि एक इवेंट चुनावी प्रचार जैसा ही लगने लगा था। इस हफ्ते में ट्रंप अपना पहला फंडरेजर भी आयोजित करने वाले हैं। बाइडेन ज्यादातर अपने स्टूडियो के जरिए ही संपर्क करते हैं लेकिन वह कुछ रिस्क लेकर ट्रैवल करने को तैयार हैं। वह Floyd के परिवार से मिलने भी जा सकते हैं। कोरोना वायरस का खतरा अभी टला नहीं है और 70 की उम्र पार कर चुके दोनों उम्मीदवार वायरस के निशाने पर हैं।