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पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है। दोनों देशों की सेनाओं के बीच 5 मई से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में कई जगहों पर गतिरोध की स्थिति बनी हुई है। गत 15 जून की रात को गलवान घाटी में हिंसक झड़पों में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद तनाव और बढ़ गया है। इस बीच रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन जल्द ही रूस से भारत को मिलने जा रहे S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम से डर गया है और इसीलिए उसने पूरी रणनीति के तहत यह कार्रवाई की है।
चीन S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल करता रहा है और उसकी खूबियों से पूरी तरह से परिचित है। माना जा रहा है कि उसने भारत लद्दाख से लगती अपनी सीमा पर S-300 और S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम तैनात कर रखा है। इसके जवाब में भारत ने भी ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल से लैस सुखोई फाइटर जेट को लद्दाख में तैनात कर दिया है।
‘फैसले के पीछे एक खास मकसद छिपा’
भारतीय वायुसेना में रह चुके और रक्षा विशेषज्ञ विजेंदर के ठाकुर ने रूसी समाचार वेबसाइट स्पूतनिक न्यूज से कहा कि रणनीतिक और सामरिक फायदे के लिए सेना के बल पर वास्तविक नियंत्रण को बदलने का फैसला संभवत: राजनीतिक है लेकिन इसे अभी लेने के फैसले के पीछे एक खास मकसद छिपा हुआ है। इसके पीछे भारतीय वायुसेना का S-400 डिफेंस सिस्टम लेना बड़ी वजह है।
ठाकुर ने कहा कि तिब्बत के पठारों की आमतौर पर ऊंचाई 4500 मीटर है और चीने के निचली उड़ान भर रहे एयरक्राफ्ट को 5 हजार मीटर की ऊंचाई से उड़ना होगा। उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना का S-400 डिफेंस सिस्टम ज्यादा ऊंचाई पर उड़ रहे चीनी फाइटर जेट और मध्य ऊंचाई पर उड़ रहे ड्रोन आसानी से डिटेक्ट कर सकता है। भारत के विपरीत पीएलए का S-400 डिफेंस सिस्टम ऊंचाई पर तैनात होगा और पहाड़ों से घिरा होगा। इससे वह 5000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ भारतीय विमानों को नहीं पकड़ पाएगा।
युद्ध में गेमचेंजर साबित होगी ब्रह्मोस
रक्षा विशेषज्ञ विजेंदर ठाकुर ने कहा कि अपनी सुपरसोनिक स्पीड और सटीक निशाना लगाने की क्षमता के कारण ब्रह्मोस पीएलए के कमांड और कंट्रोल सेंटर के लिए काल साबित हो सकती है। यह मिसाइल पहाड़ों के बीच से जा सकती है जिससे उसके ट्रैक करने का खतरा कम हो जाता है। ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल चीन के अंदर बने सप्लाइ बेस को तबाह करने के लिए किया जा सकता है।
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