Wednesday , December 24 2025 10:02 AM
Home / News / जर्मनी की नई हिंद-प्रशांत रणनीति से चीन के सपनों को लगा ग्रहण !

जर्मनी की नई हिंद-प्रशांत रणनीति से चीन के सपनों को लगा ग्रहण !


अपनी नई एशियाई रणनीति के तहत जर्मनी ने एक निर्णायक कदम उठाते हुए लोकतांत्रिक देशों के साथ मिलकर और अधिक शक्तिशाली साझेदारी पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है । मिसाल के तौर पर जर्मनी अब जापान और दक्षिण कोरिया के साथ मिलकर प्रतिस्थापन को बढ़ावा दे रहा है जो चीन और पूरे यूरोप के लिए चेतवानी के तौर पर देखा जा रहा है। जर्मनी ने एशिया में अपने सबसे करीबी साझीदार चीन को बड़ा राजनयिक झटका मानवा जा रहा है। जर्मनी ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लोकतांत्रिक देशों के साथ भागीदारी मजबूत करने का फैसला बहुत सोच-समझकर किया है जिससे चीन के विस्तारवाद के सपनों को ग्रहण लगता नजर आ रहा है।

दरअसल, इस क्षेत्र से बर्लिन के भी व्यापारिक, आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हैं। जाहिर है, इससे चीन खुद को घिरता हुआ महसूस करेगा और जर्मनी से नाराज होगा लेकिन, बदलते वैश्विक परिदृश्य में चीन की परवाह किसे है। यूरोपीय संघ के वर्तमान अध्यक्ष जर्मनी ने 2 सितंबर, 2020 को भारत के साथ अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति लॉंच की। जर्मनी ने यह कदम संक्षिप्तीकरण को आक्रामक चीन से सुरक्षित रखने के लिए उठाया है। फ्रांस के बाद हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए तापमान रणनीति तय करने वाला जर्मनी दूसरा देश बन गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मानवाधिकारों पर चीन के ट्रैक रिकॉर्ड और एशियाई देशों पर अपनी आर्थिक निर्भरता को लेकर यूरोप की चिंताओं के मद्देनजर ही जर्मनी की नई हिंद-प्रशांत रणनीति सामने आई है।

बर्लिन ने इसी माह के शुरू में 2 सितंबर को ही हिंद-प्रशांत रणनीति औपचारिक रूप से अपनाई है। समुद्री व्यापार मार्गों को चीन से सुरक्षित रखने की चिंता सबको है। जर्मनी भी इस पर विशेष जोर दे रहा है। जर्मनी के इस कदम का भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और आशियान के सदस्य देशों ने समर्थन किया है। इसी दिन जर्मनी के विदेश मंत्री हेइको मॉस ने कहा था, ‘हम भावी वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में मददगार बनना चाहते हैं। जिसकी लाठी उसकी भैंस की बजाय यह विश्व-व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नियमों के अनुरूप होनी चाहिए। इसी के चलते हमने उन देशों के साथ सहयोग बढ़ाया है, जो हमारे साथ लोकतांत्रिक और उदार मूल्यों को साझा करते हैं।’

चीन के साथ जर्मनी के व्यापारिक और निवेश संबंध काफी मजबूत रहे हैं। एशिया में चीन ही जर्मनी की कूटनीति का केंद्रबिंदु रहा है। हालांकि, उम्मीद के अनुरूप आर्थिक विकास भी चीनी बाजार को नहीं खोल सका। चीन में कार्यरत जर्मन कंपनियों को चीनी सरकार टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए बाध्य करती है। जर्मन कंपनियां चीन में अपने कारोबार और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। ऐसे कई मुद्दों को लेकर यूरोपीय यूनियन और चीन के बीच सुलह का कोई रास्ता नहीं निकल पाया। इससे बीजिंग पर बढ़ती आर्थिक निर्भरता ने बर्लिन की चिंता बढ़ा दी थी।