देश में इंटरनैट का इस्तेमाल करने वाले 40 करोड़ लोगों में बच्चों की संख्या करीब दो करोड़, 80 हजार है। ये आकड़ें इंटरनैट एण्ड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक सर्वे पर आधारित हैं लेकिन एसोचैम का सर्वे बताता है कि शहरों में 7 से 13 साल के 76 फीसदी बच्चे रोजाना यू-ट्यूब देखते हैं। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के अध्ययन के मुताबिक, साल 2017 में भारत के करीब 10 करोड़ बच्चे ऑनलाइन होंगे। इस खबर को अच्छा भी मान सकते हैं लेकिन इसमें बच्चों के खिलाफ होने वाले साइबर अपराध की संख्या बढ़ने का खतरा भी है।
साल 2004 में दिल्ली के एक जाने-माने स्कूल का एमएमएस कांड जब सामने आया था लेकिन इसके बावजूद 12 साल बाद आज भी नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो बच्चों के खिलाफ होने वाले साइबर अपराधों को अलग से दर्ज नहीं करता, जिससे अपराध की संख्या का पता नही चलता। पुलिस वालों को साइबर क्राइम की समझ न होने के कारण इन मामलों में बिना रिपोर्ट लोगों को थाने से लौटा दिया जाता है। इसके लिए देश में कोई ऑनलाइन सिस्टम भी नही हैं।
यूनीसेफ की हाल ही में जारी रिपोर्ट ‘बाल ऑनलाइन सुरक्षा और भारत’ हमें आने वाले खतरों के लिए आगाह करती है। तकनीक के बदलते रूप के कारण बच्चों के खिलाफ होने वाले साइबर अपराधों के तरीके भी बदल रहे हैं। इनमें साइबर बुलिंग, ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार, ऑनलाइन यौन शोषण आदि मुख्य हैं। इस तरह के मामलों के लिए जो थोड़ी-बहुत सुविधाएं हैं,वे सिर्फ महानगरों तक ही सीमित है।
मई में दिल्ली में सार्क की बैठक में बाल यौन दुर्व्यवहार को खत्म करने की बात की गई थी लेकिन यह मामला अभी हवा में ही है। बच्चों की स्मार्टफोन और इंटरनेट इस्तेमाल करने की संख्या में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। इसके लिए बच्चों के हाथ से स्मार्टफोन छीन लेने में समझदारी नहीं है,बल्कि इस मुद्दे को आम जनता और समाज से विचार-विमर्श करके बच्चों, अभिभावकों, शैक्षणिक संस्थाओं और समाज के बीच जागरूकता फैलाना भी जरूरी है।