
चीन इन दिनों दुनियाभर में अपना सैन्य वर्चस्व कायम करने के अभियान में निकला हुआ है। अपने लगभग हर पड़ोसी देशों से विवाद पैदा करने के बाद भी चीन का पेट नहीं भरा तो उसने हजारों किलोमीटर दूर स्थित अमेरिका और ब्रिटेन से भी पंगा ले लिया। समुद्र और जमीन पर अपनी बादशाहत कायम करने के लिए चीन ने इतनी हाईटेक मिसाइलें बनाई हैं जिन्हें रोकना आम डिफेंस सिस्टम के बूते की बात नहीं है। खुद राष्ट्रपति शी जिनपिंग लगातार अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने का आदेश दे रहे हैं। चीन की सरकार भी सेना के मॉर्डनाइजेशन और हथियारों को उन्नत बनाने पर अरबों डॉलर खर्च कर रही है। जानिए चीन की उस ताकत के बारे में जिसपर उसे है नाज…
चीन के पास हाइपरसोनिक मिसाइलों का जखीरा : चीन इन दिनों हाइपरसोनिक मिसाइलों को बनाने में भारी रकम खर्च कर रहा है। चीन का दावा है कि उसके पास ध्वनि की गति से लगभग 20 गुना तेज चलने वाली मिसाइलें हैं। इतनी स्पीड पर उड़ने वाली मिसाइलों को रोकना भी आसान नहीं होता है। कुछ विश्लेषकों को डर है कि ऐसे घातक हथियारों का जवाब देने की क्षमता इंसानों के पास नहीं है। इन मिसाइलों से निपटने के लिए हर देश को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और कंप्यूटर सिस्टम पर निर्भर रहना होगा। विशेषज्ञ चीन की इन हाइपरसोनिक मिसाइलों को गेमचेंजर बताते हैं। उनका दावा है कि इसे दागे जाने के बाद दुश्मन के पास जवाबी कार्रवाई करने के लिए बहुत ही कम समय होगा। ऐसे में मिसाइल अपने लक्ष्य को भेद सकती है।
अमेरिका के पास भी इनसे बचाव का उपाय नहीं : दुनिया की महाशक्ति में सबसे ऊपर गिने जाने वाले अमेरिका के पास भी इससे बचने का कोई उपाय नहीं है। यूएस स्ट्रेटजिक कमांड के कमांडर जनरल जॉन ई हाईटन ने तीन साल पहले अमेरिकी सीनेट की एक समिति को बताया था कि हमारे पास कोई बचाव नहीं है जो इस तरह के हथियारों के खिलाफ काम आए। परमाणु मिसाइल ले जाने में सक्षम ऐसी मिसाइलें लोगों, वाहनों और इमारतों पर सटीक हमले करने में सक्षम है। ऐसे हथियारों का परीक्षण करने के लिए चीन एक विंड टनल का भी निर्माण कर रहा है, जहां 25 मैक तक मिसाइलों की स्पीड पहुंचाई जा सकती है।
ग्राफीन कवच से सेना को शक्तिशाली बना रहा चीन : ग्राफीन (Graphene) एक ऐसा मटैरियल है, जिसका उपयोग कर हथियारों के ऊपर कोटिंग की जाती है। यह अभी तक ज्ञात सबसे पतला और सबसे हल्का पदार्थ है जो स्टील से भी 20 गुना ज्यादा मजबूत है। सेना में इसका उपयोग बैलिस्टिक मिसाइलों पर कोटिंग, उच्च तापमान के संपर्क में आने वाले हाइपरसोनिक मिसाइलों में वायरिंग और गाड़ियों के कैमोफ्लाज (छलावरण) और सैनिकों के बॉडी ऑर्मर में किया जाता है। 2004 में मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इसका अविष्कार किया था। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी उस लैब की यात्रा कर चुके हैं।
अटैक हेलिकॉप्टर और सैन्य ठिकानों पर भी की ग्राफीन कोटिंग : चीन ने अपने Z-10 अटैक हेलिकॉप्टर को भी बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ एरोनॉटिकल मैटेरियल्स में विकसित ग्राफीन कवच से लैस किया किया है। चीन ने अति विवादित माने जाने वाले दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों पर मौजूद अपने सैन्य ठिकानों को ग्राफीन कोटिंग्स का उपयोग करके सुरक्षित बना लिया है। इन सैन्य ठिकानों पर चीन ने परमाणु मिसाइलों से लैस जिन क्लास की पनडुब्बियों को भी तैनात किया है।
खुफिया तकनीकी से जासूसी कर रहा चीन : चीन की खुफिया तकनीकी इस समय दुनिया में काफी एडवांस मानी जाती है। चीन तो अपने 1.4 अरब नागरिकों की गतिविधियों, विचारों और शब्दों पर निरंतर निगरानी कर उसे नियंत्रित भी करता है। इसका उदाहरण चीन का शिनजियांग प्रांत और हॉन्ग कॉन्ग है। जहां चीन के दमन की खबरें किसी से छिपी हुई नहीं है। लोगों को स्ट्रीट कैमरा, फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी, बायोमेट्रिक डेटा, ऑफिशियल रिकॉर्ड, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑनलाइन गतिविधियों की निगरानी के जरिए ट्रैक किया जाता है। इनमें से अधिकतर उपकरणों को चाइना इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी ग्रुप कॉर्पोरेशन ने बनाया है।
जिनपिंग की योजनाओं का ब्लू प्रिंट तैयार कर रहे चीनी विश्वविद्यालय : चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के योजनाओं की ब्लू प्रिंट चीन के विश्वविद्यालयों में तैयार की जाती है। जिनपिंग इसे मिलिट्री सिविल फ्यूजन का नाम देते हैं। ड्रैगन की सैन्य शक्ति को बढ़ाने में केंद्रीय भूमिका चीन के विश्वविद्यालयों की भी है। चीन का संविधान भी यह कहता है कि निजी क्षेत्र द्वारा विकसित की जाने वाली सभी नई तकनीकों को कानूनन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के साथ साझा किया जाना चाहिए। चीन का राष्ट्रीय रक्षा प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय हाइपरसोनिक, ड्रोन, सुपर कंप्यूटर, रडार और नेविगेशन सिस्टम को बनाने में माहिर है।
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