
इस चराचर जगत में जीवन जीने के लिए प्रकाश चाहिए। इसलिए पूजा-पाठ में पहले ज्योति जलाकर प्रार्थना की जाती है कि कार्य समाप्ति तक स्थिर रह कर साक्षी रहें। पूजन के समय देवताओं के सम्मुख दीप उनके तत्व के आधार पर जलाए जाते हैं। देवी मां भगवती के लिए तिल के तेल का दीपक तथा मौली की बाती उत्तम मानी गई है। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए देसी घी का दीपक जलाना चाहिए। वहीं शत्रु का दमन करने के लिए सरसों और चमेली के तेल सर्वोत्तम माने गए हैं।
भगवान सूर्य नारायण की पूजा एक या सात बत्तियों से करने का विशेष महत्व है। वहीं माता भगवती को नौ बत्तियों का दीपक अर्पित करना सर्वोत्तम कहा गया है। हनुमान जी एवं शंकर जी की प्रसन्नता के लिए पांच बत्तियों का दीपक जलाने का विधान है। अनुष्ठान में सोने, चांदी, कांसे, ताम्बे, लोहे के दीपक प्रज्वलित करने का महत्व अनूठा है।
दीपक जलाते समय उसके नीचे सप्त धान्य (सात प्रकार का अनाज) रखने से सब प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। यदि दीपक जलाते समय उसके नीचे गेहूं रखें तो धन-धान्य की वृद्धि होगी। यदि दीपक जलाते समय उसके नीचे चावल रखें तो महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी। इसी प्रकार यदि उसके नीचे काले तिल या उड़द रखें तो स्वयं मां, काली, भैरव, शनि, दस दिक्पाल, क्षेत्रपाल हमारी रक्षा करेंगे। इसलिए दीपक के नीचे किसी न किसी अनाज को रखना चाहिए। साथ में जलते दीपक के अंदर अगर गुलाब की पंखुड़ी या लौंग रखें, तो जीवन अनेक प्रकार की सुगंधियों से भर उठेगा।
सोने का दीपक : सोने के दीपक को वेदी के मध्य भाग में गेहूं का आसन देकर और चारों तरफ लाल कमल या गुलाब के फूल की पंखुड़ियां बिखेर कर स्थापित करें। इसमें गाय का शुद्ध घी डालें। बत्ती लम्बी बनाएं और इसका मुख पूर्व की ओर करें। गाय के शुद्ध घी से घर में हर प्रकार की उन्नति तथा विकास होता है। इससे धन तथा बुद्धि में निरंतर वृद्धि होती है।
चांदी का दीपक : पूजन में चांदी के दीपक को चावलों का आसन देकर सफेद गुलाब या अन्य सफेद फूलों की पंखुड़ियों को चारों तरफ बिखेर कर पूर्व दिशा में स्थापित करें। इसमें शुद्ध देसी घी का प्रयोग करें। चांदी का दीपक जलाने से घर में सात्विक धन की वृद्धि होगी।
ताम्बे का दीपक : इसमें तिल का तेल डालें और बत्ती लम्बी जलाएं। ताम्बे के दीपक में तिल का तेल डालने से मनोबल में वृद्धि होगी तथा अनिष्टों का नाश होगा।
कांसे का दीपक : कांसे के दीपक को चने की दाल का आसन देकर उत्तर दिशा में स्थापित करें। इसमें तिल का तेल डालें। कांसे का दीपक जलाने से जीवन भर धन बना रहता है।
लोहे का दीपक : लोहे के दीपक को उड़द की दाल का आसन देकर पश्चिम दिशा में स्थापित करें। इसमें सरसों का तेल डालें। लोहे के दीपक में सरसों के तेल की ज्योति जलाने से अनिष्ट तथा दुर्घटनाओं से बचाव हो जाता है।
ग्रहों की पीड़ा निवारण हेतु दीपक का प्रयोग : जिस प्रकार पूजा क्रम में सूर्य मंडल को मध्य में रखकर पूजा की जाती है और माना जाता है कि सूर्य के चारों तरफ आकाश में उससे आकर्षित होकर सभी ग्रह उसकी परिक्रमा करते रहते हैं और उपग्रह अपने ग्रह के साथ सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं उसी प्रकार अन्य दीपक सोने के दीपक के चारों ओर स्थापित किए जाते हैं।
मिट्टी या आटे का दीपक एक बार जलकर अशुद्ध हो जाता है। उसे दोबारा प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह दीपक पीपल एवं क्षेत्रपाल के लिए विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार इन पांच दीपकों को जलाने से सभी ग्रह अनुकूल हो जाते हैं साथ ही अन्य देवता प्रसन्न होते हैं। इससे तीनों बल बुद्धिबल, धनबल और देहबल की वृद्धि होती है और विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस प्रकार यह दीपक ज्योति जहां जप पूजा की साक्षी होती है वहीं वह जीवन में इतना उपकार भी करती है कि जातक ग्रह की कृपा प्राप्त कर लेता है।
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