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The Lancet: भारत में Coronavirus की त्रासदी पर ‘द लैंसेट’ की रिपोर्ट- ‘PM मोदी के काम अक्षम्य, सरकार ले गलतियों की जिम्मेदारी’

भारत में काल का रूप बनकर आई कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया है। वैज्ञानिकों और शोधकर्ता इस बात को समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर हालात इतने बदतर कैसे हो गए। प्रतिष्ठित जर्नल ‘द लैंसेट’ के संपादकीय में महामारी की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार को जिम्मेदार बताया है और आने वाले समय में इससे निपटने के लिए क्या कदम उठाने की जरूरत है, यह भी बताया है।
अस्पताल भरे, स्वास्थ्यकर्मी परेशान : संपादकीय में कहा गया है कि भारत में जिन हालात से लोग गुजर रहे हैं, उन्हें समझना बेहद मुश्किल है। इसके मुताबिक एक्सपर्ट्स हर दिन सामने आते मामलों और मौत के आंकड़ों को असल से ज्यादा मानते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अस्पतालों में जगह नहीं है और स्वास्थ्यकर्मी परेशान हो गए हैं और संक्रमित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग और डॉक्टर मेडिकल ऑक्सिजन, अस्पतालों में बेड और दूसरी जरूरतों के लिए गुहार लगा रहे हैं। फिर भी जब दूसरी वेव मार्च में शुरू होने लगी तो स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने ऐलान किया कि भारत महामारी का एंडगेम है।’
इस अध्‍ययन की मानें तो कोरोना से रिकवर होने के बाद कोरोना के मरीज लंबे समय तक इसके लक्षणों और खराब सेहत से ग्रस्‍त हो रहे हैं।
कोरोना से लड़कर ठीक होने के बाद बच्‍चों को लंबे समय तक इसके लक्षणों से जूझना पड़ रहा है। यहां तक कि जिन बच्‍चों में हल्‍के लक्षण दिखे हैं, उन्‍हें भी लंबे समय तक बीमार रहने की परेशानी हो रही है।
कोरोना होने के बाद रिकवर होने पर भी बच्‍चों में कुछ लक्षण दिखाई दे रहे हैं, जो उन्‍हें लंबे समय तक प्रभावित कर रहे हैं। आगे जानिए कि 16 साल से कम उम्र के बच्‍चों में पोस्‍ट-कोविड के क्‍या लक्षण हैं।
कोरोना के बाद वयस्‍कों को बहुत ज्‍यादा थकान महसूस हो रही है और अध्‍ययनों की मानें तो बच्‍चों में भी ऐसा होने लगा है। कोरोना से ग्रस्‍त होने के बाद बच्‍चों को थकान, जोड़ों, जांघों, सिर, हाथों और पैरों में दर्द महसूस हो रहा है। कुछ मामलों में बच्‍चों में 5 महीने से भी ज्‍यादा समय तक थकान बनी रह सकती है।
नींद पूरी न होने या गहरी नींद न आने पर दो से 16 साल के बच्‍चों का विकास प्रभावित हो सकता है और उनमें बौद्धिक और विकासात्‍मक कमी आ सकती है। कोरोना वायरस से लड़ रहे बच्‍चों में भी अब नींद आने में दिक्‍कत की परेशानी देखी जाने लगी है। कोरोना से ग्रस्‍ट 7 पर्सेंट से भी ज्‍यादा बच्‍चों को किसी न किसी तरह की नींद से जुड़ी परेशानी हो रही है।
वायरस होने के बाद डर, चिंता और आइसोलेट होने की वजह से भी बच्‍चे परेशान हैं जिसका असर उनकी नींद पर पड़ रहा है। कोरोना से अनिद्रा की समस्‍या वयस्‍कों के साथ-साथ बच्‍चों में भी हो रही है।
लंबे समय तक कोरोना से पीडित रहने वाले बच्‍चों में चिड़चिड़ापन होने का खतरा भी ज्‍यादा है। इससे आने वाले सालों में उन्‍हें मूड स्विंग्‍स की दिक्‍कत हो सकती है। लगभग 10 पर्सेंट बच्‍चों ने याद्दाश्‍त में दिक्‍कत आने, ज्‍यादा थकान महसूस होने और ध्‍यान लगाने में दिक्‍कत होने की बात कही है। इससे बच्‍चों की जीवन का स्‍तर भी गिर सकता है।
इसके अलावा कोरोना के बाद बच्‍चों में चक्‍कर आने और नसों से संबंधित समस्‍याएं भी हो सकती है। बच्‍चों के कोरोना से ठीक होने के बाद तेज सिरदर्द, चक्‍कर आने और थकान जैसे लक्षणों को नजरअंदाज न करें।
कोरोना से ग्रस्‍त होने के दौरान बच्‍चों ने गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल लक्षणों की भी शिकायत की है। इसमें पेट दर्द और पाचन से जुड़ी समस्‍याएं शामिल हैं। यहां पर इस बात पर भी ध्‍यान देना चाहिए कोरोना से होने वाले तनाव और एंग्‍जायटी से भी पेट खराब होता है।
‘हर्ड इम्यूनिटी नहीं मिली’ : रिपोर्ट के मुताबिक सरकार की तरफ से ऐसा दिखाई दिया कि भारत ने कई महीनों तक कम केस आने के बाद महामारी को हरा दिया है जबकि नए स्ट्रेन्स के कारण दूसरी वेव की लगातार चेतावनी दी जा रही थी। संपादकीय में कहा गया है, ‘मॉडल ने गलत तरीके से दिखाया कि भारत हर्ड इम्यूनिटी के करीब पहुंच रहा है। इससे लोग निश्चिंत हो गए और तैयारियां अपर्याप्त रह गईं लेकिन जनवरी में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सीरोसर्वे में पता चला कि सिर्फ 21% आबादी में SARS-CoV-2 के खिलाफ ऐंटीबॉडीज थीं।’
‘धार्मिक कार्यक्रम, रैलियों की इजाजत दी गई’ : इस संपादकीय में तंज कसा गया है, ‘लगा कि नरेंद्र मोदी सरकार का ध्यान ट्विटर से आलोचना हटाने पर ज्यादा था और महामारी नियंत्रित करने पर कम।’ सुपरस्प्रेडर इवेंट की चेतावनी के बावजूद धार्मिक त्योहारों और राजनीतिक रैलियों की इजाजत देकर लाखों लोगों को इकट्ठा किया गया। भारत के वैक्सिनेशन कैंपेन पर भी इसका असर दिखने लगा। सरकार ने बिना राज्यों के साथ चर्चा किए 18 साल की उम्र से ज्यादा के लोगों के लिए वैक्सीन का ऐलान कर दिया जिससे सप्लाई खत्म होने लगी और लोग कन्फ्यूज हो गए।
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के डेंटल सर्जरी के एचओडी डॉ.प्रवीण मेहरा कहते हैं कि एक व्यक्ति जो हाल ही में कोविड-19 से रिकवर हुआ है, उसे नया टूथब्रश इस्तेमाल करना चाहिए। ये न केवल व्यक्ति को दोबारा संक्रमित होने की संभावना को कम करता है, बल्कि घर में रह रहे सदस्यों को भी संक्रमण से बचा सकता है, जो एक ही वॉशरूम यूज कर रहे हैं।
आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की कंसल्टेंट डॉ.भूमिका मदान ने इस बात से सहमति जताते हुए कहा है कि सर्दी , खांसी और फ्लू से उबरने वाले लोगों को टूथब्रश बदलने से बहुत फायदा होगा। अगर आपको कोविड-19 हुआ है, तो लक्षण दिखने के 20 दिन बाद अपने टूथब्रश और टंग क्लीनर को बदल लेना चाहिए।
डॉ.मदान बताती हैं ऐसा इसलिए है, क्योंकि टूथब्रश पर समय के साथ बैक्टीरिया का निर्माण ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण का कारण बनता है। इसके रोकथाम के लिए ज्यादातर लोग गार्गल का इस्तेमाल करते हैं, जो मुंह में वायरस को कम करने में मदद करता है। यदि माउथवॉश उपलब्ध नहीं है, तो गर्म पानी के साथ कुल्ला करें। इसके अलावा दिन में दो बार ओरल हाइजीन बनाए रखें और ब्रश करें।
कोविड-19 से उबरने के बाद मौखिक स्वच्छता, टूथब्रश और जीभ की सफाई के महत्व को समझना जरूरी है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, वायरस संक्रमित व्यक्ति के छींकने, खांसने या चिल्लाने से मुंह से निकलने वाली छोटी बूंदों के माध्यम से फैलता है।
लोग वायरस से दूषित सतहों को छूने से भी संक्रमित हो सकते हैं। चूंकि यह वायरस हवा में पाया जाता है, इसलिए एक बार संक्रमित व्यक्ति के शरीर से बाहर निकलने के बाद ये हवा में फैल जाता है और दूसरों को संक्रमित कर सकता है।
इस साल जनवरी में ब्राजील के शोधकर्ताओं ने कोविड-19 संचरण पर मौखिक स्वच्छता के प्रभाव को समझने के लिए एक अध्ययन किया है। अध्ययन में बताया है कि टूथब्रश को बैक्टीरिया फ्री रखने के लिए ओरल हाइजीन रखना जरूरी है। यह संक्रमण को कम करने में मदद करता है। इस अध्ययन में संक्रामक रोगों के जर्नल में प्रकाशित किया गया था। इसमे कहा गया था कि संक्रमित व्यक्ति से दूसरों को रोग बहुत जल्दी फैल सकता है। इसलिए बेहतर है हम इस तरह की सावधानियां बरतें। खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रखें।
‘ऑक्सिजन-बेड मांग रहे लोगों पर ऐक्शन’ : रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य अचानक मामले बढ़ने के लिए तैयार नहीं थे और यहां मेडिकल ऑक्सिजन, हॉस्पिटल स्पेस और श्मशान में जगह भी खत्म होने लगी। यहां तक कि ‘कुछ राज्य सरकारों ने ऑक्सिजन या हॉस्पिटल बेड मांगने वालों पर नैशनल सिक्यॉरिटी लॉ तक लगा दी। वहीं दूसरे राज्य, जैसे केरल और ओडिशा की तैयारी थी और दूसरे राज्यों को देने के लिए उनके पास पर्याप्त मेडिकल ऑक्सिजन है।’
‘वैक्सिनेशन तेज हो, ट्रांसमिशन रोकें’ : संपादकीय में सलाह दी गई है कि भारत को दो तरह की रणनीति बनानी होगी। एक तो वैक्सीनेशन कैंपेन को तेजी से आगे बढ़ाना होगा। वैक्सीन की सप्लाई तेज करनी होगी और ऐसा वितरण कैंपेन हो जिससे शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाके के नागरिकों को कवर किया जा सके। दूसरा, SARS-CoV-2 ट्रांसमिशन को रोकना होगा। सरकार को सटीक डेटा समय पर देना होगा। लोगों को बताना होगा कि क्या हो रहा है और महामारी को खत्म करने के लिए क्या करना होगा। लॉकडाउन की संभावना भी साफ करनी होगी। जीनोम सीक्वेंसिंग का विस्तार करना होगा जिससे वेरियंट को समझा जा सके।