
एक अनुमान के मुताबिक ये क्रिस्टल जब बने थे तब ऐस्टरॉइड के अंदर जमा हुआ पानी और कार्बन डायऑक्साइड रहे होंगे। इसका मतलब ऐस्टरॉइड ऐसी जगह पर बना होगा जहां तापमान ऐसा रहा हो कि पानी और कार्बन डायऑक्साइड जम गए।
जीवन के लिए पानी सबसे अहम जरूरतों में से एक है और धरती के बाहर भी चांद से लेकर मंगल तक पर पानी या बर्फ खोजी जा चुकी है। इनके अलावा ठोस खनिजों के अंदर भी पानी के कण मिले हैं जिनसे इतिहास में पानी की मौजूदगी के संकेत मिलते हैं। इसी तरह एक उल्कापिंड में नमक के क्रिस्टल में वैज्ञानिकों को पानी मिला है। कभी किसी ऐस्टरॉइड का हिस्सा रहे उल्कापिंड के धरती पर गिरने के बाद वैज्ञानिकों ने इसके टुकड़ों को स्टडी किया और पाया कि ऑर्डिनरी कॉन्ड्राइट क्लास के इस उल्कापिंड में जो नमक मिला है, वह भी कहीं और से आया था।
4.6 अरब साल पुराना टुकड़ा : रित्सुमीकान यूनिवर्सिटी में विजिटिंग रिसर्च प्रफेसर डॉ. अकीरा सुचियामा और उनके साथी यह जानना चाहते थे कि क्या सॉलिड में मिला पानी कैल्शियम कार्बोनेट (calcite) के रूप इन कार्बनेशस कॉन्ड्राइट (carbonaceous chondrites) क्लास के उल्कापिंडों में पाया जा सकता है या नहीं। ऐसे उल्कापिंड उन ऐस्टरॉइड्स से आते हैं जो सौर मंडल की शुरुआत में बने हों। इसके लिए Sutter’s Mill उल्कापिंड को स्टडी गया जो 4.6 अरब साल पहले ऐस्टरॉइड का हिस्सा है।
बेहद अहम है यह खोज : रिसर्चर्स को एक कैल्साइट क्रिस्टम मिला जिसमें बहुत कम मात्रा में तरल मौजूदगी थी और 15% कार्बन डायऑक्साइड। इससे पुष्टि होती है कि प्राचीन कार्बनेशस कॉन्ट्राइड्स में कैल्साइट क्रिस्टल के अंदर पानी और कार्बन डायऑक्साइड दोनों हो सकते हैं। सबसे दिलचस्प बात है कि अरबों साल पहले बने ऐस्टरॉइड के टुकड़े में पानी के निशान मिलने से यह खोज और भी अहम हो जाती है।
कहां था यह ऐस्टरॉइड? : एक अनुमान के मुताबिक ये क्रिस्टल जब बने थे तब ऐस्टरॉइड के अंदर जमा हुआ पानी और कार्बन डायऑक्साइड रहे होंगे। इसका मतलब ऐस्टरॉइड ऐसी जगह पर बना होगा जहां तापमान ऐसा रहा हो कि पानी और कार्बन डायऑक्साइड जम गए। सौर मंडल में ऐसी जगह बृहस्पति के पास या और भी बाहर की ओर हो सकती है। वहां से यह ऐस्टरॉइड अंदर की तरफ आया और उसके टुकड़े धरती से टकरा गए।
धरती पर कैसे आए? : हाल ही में कुछ और थिअरीज में भी यह संभावना जताई गई है कि पानी और कार्बन डायऑक्साइड युक्त ऐस्टरॉइड बृहस्पति की कक्षा से आगे बने थे और फिर सूरज की ओर आए। इसके मुताबिक बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण के कारण ये ऐस्टरॉइड सौर मंडल के अंदरूनी हिस्से की ओर बढ़े होंगे। डॉ. अकीरा का कहना है कि इस खोज हमारी अडवांस्ड माइक्रोस्कोपी की काबिलियत भी पता चलती है जिसकी मदद से अरबों साल पुराने एक छोटे से कण को डिटेक्ट किया जा सका।
Home / News / Water on Meteorite: 460 करोड़ साल पुराने उल्कापिंड में मिले पानी के निशान, जानें क्यों अहम है यह खोज
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