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Pfizer की Coronavirus Vaccine की एक डोज भी देती है सुरक्षा, पहले AstraZeneca लगी हो तो भी असरदार

ब्रिटेन में Pfizer या AstraZeneca वैक्सीन की एक खुराक के बाद 96% लोगों में ऐंटीबॉडी विकसित हुईं। ताजा डेटा में यह बात सामने आई है। ब्रिटेन और वेल्स में 8,517 लोगों में से 96.42% लोगों में पहली खुराक के बाद 28-34 दिन पर वायरस से लड़ने वाले प्रोटीन बनने लगते हैं। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की रिसर्च में पता चला है कि दोनों वैक्सीन में से किसी की भी दूसरी खुराक के बाद 99% लोगों में 14 दिन के बाद ऐंटीबॉडी दिखने लगी।
इस स्टडी में औसतन 65 उम्र के लोगों से 13,232 ऐंटीबॉडी सैंपल का अनैलेसिस किया गया। इसमें शामिल हर केस में ऐंटीबॉडी दिखी। इसका मतलब है कि वायरस से कुछ हद तक सुरक्षा पैदा हुई। ऐंटीबॉडी पैदा होने की दर फाइजर में ज्यादा देखी गई लेकिन 4 हफ्ते बाद दोनों का असर बराबर दिखा। ब्रिटेन के SAGE अडवाइजर स्टीवन राइली के मुताबिक भारतीय वेरियंट के कारण दूसरी वेव को रोका जा सकता है अगर लोग अभी वैक्सिनेट हो जाएं तो।
एक नए अध्ययन के अनुसार, COVID-19 के साथ अस्पताल में भर्ती लगभग 20 से 30 प्रतिशत मरीजों का इम्यून सिस्टम (immune manifestations) वायरस से लड़ने में जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो जाता है। कुछ मामलों में ऐसी स्थिति में शरीर की दूसरे हिस्सों को नुकसान पहुंचाने लगता है, यहां तक कि मौत होना का खतरा होता है। इसे ही साइटोकिन स्टॉर्म कहा जाता है।
इस सिचुएशन में मरीज साइटोकिन स्टॉर्म (Cytokine Storm) से जूझ रहा होता है। टेंपल ल्यूपस कार्यक्रम के निदेशक, रुमेटोलॉजी (Rheumatology) के MD और माइक्रोबायोलॉजी व इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर Roberto Caricchio के अनुसार, अगर समय रहते इस आशंका को समझ लें तो इसका ट्रीटमेंट किया जा सकता है और मौत दर को भी कम हो सकती है।
साइटोकाइन स्टॉर्म (Cytokine Storm) को समझने के लिए, हमें सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि साइको टाइन्स हैं क्या? वे मूल रूप से प्रोटीन (glycoproteins) होते हैं जो विभिन्न प्रकार की शरीर कोशिकाओं (Body cells) द्वारा उत्पन्न होते हैं। साइटोकाइन शरीर के कई कार्यों में सहायता करते हैं जिसमें इम्यून सिस्टम का वायरस से लड़ना भी शामिल है।
हालांकि, अगर शरीर बहुत अधिक साइटोकाइन छोड़ता है या कहें इम्यून सिस्टम ज्यादा एक्टिव हो जाता है तो चीजें शरीर को नुकसान हो सकता है। यह इम्यून सिस्टम की एक्टिविटी को ट्रिगर कर सकता है जो शरीर के लिए घातक हो सकता है। वह अवस्था जहां शरीर बहुत अधिक साइटोकाइन छोड़ता है उसे साइटोकाइन स्टॉर्म कहा जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार साइटोकाइन स्टॉर्म के दौरान शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम वायरस से लड़ने के बजाय अपनी ही कोशिकाओं और ऊतकों पर हमला करने लगता है।
बताया जाता है कि इस अवस्था में COVID-19 के कई बीमार रोगियों का ब्लड हाई लेवल इम्यूनिटी प्रोटीन के साथ फ्लो करता है, जिसे साइटोकिन्स कहा जाता है। ये अध्ययनों के अनुसार, COVID को ट्रिगर करने वाले साइटोकाइन तूफान की तीव्रता काफी मजबूत होती है!
जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी, अटलांटा के वायरोलॉजिस्ट और इम्यूनोलॉजिस्ट मुकेश कुमार अध्ययन कर रहे हैं कि शरीर किस तरह से संक्रमणों पर प्रतिक्रिया करता है, जिसमें SARS-CoV-2 के लिए शरीर की प्रतिक्रिया भी शामिल है। शरीर की विभिन्न कोशिकाएं जब एक साथ साइटोकाइन को उत्पन्न करने लगती हैं तो बहुत सारे ऊतक (Tissue) कमजोर हो सकते हैं और यह फेफड़ों में मौजूद हवा की छोटी थैली के लिए खतरनाक हो जाता है।
वे निमोनिया (pneumonia) का कारण बन सकते हैं और तक कि ब्लड ऑक्सीजन की कमी भी हो सकती है। डॉ. कुमार का मानना है कि साइटोकाइन के कारण शरीर की कई कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। यब स्टॉर्म फेफड़ों को फेफड़ों को पूरी तरह से नष्ट कर देता है।
ऐसा लग रहा है कि अब कोविड मरीजों की रिकवरी के वक्त यह बीमारी बड़ी संख्या में मौत का कारण बनती जा रही है। यह फेफड़ों से शुरू होती है और शरीर के बाकी हिस्सों को भी प्रभावित कर देती है।
कुछ विशेषज्ञों की यह भी राय है कि संक्रमित होने के बाद दूसरे सप्ताह में रिकवरी के दौरान साइटोकाइन स्टॉर्म होता है। इस बीच कोविड रोगी बहुत ज्यादा सतर्क रहना की आवश्यकता होती है। उन्हें शरीर में होने वाली हर हलचल पर निगरानी रखनी होती है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ ऐसे हैं जिन्हें लगता है कि COVID रोगियों के मामले में साइटोकाइन स्टॉर्म से होने वाली मौतें अपेक्षाकृत बहुत कम हैं।
एमडी पीएचडी डॉ. फिलिप मुड ने कहा, ऐसी अवस्था में कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स बिना किसी सबूत के एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं देना शुरू कर देते हैं जो शायद मरीजों को ठीक होने में मदद न करें।
ज्यादा अंतराल से ज्यादा असरदार : पिछले हफ्ते एक स्टडी में पाया गया था कि फाइजर की वैक्सीन की दूसरी खुराक 12 हफ्ते बाद लगने से बुजुर्गों में ऐंटीबॉडी 3.5 गुना ज्यादा रहीं। दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटेन का उदाहरण देते हुए भारत में AstraZeneca (Covishield) की वैक्सीन की दोनों खुराक के बीच समय 12-16 हफ्ते कर दिया गया, जबकि ब्रिटेन में इसे घटाकर 8 हफ्ते कर दिया गया। तेजी से फैल रहे मामलों के मद्देनजर यह फैसला किया गया।
पिछले हफ्ते ICMR और कोविड-19 पर बनी नैशनल टास्‍क फोर्स की एक मीटिंग हुई। इसमें सभी सदस्‍यों ने प्‍लाज्‍मा थेरेपी को अप्रभावी बताते हुए इसे गाइडलाइंस से हटाने को कहा। कुछ वैज्ञानिकों और डॉक्‍टर्स ने प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के. विजयराघवन को एक चिट्ठी भी लिखी। उसमें कहा गया कि प्‍लाज्‍मा थेरेपी के ‘तर्कहीन और अवैज्ञानिक इस्‍तेमाल’ को बंद कर देना चाहिए। यह चिट्ठी ICMR प्रमुख बलराम भार्गव और एम्‍स के निदेशक रणदीप गुलेरिया को भी भेजी गई थी।
हेल्‍थ प्रफेशनल्‍स ने अपनी चिट्ठी में कहा कि प्‍लाज्‍मा थेरेपी से जुड़ी गाइडलाइंस उपलब्‍ध सबूतों पर आधारित नहीं हैं। कुछ शुरुआती सबूत भी सामने रखे गए जिसके मुताबिक, बेहद कम इम्‍युनिटी वाले लोगों को प्‍लाज्‍मा थेरेपी देने पर न्‍यूट्रलाइजिंग ऐंटीबॉडीज कम बनती हैं और वेरिएंट्स सामने आ सकते हैं। यह चिट्ठी भेजने वालों में मशहूर वायरलॉजिस्‍ट गगनदीप कांग, सर्जन प्रमेश सीएस और अन्‍य शामिल थे। चिट्ठी के मुताबिक, प्‍लाज्‍मा थेरेपी के तर्कहीन इस्‍तेमाल से और संक्रामक स्‍ट्रेन्‍स डिवेलप होने की संभावना बढ़ जाती है।
ब्रिटेन में 11,000 लोगों पर हुई एक रिसर्च में पता चला कि प्‍लाज्‍मा थेरेपी कोई चमत्‍कार नहीं करती। अर्जेंटीना में चली रिसर्च में भी यही बात सामने आई। वहां के डॉक्‍टर्स ने भी प्‍लाज्‍मा थेरेपी को असरदार नहीं माना। पिछले साल ICMR ने भी एक रिसर्च की थी जिसमें यही पता चला था कि प्‍लाज्‍मा थेरेपी मृत्‍यु-दर कम करने और कोविड के गंभीर मरीजों के इलाज में कारगर नहीं है।
दो खुराकें मिलाने से फायदा : दूसरी ओर, स्पेन में की गई एक स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों को पहली खुराक AstraZeneca की लगी हो, उन्हें दूसरी खुराक Pfizer देने पर सुरक्षित और असरदार पाई गई। इस स्टडी को 670 लोगों पर किया गया था। इनमें से 1.7% लोगों में सिर और मांसपेशियों में दर्द जैसे साइड इफेक्ट देखे गए। गौरतलब है कि स्पेन में AstraZeneca की वैक्सीन दिए जाने के बाद खून के थक्के जमने के मामलों को गंभीरता से लिया गया है। इसके मद्देनजर कई विकल्प तलाश किए जा रहे हैं।