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Earth’s Core: अजीब तरह से बदल रही है धरती की अंदरूनी परत, इंडोनेशिया के नीचे कैसी हलचल?

हमारी धरती की अंदरूनी परतें काफी ऐक्टिव हैं लेकिन हाल ही में एक स्टडी में इनमें से एक परत में कुछ अजीब होता पाया गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने पाया है कि धरती की लोहे से बनी कोर एक तरफ से ज्यादा बढ़ रही है। इंडोनेशिया के बंदा सागर के नीचे यह हलचल पाई गई है। पिघले हुए लोहे से क्रिस्टल बनने की वजह से यह बदलाव हो रहा है लेकिन यह एक तरफ ज्यादा हो रहा है, और दूसरी तरफ, ब्राजील के नीचे, कम।
बदल रही है धरती की कोर : रिसर्चर्स का मानना है कि धरती के चुबंकीय क्षेत्र के कारण ऐसा हो सकता है। धरती की कोर लोहे से बनी है जिसके बाहर तरल बाहरी कोर है और फिर चट्टानी मैंटल। क्रिस्टल बनते लोहे से निकलने वाली गर्मी और चट्टान बाहर आती है और ठंडा मटीरियल नीचे जाता है। इससे मैग्नेटिक फील्ड बनती है। अंदर की कोर से ज्यादा गर्मी पूर्व से पश्चिम की दिशा में निकलने से, बाहरी कोर भी पूर्व की ओर बढ़ती है लेकिन वैज्ञानिकों को अभी यह नहीं पता है कि इससे धरती के चुंबकीय क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा।
दरअसल, मैग्नेटिक फील्ड धरती पर सूरज से आने वाले चार्ज्ड पार्टिकल्स (charged particles) को ब्लॉक करती है लेकिन दक्षिण अटलांटिक में इस चुंबकीय क्षेत्र में एक डेंट पड़ गया है जिसके वजह से यह सुरक्षा-कवच कमजोर हो गया है। इसका मतलब यह है कि इस क्षेत्र के ऊपर से गुजरने वाले सैटलाइट्स को ज्यादा रेडिएशन का सामना करना पड़ता है। कई बार इसकी वजह से उपकरणों में शॉर्ट-सर्किट हो जाता है।। इससे उनमें तकनीकी खराबी हो जाती है और कई बार वे पूरी तरह काम करना बंद कर देते हैं। यह भी पता लगा है कि ये डेंट एक जगह पर रुका नहीं है बल्कि पश्चिम की ओर बढ़ रहा है और दो हिस्सों में बंट रहा है।
धरती की सबसे अंदर की परत Core में करीब 1800 मील अंदर मौजूद धातु (metal) पिघलता है और फिर केंद्र से निकलकर यह ripples में बाहर की ओर जाता है। इसकी वजह से मैग्नेटिक फील्ड पैदा होती है। यह मूवमेंट बाहरी परतों पर हो रही हलचल के अलावा कई कारणों पर निर्भर करता है। ये फील्ड सूरज से आने वाले प्लाज्मा और पार्टिकल्स को धरती तक नहीं पहुंचने देती है और धरती के magnetosphere से ही वापस भेज देती है। मैग्नेटिक फील्ड के कमजोर होने से सोलर विंड (Solar Wind) का खतरा ज्यादा हो जाता है। इसके अलावा सूरज से आने वाले गरम प्लाज्मा और रेडिएशन- coronal mass ejections की इस क्षेत्र में दाखिल होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
अभी NASA को जो जानकारी मिलेगी इसकी मदद से न सिर्फ सैटलाइट्स को किसी खतरे या परेशानी के लिए आगाह किया जा सकता है बल्कि धरती के अंदर क्या चल रहा है, इसे भी समझा जा सकता है। मैरीलैंड मे NASA के Goddard Space Flight Center के जियोफिजिसिस्ट टेरी सबाका के मुताबिक, ‘SAA धीरे-धीरे मूव कर रही है लेकिन इसमें कुछ बदलाव हो रहा है। इसलिए जरूरी है कि इस पर नजर रखी जाए। इसके आधार पर ही मॉडल और अनुमान किए जा सकते हैं।’ साल 1992 से 2012 के बीच काम कर रहे NASA के Solar Anomalous, and Magnetosphere Particle Explorer (SAMPEX) मिशन से मिले डेटा के आधार पर ऐसी सैटलाइट्स डिजाइन करने की कोशिश की जा रही है जो मैग्नेटिक फील्ड के अभाव वाले क्षेत्र से गुजरने पर भी खराबी की शिकार न हों। यूरोपियन स्पेस एजेंसी का Swarm मिशन धरती की मैग्नेटिक फील्ड को ऑब्जर्व करता है। अलग-अलग स्रोतों से मिले डेटा के आधार पर यह खोजा जाता है कि कितनी तेजी से ये बदलाव हो रहे हैं।
यहां से गुजरने वाले स्पेसक्राफ्ट में से एक इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन भी है लेकिन इसमें एक अतिरिक्त सुरक्षा कवच होता है क्योंकि इसके अंदर ऐस्ट्रोनॉट्स भी रहते हैं। हालांकि, इसके बाहरी ओर लगे उपकरणों को इस क्षेत्र में खतरा भी हो सकता है। इसकी वजह से ISS के बाहर लगे ग्लोबल ईकोसिस्टम डायनैमिक्स इन्वेस्टिगेशन मिशन (GEDI) के पावर बोर्ड्स हर महीने रीसेट हो जाते हैं। इससे महत्वपूर्ण डेटा गायब हो जाता है। ICON (आयोनोस्फीरिक कनेक्शन एक्सप्लोरर) जैसे दूसरे स्पेसक्राफ्ट NASA के पास इससे जुड़े जानकारी भेजते हैं कि यहां कैसे बदलाव हो रहा है। ICON को पिछले साल ही लॉन्च किया गया था और इसका काम इस कमजोर मैग्नेटिक फील्ड को मॉनिटर करना है।
बढ़ रहा है दक्षिण अटलांटिक अनोमली क्षेत्र : दूसरी ओर पहले यह पाया जा चुका है कि धरती की मैग्नेटिक फील्ड दक्षिण अमेरिका और दक्षिण अटलांटिक महासागर के बीच कमजोर हो जाती है। इस इलाके को दक्षिण अटलांटिक अनोमली (SAA) कहते हैं। चिंता की बात यह है कि यह क्षेत्र फैलता जा रहा है और पश्चिम की ओर बढ़ रहा है। माना जा रहा है कि आने वाले पांच साल में यह 2019 की तुलना में 10% ज्यादा फैल चुका होगा।
चुबंकीय क्षेत्र में कमी : पिछले कुछ सालों से व‍िशेषज्ञों के रेडार पर चुंबकीय क्षेत्र में आई कमी थी। पिछले 200 सालों में चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता में 9 प्रतिशत की कमी आई है। इस बीच अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के बीच काफी बड़े हिस्‍से में हाल ही में चुंबकीय क्षेत्र में ज्‍यादा कमी आई है। वैज्ञानिकों ने कहा कि ध्रुवों में बदलाव अचानक से नहीं हो जाता है और यह धीरे-धीरे होता है। यह बदलाव हरेक 2,50,000 साल में होता है।