
एमआईटी और हारवर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने एक नये फेस मास्क का डिजाइन तैयार किया है जिसे पहनने के डेढ़ घंटे के अंदर पता चल सकता है कि उसे पहनने वाले को SARS-SoV-2 या कोरोना वायरस का संक्रमण तो नहीं है। पत्रिका ‘नेचर बायोटेक्नोलॉजी’ में इस मास्क डिजाइन के बारे में बताया गया है।
इसके ऊपर छोटे-छोटे डिस्पोजेबल सेंसर लगे होते हैं जिन्हें दूसरे मास्क में भी लगाया जा सकता है और इनसे अन्य वायरसों के संक्रमण का भी पता चल सकता है। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, इन सेंसरों को न केवल फेस मास्क पर बल्कि प्रयोगशालाओं में स्वास्थ्य कर्मियों के इस्तेमाल में आने वाले कोट जैसे परिधान आदि पर भी लगाया जा सकता है। इस तरइ इनसे स्वास्थ्य कर्मियों को वायरस के संभावित खतरे पर नजर रखी जा सकती है।
अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में प्रोफेसर जेम्स कॉलिन्स ने कहा, ‘हमने देखा कि वायरस या बैक्टीरियल न्यूक्लिक एसिड का पता लगाने के लिए कई तरह के सिंथेटिक जैविक सेंसर का उपयोग किया जा सकता है। इनसे कई जहरीले रसायनों का भी पता चल सकता है।’
मास्क बेहद जरूरी : कोरोना की महामारी के खिलाफ सबसे पहला हथियार बने मास्क आज भी बेहद अहम हैं। एलएनजेपी के डायरेक्टर डॉ सुरेश कुमार का कहना है कि मास्क बहुत जरूरी है। इससे छुटकारा तभी मिल सकता है, जब 80 पर्सेंट आबादी का वैक्सीनेशन हो जाए और हर्ड इम्युनिटी बन जाए। ऐसे हालात में इंफेक्शन फैलने का खतरा कम हो जाता है और वायरस में बदलाव की संभावना भी कम होती है।
जहां तक अपने देश की बात है तो केवल 5 पर्सेंट की आबादी को दोनों डोज लगी है, इसमें हम मास्क हटाने की बात तो सोच नहीं सकते। अभी जिस प्रकार वेरिएंट दिख रहा है, जो वैक्सीन के बाद भी हो रहा है, उसमें मास्क ही बचा सकता है।
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