इस दशहरे जरूर ले आएं रावण के पुतले का अस्थि अवशेष : दशहरा यानी कि रावण दहन का दिन। इस दिन को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। इस दिन को शास्त्र और शस्त्र पूजन के अलावा नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है। यही वजह है कि इस दिन को लेकर कई तरह की ज्योतिष मान्यताएं भी हैं। उन्हीं में से एक के अनुसार, अगर इस दिन आप रावण का पुतला दहन होने के बाद उसकी अस्थियों की राख अपने घर ले आएं तो यह अत्यंत ही शुभ होता है। अब आप सोच रहे होंगे तो सीताजी के हरण जैसा कृत्य करने वाले रावण को इतना पूजनीय कैसे माना जा सकता है। तो आपको इन सारे सवालों के जवाब इसी आर्टिकल में मिल जाएंगे। आइए जान लेते हैं कि आखिर क्यों रावण के पुतले की अस्थियां लाना इतना शुभ होता है…
रावण के पुतले के अस्थि की जानें महत्ता : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लंकापति रावण के वध और लंका विजय के प्रमाण स्वरूप श्रीराम सेना लंका की राख अपने साथ ले आई थी, इसी के चलते रावण के पुतले की अस्थियों को घर ले जाने का चलन शुरू हुआ। इसके अलावा मान्यता यह भी है कि धनपति कुबेर के द्वारा बनाई गई स्वर्णलंका की राख तिजोरियों में रखने से घर में स्वयं कुबेर का वास होता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यही वजह है कि तब से लेकर आज तक रावण का पुतला जलने के बाद उसके अस्थि-अवशेष को घर लाने की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। मान्यता है कि इससे नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से भी राहत मिलती है। एक श्लोक मिलता है ‘आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये। स कालो विजयोय: सर्वकार्यार्थसिद्धये।’ इसके अनुसार क्वार माह में शुक्लपक्ष की दशमी को तारों के उदयकाल में मृत्यु पर भी विजयफल दिलाने वाला काल माना जाता है।
अस्थि-अवशेष ही नहीं यहां तो करते हैं पूजा भी : सनातन धर्म में दशहरा विजय और अत्यंत शुभता का प्रतीक है, बुराई पर अच्छाई और सत्य पर असत्य की विजय का पर्व, इसीलिए इस पर्व को विजयादशमी भी कहा गया है। दक्षिण भारत के द्रविड़ ब्राह्मणों में रावण के पुतले के दहन से पहले उसका पूजन करने की परंपरा है। पृथ्वी पर रावण एक ऐसा प्रकांड विद्वान था जिसमें त्रिकाल दर्शन की क्षमता थी। रावण के ज्ञान और विद्वता की प्रशंसा स्वयं श्रीराम ने भी की थी। यही वजह है कि द्रविड़ ब्राह्मणों में रावण पूजन की परंपरा को उत्तम माना गया है, कई जगह पर रावण दहन के दिन उपवास रखने की भी प्रथा है। वहीं, महाराष्ट्र के गडचिरोली में भी रावण की पूजा की जाती है। यही नहीं, स्थानीय गोंड जनजाति तो न केवल रावण बल्कि उनके पुत्रों को भी देवता मानते हैं और उनकी पूजा करती हैं। गोंड जनजाति के अनुसार रावण न तो बुरा इंसान था और न ही उसने सीता माता को बदनाम किया।