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तेजी से फैल रही है एक दुर्लभ बीमारी, बच्‍चों को भी बना सकती है अपना शिकार; लक्षण दिखते ही डॉक्टर को पास भागें

इस समय महाराष्‍ट्र के पुणे में कई लोग Guillain Barre Syndrome का शिकार हो रहे हैं। ऐसा हनीं है कि यह बीमारी सिर्फ बड़ों को ही प्रभावित करती है बल्कि बच्‍चे भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। बेहतर होगा कि आप इसके लक्षणों को पहचानकर जल्‍द से जल्‍द इसका इलाज शुरू कर दें।
इन दिनों एक बीमारी ने लोगों की नाक में दम कर रखा है। पुणे में कुल 59 लोगों में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) नामक एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार पाया गया है। इनमें से 12 लोग वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। ऐसा नहीं है कि बच्‍चों में यह बीमारी नहीं होती है।
बच्‍चे भी इस सिंड्रोम का शिकार हो सकते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको बच्‍चों में जीबीएस के लक्षण और इलाज आदि के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
गिलियन-बैरे सिंड्रोम क्‍या है? – Cedars-sinai के अनुसार एक जानलेवा विकार है जो शरीर में नसों को प्रभावित करता है। इसकी वजह से मांसपेशियों में कमजोरी, दर्द और कुछ समय के लिए चेहरे, छाती, पैरों में लकवा हो सकता है। छाती और निगलने वाली मांसपेशियों में लकवा पड़ने की वजह से सांस लेने में दिक्‍कत, दम घुटने और अगर इलाज न किया जाए तो मौत तक हो सकती है।
बच्‍चों में क्‍यों होता है जीबीएस? – शोधकर्ताओं को जीबीएस के सटीक कारण के बारे में पता नहीं है। यह एक ऑटोइम्‍यून विकार है जिसमें इम्‍यून सिस्‍टम नर्वस सिस्‍टम पर अटैक करने लगता है। वायरल संक्रमण, सर्जरी या बहुत कम मामलों में वैक्‍सीन के रिएक्‍शन की वजह से ऐसा हो सकता है। लगभग 3 में से 2 लोगों में जीबीएस के लक्षण दस्त या श्वसन संबंधी बीमारी के कुछ दिनों या सप्ताह बाद विकसित होते हैं।
बच्‍चों में जीबीएस के लक्षण – हर बच्‍चे में जीबीएस के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। इसमें उंगलियों और पैरों की उंगलियों में कम महसूस होना, इनमें दर्द होना, पैरों में कमजोरी, पैरों के दर्द का हाथों तक आना, चलने में दिक्‍कत, चिड़चिड़ापन, सांस लेने में दिक्‍कत, निगलने में दिक्‍कत, चेहरे पर कमजोरी शामिल है।
कब तक रहते हैं लक्षण? – बच्‍चे को कुछ हफ्तों तक मांसपेशियों में कमजोरी रह सकती है। नसों को कितना नुकसान पहुंचा है, इस बात पर निर्भर करता है कि उसे रिकवरी करने में कितने दिन लगेंगे। आमतौर पर यह एक से दो महीने तक रहेगा। पूरी तरह से रिकवर होने में एक से दो साल तक का समय लगता है।
कैसे होता है इलाज? – Kidshealth के अनुसार इस सिंड्रोम का इलाज करने के दो तरीके हैं:
इम्यूनोग्लोबुलिनथेरेपी: स्वस्थ एंटीबॉडी का यह इंजेक्शन शरीर पर प्रतिरक्षा प्रणाली के हमले को कम करने में मदद करता है।
प्लाज्माफेरेसिस या प्लाज्मा एक्सचेंज: एक मशीन शरीर से खून को पंप करती है, तंत्रिका तंत्र पर हमला करने वाली कोशिकाओं को हटाती है और खून को शरीर में वापस भेजती है।
इस स्थिति वाले लोगों को अगर चलने में परेशानी होती है, तो इन्‍हें आमतौर पर दर्द को कम करने और खून के थक्कों को रोकने के लिए दवाएं दी जाती हैं।